Vrat Katha

आशा भगोती व्रत कथा व पूजा विधि यहा से पढ़े | Asha Bhagoti Vrat Katha in Hindi

Asha Bhagoti Vrat Katha | आशा भगोती व्रत कथा | Asha Bhagoti Vrat Katha | आशा भगोती व्रत | Bhagoti Vrat Katha | आशा भगोती | Asha Bhagoti Katha in Hindi | आज के व्रत की कथा | Aaj Ke Vrat Ki Katha

आशा भगो‍ती व्रत Asha Bhagoti Vrat Katha प्रतिवर्ष आश्विन महीने की कृष्‍णपक्ष की अष्‍टमी से प्रारंभ होकर लगातार 8 दिनो तक चलता है। इन 8 दिनो तो इस संसार में जो कोई मनुष्‍य लगातार व्रत रखता है और पूरी श्रद्धा के अनुसार भगवान शिवजी और माता पार्वती की पूजा अर्चना करता है। तो भगवान शंकर और माता पार्वती जी उसकी सभी मनोकामनाए पूर्ण करते है। ऐसे में अगर आप भी आशा भगोती का व्रत रखते है तो पोस्‍ट में दि गई व्रत कथा व पूजा विधि को पढ़कर या फिर किसी अन्‍य से सुनकर आप अपना आशा भगोती का व्रत पूर्ण कर सकती है। तो पोस्‍ट के अन्‍त तक बने रहे।

आशा भगोती व्रत का महत्‍व/Asha Bhagoti Vrat Mahatva

Asha Bhagwati Vrat:- यह बात तो पक्‍की है सनातन धर्म में जो भी व्रत व पर्व मनाया जाता है तो उसके पीछे बड़ा कारण होता है। इस प्रकार आशा भगवती का व्रत करने के पीछे माता पार्वती का प्रसन्‍न करना है। यह व्रत महिलाए अपनी संतान सुख हेतु व उसकी लंबी आयु की कामना हेतु करती है यह व्रत लगातार आठ दिनों का होता है हर दिन माता पार्वती की पूजा होती है। अंतिम दिन आशा भगोती व्रत का उद्यापन किया जाता है जिसमें आपको सभी 16 श्रृंगार की जरूरत पड़ती है।

आशा भगोती व्रत कथा

पितृपक्ष मातृनवमी 

आशा भगोती व्रत कब है/Asha Bhagoti Vrat kab Hai

बात करे हिन्‍दी पंचाग के अनुसार तो आशा भगवती व्रत आश्विन महिने की कृष्‍ण पक्ष अष्‍टमी तिथि से आरंभ होकर आठ दिनों तक किया जाता है। इस साल यह व्रत 06 अक्‍टूबर 2023 को पड़ रहा है

आशा भगोती व्रत पूजन सामग्रीया

  • मिट्टी गोबर
  • दूब
  • रौली व मौली
  • मेंहदी
  • काजल
  • बिन्‍दी
  • फल
  • फूल
  • घी का दीपक
  • सुहाग की सभी वस्‍तु
  • चावल
  • जल का लौटा

जीवित पुत्रिका व्रत कथा व पूजा विधि यहा से पढ़े

आशा भगोती व्रत पूजा विधि (Asha Bhagoti Vrat Puja vidhi)

