Achla Ekadashi Vrat Katha In Hindi | अपरा एकादशी व्रत कैसे करें व पूजा विधि | Apara Ekadashi 2022 | अपरा एकादशी व्रत कब है | Apara Ekadashi Vrat 2022 | अपरा एकादशी व्रत 2022 | Achla Ekadashi Vrat 2022 | अचला एकादशी कब है | Ekadashi 2022 | अचला एकादशी 2022 | Gyaras Vrat 2022 | अचला एकादशी व्रत का लाभ क्या है | Ekadashi Vrat 2022 May | अपरा एकादशी व्रत कैसे करें | Ekadashi Vrat Kab Hai | अचला एकादशी का व्रत कब आता है | Ekadashi Vrat Importance | एकादशी व्रत के लाभ क्या है | Ekadashi Vrat Ruls | एकादशी का व्रत क्यों करते है | ग्यारस की कथा
दोस्तो आज के लेख में हम आपको Achla Ekadashi Vrat Katha के बारें में विस्तार से बताएगें। यह एकादशी ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष को आती है इसे अपरा एकादशी \Apara Ekadashi Vrat) भी कहा जाता है। वैसे तो आप सभी जानते है, हमारे हिन्दु धर्म में लोग बहुत से देवी-देवताओ को मानते है लोग अपनी सभी मगंल कामनाऐ पूरी करने के लिए उनकी पूजा-अर्चना करते है। व उनका व्रत रखते है किन्तु जो व्यक्ति अपरा/अचला एकादशी का व्रत नियमो व श्रद्धा भाव से करता है तो उसको ब्रह्महत्या, परनिन्दा, भूत योनि व उसे सभी निकृष्ट कर्मो से छुटकारा मिल जाता है। और वह इस जीवन में सुख वैभव का आनंद लेता है तथा उसके जीवन में कीर्ति, पुण्य व धन धान्य की कोई कमी नही रहती। और यदि आप इस व्रत के बारें में अधिक जानना चाहते है तो लेख के साथ अंत तक बने रहना है।
अचला एकादशी व्रत का महत्व क्या है
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अचला/अपरा एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति की आर्थिक समस्याओं के साथ साथ उसको पापो से भी मुक्ति मिल जाती है। कहा जाता है की इसी एकादशी का व्रत पाड़वो ने पूरे विधि विधान से किया था जिसके प्रभाव से उनको खोया हुआ राज्य सुख वैभव वापस मिल गया था। इसके अलावा इस पुण्य व्रत को करने से व्यक्ति को प्रेत योनि से छुटकारा भी मिलता है। अर्थात इसे मोक्षदायनी एकादशी भी कहा गया है जो सभी पापो का विनाश करके मोक्ष की प्राप्ति दिलाती है। और इस बार तो गुरूवार के दिन एकादशी का व्रत है जिस कारण इस एकादशी का ओर भी ज्यादा महत्व है। क्योंकि गुरूवार का वार भगवान विष्णु जी का अर्पित है।
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अपरा एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त (Achla Ekadashi 2022 Date)
- अपरा या अचला एकादशी व्रत का प्रारंभ:- 25 मई 2022 को प्रात: 10:32 मिनट पर
- अचला/अपना एकादशी व्रत का समापन:- 26 मई 2022 सुबह 10:54 मिनट पर
- अचला एकादशी व्रत कब है:- 26 मई 2022 गुरूवार के दिन
- अपरा/अचला एकादशी व्रत का पारण:- 27 मई 2022 को प्रात:काल 05:03 मिनट के बाद कभी भी
Apara Achala Ekadashi Vrat की शुरूआत 25 मई 2022 बुधवार के दिन सुबह 10 बजकर 32 मिनट पर हो जाएगी। और 26 मई 2022 को सुबह 10:54 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। उदयातिथि के अनुसार यह व्रत 26 मई 2022 वाले दिन रखा जाएगा। तथा व्रत का पारण द्वादशी अर्थात एकादशी व्रत के दूसरे दिन 27 मई को सुबह 05:03 मिनट के बाद किया जाएगा।
