दोस्तो भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान अनंत (विष्णु जी) का व्रत रखा जाता है। अनंत चतुर्दशी वाले दिन सृष्टि को रचने वाले भगवान विष्णु जी के भक्ति का दिन होता है। अनंत चतुर्दशी भगवान विष्णु व कृष्ण जी का रूप है और शेषनाग काल रूप में विद्यमान है। अत: इस दिन दोनो ही भगवानों की पूजा की जाती है। वही इसके साथ इस व्रत (Anant Chaturdashi Vrat Katha) वाले दिन गणेश जी का विसर्जन किया जाता है।
इस व्रत वाले दिन अनंत देव को सूत्र चढ़ाया जाता है। तथा पूजा के बाद उस सूत्र को भगवान का रक्षासूत्र मानकर स्त्रिया बाऐ हाथ में एवं पुरूष दाऐ हाथो में बाधते है। इस संसार में जो कोई स्त्री या पुरूष श्रद्धा भाव से भादों माह की अनंत चतुर्दशी का व्रत रखता है भगवान उसके सभी कष्टो को हर लेता है। ऐसे में आप भी अनंत चतुर्दशी का व्रत रखते है तो लेख के द्वारा बताई हुई व्रत कथा व पूजा विधि को पढ़कर या सुनकर अपना व्रत पूर्ण कर सकते है।
अनंत चतुर्दशी पूजा का शुभ मुहूर्त (Anant Chaturdashi Vrat Puja ka Shubh Muhurt)

अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi Vrat Katha) भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी (चौदस) प्रतिवर्ष मनाई जाती है। इस बार यह व्रत 19 सितम्बर 2021 रविवार के दिन है। अन्नत चतुर्दशी व्रत पूजा का समय प्रात: 06 बजकर 12 मिनट से लेकर रात्रि के 07 बजकर 05 मिनट तक रहेगा यानी शुभ मुहूर्त का कुल समय 12 घंटे 53 मिनट तक रहेगा। आप इसी शुभ मुहूर्त के बीच में अपना अन्नत चतुर्दशी का व्रत खोल सकते है।
आपकी जानकारी के लिए बता दे की इसी दिन गणेश भगवान का विसर्जन किया जाता है। जो की महाराष्ट्र राज्य में हर्षो उल्लास के साथ मनाई जाती है। गणेश चतुर्थी पर्व की शुरूआत भाद्रपद महीने शुक्लपक्ष की चतुर्थी को शुरूआत होता है जो भादों की चतुर्दशी (चौदस) को समाप्त होता है।
अनंत चतुर्दशी व्रत पूजा का विधान (Anant Chaturdashi Vrat Puja Vidhi)
- व्रत रखने वाले स्त्री व पुरूष को प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर नऐ वस्त्र धारण करे।
- जिसके बाद सूर्य भगवान को पानी चढ़ाकर पीपल व तुुलसी के पेड़ में पानी चढ़ाऐ।
- इसके बाद पूजा के लिए मिट्टी के कलश की स्थापना करे जिसके ऊपर अष्ट दल कमल के समान बने बर्तन में कुशा से निर्मित अनन्त भगवान (विष्णु जी) की प्रतिमा की स्थापना करे।
- भगवान की प्रतिमा के पास में एक धांगे या डोरे को हल्दी में रंगकर 14 गांठ लगाकर रख देना है।
- इसके बाद गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य पंचामृत आदि से भगवान अन्न्त जी की पूरे विधि-विधान से पूजा करे।
- तत्पश्चात् अनन्त भगवान का ध्यान कर उस शुद्ध धांगे को पुरूष अपने दाऐ हाथ में व महिलाए अपने बाऐ हाथ में बांधे।
- यह धागा अनन्त फल देना वाला है क्योकिं इस धांगे में भगवान अनन्त (विष्णुजी) की चौदह गॉठे चौदह लोको का प्रतीक है। इनमें अनन्त भगवान जी विद्यामान रहते है। Anant Chaturdashi Vrat Katha
- अन्नत भगवान की पूजा के समय इस महामंत्र का जाप करना चाहिए।
”अनंत सर्व नागानामधिप: सर्वकामद:,
सदा भूयात् प्रसन्नोमें यक्तानामभयंकर: ।।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा (Anant Chaturdashi Vrat Katha)
द्वापर युग में जब पांडुओ के बड़े भाई महाराज युधिष्ठिर ने राजयूय यज्ञ किया। यज्ञ मंडप का निर्माण सुन्दर तो था ही साथ ही अद्भुत भी था। उसमें स्थल में जल तथा जल में स्थल की भ्रांति हाेती है। यज्ञ मंडप की शोभा निहारते निहारते दुर्योधन एक जगह पर स्थल समझ कर पानी के कुण्ड में जा गिरा। उस समय पाण्डुओ की पत्नी द्रोपदी ने उसका उपहास उड़ाते हुए कहा की अंधे की संतान भी अंधी है।
