ऑंवला नवमी व्रत कथा कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की नवमी को ही ऑंवला नवमी या फिर अक्षय नवमी कहा जाता है। वैसे तो नाम से ही पता चल रहा है की इस दिन ऑवले के पेड़ की पूजा कि जाती है। जो की इस वर्ष 12 नवबंर 2021 शुक्रवार के दिन पड़ रही है। पुराणों व शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग का प्रारंभ इसी दिन से हुआ था। इस दिन जो भी स्त्रियॉ आंवले के पेड़ की पूजा विधि-विधान से करती है उसकी सभी मनोकामनाऐ पूर्ण होती है। ऐसे में यदि आपने भी आंवले नवमी का व्रत किया है तो आर्टिकल में बताई हुई व्रत कथा व पूजा विधि को पढकर या सुननकर अपना व्रत पूर्ण कर सकते है। तो पोस्ट के अंत तक बने रहे।
Amla Navami 2021 (ऑंवला नवमी का महत्व)
कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की नवमी का व्रत लगभग देश की सभी औरते करती है। ज्यादातर कार्तिक का महीने नहाने वाली औरते के लिए विशेष महत्व है। पौराणिक मान्ताओ के अनुसार इसी दिन भगवान कृष्ण जी पूरे मथुरा नगरी में राजा कंस को मारने के लिए जनमत तैयार किया था।
इसी कारण इस दिन आंवले के पेड़ की परिक्रमा का वृदांवन की परिक्रमा भी कहा जाता है। वही दूसरी और अक्षय का अर्थ है जिसका कभी क्षरण नही हो। जो स्त्री पुरूष इस दिन श्रद्धा भाव से आंवले के पेड़ की पूजा करके किसी ब्राह्मण या गरीब को यथा शक्ति दान-दक्षिणा देती है। तो उसके जीवन में सुख-समृद्धि सदैव बनी रहती है।
आंवला नवमी तिथि प्रारंभ (Akshaya Navami 2021 in Hindi)
पंचाग व ज्योतिषों के अनुसार आंवला नवमी शुभ तिथि का प्रारंभ 12 नवबंर 2021 को प्रात: 05:51 मिनट पर हो जाऐगा। जिसके बाद 13 नवबंर 2021 शनिवार को प्रात: 05:30 मिनट पर सामाप्त हो जाऐगा। इसी काल के बीच में आंवला या अक्षत नवमी रहेगी।
Amla Navami in Hindi (आंवला नवमी का शुभ मुहूर्त)
पंचाग के अनुसार ऑंवला नवमी या अक्षत नवमी 12 नवबंर 2021 यानी शुक्रवार के दिन पड़ रही है। जिसका शुभ मुहूर्त 06 बजकर 50 मिनट पर शुरू होकर दोपहर के 12:10 मिनट तक रहेगा। तो आप सभी आंवला नवमी का व्रत रखने वाले स्त्री व पुरूष इस शुभ मुहूर्त के बीच में आंवला पूजा कर सकते है।
अक्षत नवमी पूजा विधि (Amla Navami Puja Vidhi)
- ऑवला नवमी का व्रत रखने वाले स्त्री व पुरूष प्रात: जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर नऐ वस्त्र धारण करे।
- जिसके बाद सूर्य भगवान को पानी चढाकर पीपल व तुलसी के पेड़ में पानी चढ़ाने का विधान है।
- इसके बाद ऑंवले के पेड़ में पानी चढ़ाकर पूर्व दिशा की और मुह करके उसी वृक्ष के नीचे बैठ जाना है।
- अब ऑवले के पेड़ को रौली, मौली, चावल, पुष्प, फल, अक्षत, नैवेद्य आदि चढ़ाकर विधिवत रूप से पूजा करे। पूजा के बद आंवले के पेड़ की जड़ो में कच्चा दूध चढ़ाऐ।
- इसके बाद उस पेड़ के चारो ओर कच्चा धागा बॉधना चाहिए। और अपनी मनोकामनाऐ करे।
- इसके बाद कपूर बाती या शुद्ध घी की बाती से पेड़ की आरती उतारे, जिसके बाद पेड़ के चारो ओर सात परिक्रमा करनी चाहिए।
- जिसके पश्ताचत आंवला/अक्षत नवमी व्रत कथा सुने। जिसके बाद उसी पेड़ के नीचे ब्राह्मण को भोजन कराऐ।
- भोजन कराने के बाद यथा शक्ति दान-दक्षिणा देकर स्वयं भोजन ग्रहण करे।
आंवला नवमी व्रत कथा (Amla Navami Vrat Katha)
प्राचीन समय में काशी नगरी में एक नि:सनतान व धर्मात्मा तथा दानी वैश्य रहता था। एक दिन उस वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराऐ लड़के की बलि भैरव बाबा को चढ़ा दोगी। तो तुम्हे पुत्र रत्न प्राप्ति हो जाऐगी। यह करकर वह पड़ोसन तोन चली गई जिसके बाद वैश्य शाम को घर आया। तो वैश्या ने वैश्य अर्थात उसने अपने पति से कहा की आज एक औरत ने कहा यदि हम किसी बच्चे की बलि भैरव को चढा देगे तो हमे अवश्य बालक प्राप्त हो जाऐगा।