  • आशा भगोती का व्रत रखने वाले को प्रात:काल जल्‍दी उठकर स्‍नान आदि से मुक्‍त होकर नऐ वस्‍त्र धारण करे।
  • इसके बाद सूर्य भगवान का मंत्र का जाप करते हुए पानी चढ़ाऐ उसके बार पीपल व तुलसी के पेड़ में भी पानी चाढ़ाऐ।
  • इसके बाद अपने-अपने घरो को मिट्टी गोबर से लीपकर पूरे घर की साफ-सफाई करे।
  • ततपश्‍चात घर के आठ कोनो में हरी धूब और आठ-आठ रूपया, आठ रोली के छींटे, आठ मेंहदी के छींटे, आठ काजल छोटी-छोटी बिन्‍दी, एक-एक सुहाली और उसी मौसम के एक-एक फल चढ़ऐ।
  • जिसके बाद आठो कोनो पर घी का दीपकर जलाकर रख देना है।
  • जिसके बाद आशा भगोती माता (पार्वती माता) की पूरे विध‍ि विधान से पूजा करे और आशा भगोती व्रत की कथा (Asha Bhagoti Vrat Katha in Hindi) सुने।
  • कथा सुनने के बाद आरती करे तथा प्रसाद चढ़ाऐ।
  • आशा भगोती का व्रत रखने वाले को इसी प्रकार रोज आठ दिन तक लगातार करना है। और आठवें दिन एक सुहाग की पिटारी (सुहाग का सभी सामान) आठों कोनो पर चढ़ावे।
  • आठवें दिन आठ सुहालों का बायना निकालकर अपनी-अपनी सासुजी के पैर छूकर उनको दे देना है।
  • आशा भगोती का व्रत जो कोई एक बार रख लेता उसे लगातार आठ वर्ष तक करना होता है उसके बाद आप इस व्रत का उद्यापन कर सकते है।

आशा भगोती व्रत कथा (Asha Bhagoti Vrat Katha)

Asha Bhagoti Vrat katha in Hindi:- एक समय में हिमालय राजा नामक राजा था। उसके दो पुत्रिया गौरा और पार्वती थी। एक दिन राजा ने अपनी दोनो बेटियो से पूछा की तुम दोनो किसके भाग्‍य का खाती हो। पिता की बात सुनकर बड़ी बेटी गौरा ने कहा पिताजी मैं तो आप ही के भाग्‍य का खाती हूँ। किन्‍तु छोटी बेटी पार्वती ने कहा पिताजी मैं तो अपने ही भाग्‍य का खाती हॅू। पार्वती की बात राजा को अच्‍दी नही लगी इसी कारण उसने अपनी बड़ी बेटी का विवाह एक राजा के साथ कर दिया।

वह राजा बड़ा की धनवान था। और छोटी बेटी पार्वती का विवाह एक रास्‍ते में भिखारी रूप धारण किऐ शिवजी भगवान के साथ कर दिया। विवाह के बाद शिवजी माता पार्वती को लेकर कैलाश की ओर चल दिए, रास्‍तें में पार्वती जी जहॉं भी पैर रखती उसी जगह पर धूब सूख जाती। यह देखकर शिवजी और पार्वती आश्‍चर्य में पढ़ और दोनो एक ज्‍योतिषि के पास गऐ और इसका कारण पूछा।

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ज्‍योतिष ने कहा हे भगवन यदि माता पार्वती अपने मायके में जाकर लगातार आठ दिनो तक आशा भगोती का व्रत पूरे विधि-विधान व श्रद्धा से रखेगी। और अपमन करेगी तो इनका दोष मुक्‍त हो जाऐगा। ज्‍योतिषों के बताने पर शिवजी और पार्वती दोनो अच्‍छे-अच्‍छे मूल्‍यवान वस्‍त्र धारण कर एवं गहने पहनकर पार्वती जी के मायके के लिए चल दिऐ।

चलते-चलते रास्‍ते में देखा की एक रानी के बच्‍चा होने वाला है जिस कारण वह बहुत ज्‍यादा परेशान व दुखी थी। यह कष्‍ट देखकर माता पार्वती ने बोला हे नाथ बच्‍चा होने पर बहुत कष्‍ट मिलता है इसलिए मेरी कोख बॉध दो। माता पार्वती की बात सुनकर भगवान शिवजी ने उसे समझाया की तुत कोख मत बँधवाओ नही तो पीछे पछताओगी। शिवजी की बात माता मान गई और दोनो आगे की ओर चल दिए।

