दोस्तो आज के लेख में आपको बृहस्पतिवार व्रत कथा ( Brihaspativar Vrat Katha ) के बारें में बताएगे। जैसा की आप सभी जानते होगे हिन्दू धर्म के वेंद पुराणों व शास्त्र व सभीं ग्रथों में देवताओ के गुरू बृहस्पति जी को बताया गया है। क्योंकि बृहस्पति जी को बुद्धी व शिक्षा का देवता माना जाता है। इसी कारण संसार के सभी लोग गुरूवार को बृहस्पति जी का व्रत करते है। जिससें उनकी सभी मनोकामनाए पूर्ण हो और उनको बुद्धी प्रदार हो सके।
बृहस्पतिवार व्रत की पूजा विधि
संसार में इस व्रत को रखने वालों को प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर पीले वस्त्र धारण करके भगवान सूर्यनारायण को जल चढ़ाऐ। अब अपने ही घर में बृहस्पति जी की फोटो स्थापित करे। और उसके उपर पीले रंग के फूल चड़ाकर चन्दन व पीले चावल का तिलक लगाऐ। फिर पूरे विधि विधान से बृहस्पति जी की पूजा करें। पूजा करने के बाद पीले भोजन से ही प्रसाद लगाऐ। इसके बाद Brihaspativar Vrat Katha पढ़नी चाहिऐ। इसके बाद आरती करके केले के पेड़ का पूजन करना चाहिऐ। दिन में एक समय बिना नमक का भोजन करना चाहिऐ। औरतो के लिए यह व्रत बहुत ही अच्छा माना जाता है।
बृहस्पतिवार व्रत कथा
एक समय किसी गॉंव में एक साहूकार रहता था। उस साहूकार के किसी भी चीज की कमी नहीं थी। किन्तु उसकी पत्नी बहुत ही लालची और बेकार थी। एक बार बृहस्पतिवार के दिन एक महात्मा भिक्षा लेने के लिए उसके द्वार पर आया। उस समय वह आगंन में कुछ कर रहीं थी। इस कारण वह साधु महात्मा से कहने लगी मैं घर का काम कर रहीं हूँ इस समय मैं कुछ नही दे सकती। फिर कभी दुबारा आना, यह सुनकर वह महात्मा वहां से खाली हाथ चला गया।
कुछ दिन बाद वह साधु भिक्षा के लिए फिर आया। किन्तु इस बार भी उसे टाल दिया और वह साधु चला गया। तीसरी बार वह साधु भिक्षा के लिए फिर आये। इस बार भी उसको टालना चाह, परन्तु महात्मा बोले अगर तुम बिल्कुल फ्रि हो जाओ तो मुझे भिक्षा जरूर देगी। साधु की बात सुनकर वह साहूकारनी बोली हॉं महाराज यदि ऐसा हो जाऐ तो आपकी बड़ी कृपा होगी। महात्मा ने कहा मैं तुम्हे एक उपाय बताता हूँ।
तुम बृहस्पतिवार के दिन सुबह जल्दी उठो, और पूरे घर में झाडू लगाकर कूड़ा घर के एक कोने में रख दो। फिर स्नान आदि करकें सभी घरवालों से कह दों कोई कुछ भी काम ना करें। और भोजन बनाकर चूल्हे के पीछे रख दो, सामने कभी ना रखो। संध्या के समय अंधेरा होने के बाद दीपक जलाया करों। बृहस्पतिवार के दिन पीले वस्त्र मत पहनों और न ही पीला भोजन करों। यदि तुम प्रत्येक बृहस्पतिवार के दिन ऐसा करोगी तो तुमको घर का कोई काम नहीं करना पड़ेगा।
साहूकारनी ने ऐसा ही किया। वह प्रत्येक बृहस्पतिवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान करके, झाड़ु लगाकर, खाना बनाकर चूल्हें के पीछे रख देती। और किसी को भी पीले वस्त्र नहीं पहननें देती थी। ऐसे में कई बृहस्पतिवार बीत गऐं। धीरे-धीरे उसके घर में सब खत्म हो गया। फिर एक दिन वही साधु महात्मा भिक्षा के लिए आया, और भिक्षा मांगी। परन्तु साहूकारनी ने कहा महाराज मेरे घर में खानें को दाना भी नहीं है। मैं आपको भिक्षा में क्या दूँ।
सेठानी की यह बात सुनकर साधु ने कहा जब तुम्हारें घर में सबकुछ था, तब भी तुम कुछ नहीं देती थी। और अब तो पूरा-पूरा अवकाश है, तब भी तुम कुछ नहीं दे रहीं। आखिर तुम क्या चाहती हो वह कहों। तब साहूकारनी ने दोना हाथ जोडकर प्रार्थना की हे महाराज अब कोई उपाय ऐसा बताओ कि मेरे पहले जैसे धन-धानय हाे जाऐ। अब मैं वचन देती हूँ जैसा आप कहोगें वैसा ही करूगीं।
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सेठानी की विनती सुनकर महात्मा नें कहा तुम प्रत्येक बृहस्पतिवार को प्रात;काल जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूरे घर में अच्छे से झाडू लगाकर, घर को लिपना। और भूखों को खाना खिलाना व दक्षिणा देना। उस दिन पीला भोजना बनाना, और संध्या के समया घी का दीपक जलाना। यदि तुम प्रत्येक बृहस्पतिवार को ऐसा करोगीं और Brihaspativar Vrat Katha करोगी , तो जरूर तुम्हारी सबी मनोंकामनाए पूरीं होगी। अब वह सेठानी वैसा ही करने लगी, ऐसे में धीरे; धीरे उसका घर पहले जैसा ही हो गया। इस प्रकार बृहस्पति की कृपा से अनेक प्रकार के सुख भोगकर दीर्घकाल तक जीवित!
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