अपनी पत्नी की बात सुनकर वैश्य ने इस बात को अस्वीकार कर दिया। किन्तु उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही क्योकि उसे एक पुत्र चाहिए था। फिर एक दिन उसने एक कन्या को कुऍ में गिराकर भैरव के नाम की बलि दे दी। किन्तु इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ।
लाभ की जगह उस वैश्या के पूरे बदन में कोढ़ हो गऐ और उस लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य ने उसकी पत्नी से पूछा की तुम्हारे शरीर पर ऐ कोढ कैसे हो गऐ। उसके पूछने पर वैश्या ने सारी बात बता दी। इस पर वैश्य ने कहा गाैवध, ब्राह्मणवध तथा बालवध करने वाले के लिए इस संसार में की जगह नही है।
इसी लिए अब तू गंगा नदी के तट पर जाकर भगवान का भजन कर तथा रोज प्रात: गंगा नदी में स्नान करके भगवान की पूजा-अर्चना कर। यदि तुम यह काम श्रद्धा भाव से करोगी तो तुम्हारी जरूर सुनेगा। और इस कष्ट से छुटकारा मिल जाऐगा। वैश्य की पत्नी वैश्या गंगा किनारे रहने लगी।
प्रतिदिन गंगानदी में स्नान करके भगवान की पूजा करने लगी। ऐसे करते हुऐ उसे बहुत दिन हो गऐ। और एक दिन गंगा माता वृद्धा का रूप धारण कर उसके पास आई और बोली तू मथुरा जाकर कार्तिक मास की शुक्ल्पक्ष की नवमी का व्रत तथा ऑवला वृक्ष की परिक्रमा करके। उसकी पूजा करेगी तो तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जाऐगे।
उस वृद्धा की बात सुनकर वह वैश्या अपने पति से आज्ञा लेकर मथुरा चली आई। यहा आकर उसने कार्तिक माह की ऑवला नवमी का व्रत विधिपूर्वक किया। ऐसा करने से वह भगवान की कृपा से दिव्य शरीर वाली हो गइ। तथा उसे एक पुत्र प्राप्ति भी हुई । जिसे पाकर वैश्य और वैश्या दोनो पति-पत्नी बहुत खुश हुऐ। और इस संसार में सुखी पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।
अक्षत नवमी व्रत की दूसरी कथा (ऑंवला नवमी व्रत कथा)
एक समय की बात है एक सेठ आमला नौमी के दिन ऑवले के पेड़ के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराया करता था। तथा सभी ब्राह्मणो काे सोने का दान दिया करता था। किन्तु उस सेठ के बेटे को यह सब अच्छा नही लगता था। वह घर की कलह से तंग आकर घर छोड़कर दूसरे गॉव में चले गया। और अपना जीवन यापन करने के लिए एक दुकान लगा ली।
और अपनी दुकान क आगे एक आंवले का पेड़ लगा दिया ताकी उसे नवमी वाले दिन पूजा करने के लिए बाहर नही जाना पड़े। उस सेठ की दुकान खूब चलने लगी। और यहा पर भी वह ऑवला नवमी का व्रत करता और उसी पेड़ के नीच ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान का कार्यक्रम चालू रखा।
किन्तु उधर सेठ के बेटे का कार्य ठप हो गया। उसके समझ में यह बात समझ आ गई की हम सब तो पिताश्री के भाग्य से रोटी खाते थे। जिसके बाद वह अपने पिता के पास गया औश्र अपनी गलती स्वीकार करता हुआ माफी मांगने लगा। तब उसके पिता ने उसे आज्ञा की प्रतिवर्ष कार्तिक माह की शुक्लपक्ष की नवमी को आंवले के पेड़ की पूजा किया करो।
जिसके बाद उस सेठ के बेटे ने वैसा ही किया जैसा उसके पिताजी ने कहा था। और ऐसा करने से सेठ का बेटा भी बहुत धनवान हो गया और उसके सभी कष्ट दूर हो गऐ।
दोस्तो आज के इस लेख में हमने आपको आंवला/अक्षत नवमी ऑंवला नवमी व्रत कथा के बारे में विस्तार से बताया है। यदि आपको ऊपर दी गई जानकारी पसंद आई हो तो लाईक करे व अपने मिलने वालो के पास शेयर करे। और यदि आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्न है तो कमंट करके जरूर पूछे। धन्यवाद
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