रास्‍ते में थोड़ी दूर गऐ तो देखा की एक घोड़ी के बच्‍चा हो रहा था उसको भी बहुत ज्‍यादा कष्‍ट झेलने पड़ रहे थे। घोड़ी का कष्‍ट देखकर माता पार्वती ने अपनी कोख बन्‍द करने की हठ पकड़ ली और कहा मैं आपके साथ आगे जब चलूगी जब आप मेरी कोख बॉंध दोगे।

अन्‍त में निराश होकर भगवान शिवजी ने माता पार्वती की कोख बॉध दी जिसके बाद दोनो आगे बढ़े। इधर पार्वती की बड़ी बहन गौरा अपने ससुराल में बहुत ज्‍यादा दुखी थी। इधर पार्वती और शिवजी पार्वती के मायके में आ गऐ। जब वह अपने माता पिता से मिली तो उसके माता पिता ने पार्वती को पहचाना नही। और पूछा की तुम कौन हो तब माता पार्वती ने अपने पिता से कहा की पिताजी आपने मुझ से एक बार पूछा था की तुम किसके भाग्‍य का खाती हो। तब मैने आपको यही जवाब दिया की मैं तो अपने भागय का खाती हूँ।

पार्वती की यह बात सुनकर राजा रानी दोनो पहचान गऐ और अपनी पुत्री से मिलकर बहुत खुश हुए। माता व पिता से मिलने के बाद पार्वती अपनी भाभियो के पास गई तो देखा की उसकी भाभियॉ आशा भगोती का उजमन कर रही थी। यह देखकर माता पार्वती ने कहा की मेरे उजमन की किसी ने तैयारी नही की तो मैं भी उजमन कर देती।

पार्वती की बात सुनकर उसकी भाभियॉं बोली ”तुम्‍हें क्‍या कमी है तुम शिवजी से कहो वह सब तैयारी कर देंगे। पार्वती जी ने शिवजी से अजमन करने के लिए सामान लाने को कहा- तब शिवजी ने पार्वती जी से कहा ”यह अंगूठी (मुद्रिका) ले लो” इससे तुम जो भी मॉगोगी वह तुम्‍हे मिल जाऐगा।

पार्वती जी ने उस मुद्र‍िका से आशा भगोती व्रत (Asha Bhagoti Vrat Katha in Hindi) उजमन का पूरा सामान मॉगा। मुद्रिका ने तुरन्‍त सभी सामान नौ सुहाग की पिटारी सहित ला दिया। यह देखकर पार्वती जी की भाभियॉ बोली की हम सब तो पिछले आठ महीनो से उजमन की तैयारी कर रही थी। तब जाकर सामान तैयार हुआ है।

तुमने तो थोड़ी देर में ही पूरी तैयारी कर ली, अपनी भाभियो की बात सुनकर कहा की यह तो भगवान भोले नाथ की कृपा है। इसके बाद सभी ने मिलकर आशा भगोती का व्रत (Asha Bhagoti Vrat Katha) और पूरे विधि-विधानो से व्रत का उजमन किया। इसके बाद शिवजी ने माता पार्वती से कैलाश पर्वत पर चलने को कहा। तबी पार्वती के पिताजी ने शंकरजी को भोजन करने के लिए बुलाया।

राजा ने भगवान शिवजी के लिए सुन्‍दर-सुन्‍दर कई प्रकार का भोजन तथा अनेक प्रकार की मिठाईया परोसी। यह देखकर सब कहने लगे कि पार्वती को भिखारी के साथ ब्‍याह दिया था परन्‍तु वह तो अपने ही भाग्‍य से राज्‍य कर रही है। भगवान शंकरजी ने रसोई का सारा खाना खाते-खाते समाप्‍त कर दिया बस थोड़ी सी पतली सब्‍जी बची थी।

जिसके बाद माता पार्वती जी ने उसी सब्‍जी को खाकर पानी पीया और व्रत का पारण किया। अब माता पार्वती और भगवान शंकरजी ने कैलाश के लिए विदाई ली ओर दोनो अपने घर की ओर चल दिए। दोनो चलते-चलते थक गए थोडा सुस्‍ताने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठ गऐ।