अचला एकादशी व्रत पूजा विधि (Apara Ekadashi Vrat Puja Vidhi)
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- इस व्रत को रखने वाले सभी व्यक्ति प्रात:काल जल्दी उठकर गंगाजल से स्नान आदि करके साफ वस्त्र धारण करें।
- जिसके बाद भगवान सूर्य (Lord Surya) को जल का अर्घ्य चढ़ाकर पीपल व तुलसी के वृक्ष में भी पानी चढ़ाऐ।
- इसके बाद घर के किसी स्थान पर एक चौकी रखे और उसके ऊपर लाल रंग का वस्त्र बिछाए दोनो ओर केले व आम के पत्ते जरूर लगाऐ।
- अब इस चौकी पर भगवान विष्णु जी (Lord Vishnu ji) की प्रतिमा को स्थापित करें और जल, फूल, फल, चंदन, चावल, रौली, मौली, धूप, दीप, नैवेद्य, पंचामृत, केला, तुलसी, अक्षत, सुपारी आदि से पूजा करें।
- पूजा करने के बाद अचला अपरा एकादशी व्रत की कथा (Apara Ekadashi Vrat Katha) सुने और भगवान विष्णु जी की आरती करें। जिसके बाद भगवान को प्रसाद चढ़ाऐ।
- कई स्थानों पर इस व्रत वाले दिन संध्या के समय फलाहार कर लेते है और कई स्थानो पर दूसरे दिन पारण करते है।
- रात्रि के समय जागरण किया जाता है और दूसरे दिन स्नान आदि से निवृत होकर सबसे पहले गाय माता को रोटी देना है।
- जिसके बाद किसी ब्राह्मण को भोजना कराऐ और यथा शक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करे। उसके बाद ही व्रत रखने वाला व्यक्ति भोजन ग्रहण करें और एकादशी व्रत (Ekadashi Vrat) का पारण करें।
अपरा अचला एकादशी व्रत कथा (Apara Ekadashi Vrat Katha in Hindi)
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प्राचीन समय की बात है एक राज्य था जिस पर एक राजा राज करता था । उस राजा के दो पुत्र थे, एक बड़े पुत्र का नाम महीध्वज व छोटे का नाम वज्रध्वज था। राजा का बड़ा बेटा बहुत ही धर्माता व दयावान और प्रतापी था। इस कारण राज्य की जनता ने उसे अपना राजा चुना और उस राजसिंहासन पर बिठा दिया। और राज्य में चारो तरफ खुशी ही खुशी थी। किन्तु जो महीध्वज का छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा उन्यायी था। उसे राजसिंहासन नही मिलने के कारण वह अपने बड़े भाई को अपना दुश्मन समझता था।
वह राजसिंहासन पाने के लिए अपने बड़े भाई काे मारना चाहता था और एक दिन वह अपनी चाल में कामयाब हो गया। वह अपने साथ महीध्वज को शिकार करने के लिए ले गया। और जगंल में ही अवसर पाकर महीध्वज की हत्या कर दी और उसक शव को एक पीपल के पेड़ के नीचे दपना दिया। और राजसिंहासन पर वह बैठ गया।
महीध्वज की आत्मा पीपल के पेड़ पर वास करने लगी और आने; जाने वालों को सताने लगी। एक दिन धौम्य ऋषि उस पीपल के वृक्ष के नीचे से गुजर रहे थे। तब उन्होने अपने तपोबल से आत्मा का कारण व उसके जीवन का वृतांत समझ लिया। फिर ऋषि ने महीध्वज को पीपल के पेड़ से नीचे उतारकर परलोक सिधारने का उपदेश दिया। और कहा हे महीध्वज तुम प्रेत योनि से छुटकारा पाने के लिए Achla Ekadashi Vrat पूरे विधि पूर्वक करने को कहा। महीध्वज ने अचला एकादशी का व्रत करना शुरू कर दिया ऐस में राजा अपना दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक को चला गया।
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