द्रोपदी की बात दुर्योधन के हृदय में बाण की तरह चुभ गई। कुछ दिनों बाद इसका बदला लेने के लिए पांडवों को हस्तिनापुर बुलाकर द्यूत क्रीड़ा में छल से परास्त किया। परास्त होकर पांडवो को बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ा। वन में रहते हुए पांडवो को अनेक कष्टों को सहना पड़ा। एक दिन वन में युधिष्ठिर से मिलने के लिए भगवान कृष्ण जी आए। जब कृष्ण जी से युधिष्ठिर ने अपनी हालात का वृतांत सुना दिया।
युधिष्ठिर को इन सभी कष्टो से छुटकारा दिलाने के लिए भगवान कृष्ण जी ने भाद्रपद की अन्नत भगवान का व्रत (Anant Chaturdashi Vrat Katha)बताया। और कहा हे युधिष्ठिर यदि तुम इस व्रत को पूरी श्रद्धा भाव से करोगे तो तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जाएगे। जिसके बाद भगवान ने कृष्ण जी ने युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई।
प्राचीन काल में सुमन्त नाम के एक ब्राह्मण कें सुशीला नाम की कन्या थी। सुशीला को बड़ी होने पर ब्राह्मण उसका विवाह कौण्डिल्य ऋर्षि से कर दिया। कौण्डिल्य ऋर्षि अपनी पत्नी सुशीला को लेकर अपने आश्रम को चल दिए। रास्ते में रात हो जाने पर वे एक नदी के तट पर संध्या करने लगे। तब ही सुशीला ने नदी के पास बहुत सी स्त्रियों को किसी देवता की पूजा करते हुए देखा। सुशीला उनके पास गई और विन्रम भाव से पूछी कि आप सभी किस देवता कि पूजा कर रही है।

उन सभी स्त्रियो न भगवान अन्नत के बारे में बताया ओर सुशीला ने उसी समय व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गॉठों वाला डोरा अपने हाथ में बॉध लिया। वह पूजा करके अपने पति कौण्डिल्य के पास आ गई। ऋर्षि ने सुशीला के हाथो में डोरा देखकर उसके बारे में पूछा तो उसने सारी बात समझा दी। किन्तु कौण्डिल्य ऋर्षि सुशीला की बात सुनकर अप्रसन्न हो गए और उसके हाथो से वह डोरा निकालर अग्नि में डाल दिया।
प्रात:काल होते ही दोना अपने आश्रम आ गए। धीरे-धीरे ऋर्षि कौण्डिल्य सुख सम्पत्ति नष्ट हो गई तो सुशीला ने इसका कारण डोरे की जलाने वाली बात दोराई। पश्चातप करते हुए ऋर्षि ने भगवान अन्नत को खोजने के लिए वन में चल दिए। जब वे भटकते-भटकते हुऐ निराश होकर गिर पड़़े और बेहोश हो गए। उसके बाद भगवान अन्नत (विष्णुजी) ने दर्शन देकर बोले ”हे कौण्डिल्य मेरे अपमान के कारण की तुम्हारे ऊपर ये सभी मुसीबतो का पहाड़ टूटा।
किन्तु मैं तुम्हारे पश्चाताप के कारण मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। अब तुम अपने आश्रम जाकर 14 वर्षो तक पूरे विधि विधानपूर्वक अन्नत व्रत करों। तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जाएगे। कौण्डिलय ने आश्रम जाकर अपनी पत्नी सुशीला के साथ 14 वर्षो तक पूरी श्रद्धा भाव से अन्नत भगवान का व्रत (Anant Chaturdashi Vrat Katha) किया। उसके बाद उनके सभी कष्ट दूर हो गए। तब श्रीकृष्ण जी आज्ञा मानकर युधिष्ठिर ने अन्नत भगवान का व्रत किया। जिसके प्रभाव से पांडवो को महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त हुई।
दोस्तो आज के लेख के माध्यम से हमने आपको अनंत भगवान (Anant Chaturdashi Vrat Katha) व्रत कथा के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान की है। आप सभी को हमारे द्वारा दी गई जानकारी पंसद आई है तो लाईक करे अपने मिलने वाले के पास शेयर करे। और यदि आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्न है तो कमंट करके जरूर पूछ। धन्यवाद
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