तब शंकर भगवान ने माता से पूछा ”तुम क्‍या खाकर आई हो’ इस पर पार्वती बोली हे नाथ- आप तो अन्‍तर्यामी है आप सब कुछ जानते हुऐ भी पूछ रहे है। पार्वती की बात सुनकर शंकर जी बोले की तुम रसोई में थोडी पतली बची हुई सब्‍जी और पानी पीकर आई हो।

इस पर पार्वती बोली, ”महाराज आपने तो मेरी सारी पोल खोल दी। अब आगे कोई बात मत खोलना। क्‍योकि मैनें हमेशा ससुराल की इज्‍जत मायके में रखी है ओर मायके की इज्‍जत अपने ससुराल में रखी है। इसके बाद दोनो उठे और कैलाश के लिए चल दिए। आगे चलकर देखा की जो धूब माता के पैराे को रखने से सूख गई थी वह हरी-भरी हो गई।

शंकरजी ने सोचा की देवी पार्वती का दोष मिट गया और आगे बढे तो देखा की एक रानी कुऑं पूजने के लिए जा रही थी। यह देखकर माता ने भगवान से पूछा की यह क्‍या हो रहा है। तो शिवजी बोले की यह वही रानी है जो प्रसव पीड़ा झेल रही थी। अब इसके एक लड़का हुआ है इसलिए यह कुऑं पूजने जा रही है।

यह सुनकर माता पार्वती जी बोली की हे नाथ- आप मेरी भी कोख खोल दो, इस पर शिवजी बोले अब कैसे खोलॅू। मैने तो तुम से पहले ही कहा था की कोख मत बँधवाओ लेकिन तुमने तो जिद्द पकड़ ली। भगवान की बात सुनकर उसने हठ पकड़ ली की मेरी कोख खोलो नहीं तो मैं अभी इसी वक्‍त अपने प्राण त्‍याग दूँगी।

माता पार्वती का इस तरह से हठ देखकर भगवान ने पार्वती के मैल से गणेशजी को बनाया। जिसके बाद पार्वतीजी ने बहुत सारे नेकचार किऐ और कुऑ पूजन भी करवाया। कुऑ पूजने के बाद पार्वती जी ने बोला की मैं तो सुहाग बाटूँगी, तो सभी जगह शोच मच गया की पार्वती जी सुहाग बॉंट रही है।

जिसको लेना है ले लो, साधारण मनुष्‍य तो दौड़ दौड़कर सुहाग ले गऐ किन्‍तु उच्‍च कुल की स्त्रियो को पहुचने में देरी हो गई। उन स्त्रियों को भी पार्वती जी ने थोड़-थोड़ सुहाग दे दिया। इस प्रकार किसी को भी पार्वती जी ने निराश नहीं लौटाया। इस व्रत व उजमन को कुॅवारी कन्‍याए भी कर सकती है।

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डिस्‍कलेमर:- दोस्‍तो आज के इस लेख में हमने आपको आशा भगोती व्रत कथा व पूजा विधि (Asha Bhagoti Vrat Katha in Hindi) के बारे में सभी जानकारी प्रदान की है।जो आपको पौराणिक मान्‍यताओं, हिन्‍दू पंचांग, धार्मिक प्रथाओं के अनुसार बताई है। आपको बताना जरूरी है की Onlineseekhe.com किसी भी तरह की पुष्टि नहीं करता है अत: अधिक जानकारी हेतु किसी संबंधित विशेषज्ञ, पंडित, विद्धान के पास जाएगा। आपको लेख में ऊपर दी गई सभी जानकारी पसंद आई हो तो लाईक करे व अपने मिलने वालो के पास शेयर करे। यदि आपके मन में किस प्रकार का प्रश्‍न है तो कमंट करके जरूर पूछे। धन्‍यवाद दोस्‍तो…..

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