Dev Diwali Festival in Hindi देव दिवाली प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। जो की इस वर्ष 26 नवंबर 2023 को देव दिपावली (Dev Diwali) पड़ रही है। इस दिवाली को त्रिपुरारी पूर्णिमा व त्रिपुरोत्सव भी कहा जाता है। जो की पूर भारत वर्ष में बड़ ही हर्षो व उल्लास के साथ मनाया जाता है। मान्यता है की इस दिन सभी देवगण पृथ्वी पर स्थित काशी आते है। और एक साथ दिवाली का जशन मानते है। ऐसे में यदि आप देव दिवाली के बारे में विस्तार से जानना चाहते है तो पोस्ट के अंत तक बने रहे।
Dev Diwali Festival Mahatva (देव दिवाली का महत्व)
कार्तिक माह में जो भी स्त्री व पुरूष स्नान करते है। वो सभी इस दिन देव दिवाली Dev Diwali Festival in Hindi मनाते है। जो की किसी धार्मिक स्थल पर जाकर घी के दीपक जलाते है। और किसी पवित्र नदी में दीप दान (दीपक को पानी में बहाते) है। और अपना कार्तिक माह स्नान पूर्ण करते है। विष्णु पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु जी ने अपना मत्स्यावतार लिया था। उनके इस रूप में अवतार लेने के उपलक्ष्य में देव दिवाली मनाई जाती है। इसके अलावा सिख समुदाय के प्रथम गुरू गुरू नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसी उपलक्ष्य में पूरा सिख समुदाय इस दिन दीपक जलाकर दिवाली मनाते है।
पौराणिक मान्यताओ के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिवजी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस संहार करके स्वर्ग लोक काे मुक्त कराया था। इसी लिए इस पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा कहा जाता है। तथा त्रिपुरासुर नामक भंयकर अत्याचारी राक्षस को मारने के खुशी में सभी देवगण मिलकर खुशी मनाऐ थे। जो आज भी इसी दिन देवता धरती पर आकर देव दिवाली Dev Diwali in Hindi मनाते है।

देव दिवाली कब है Dev Diwali Kab Hai
देव दिवाली कितने तारीख को है:- हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल देव दिवाली कार्तिक पूर्णिमा तिथि (Kartik Purnima) के दिन मनाई जाती है इस साल यह दिवाली 26 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी।
Dev Diwali Shubh Muhurat (देव दिवाली शुभ मुहूर्त)
हिंदू पंचांग के अनुसार देव दिपावली का आांभ 26 नवंबर 2023 को शाम 05 बजकर 08 मिनट पर लगभग शुरू हो जाएगा। उसके बाद 07 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी, आप इसी शुभ मुहूर्त के बीच में देव दिवाली मना सकते है। तथा पूजा कर सकते है। इस दिवाली पर भगवान शिवजी, विष्णु जी व माता लक्ष्मी जी की पूजा का विधान है। तथा सिख धर्म के लोग गुरू नानक जी की पूजा करते है।
देव दिपावली (Kartik Purnima 2023)
इस दिन औरते व्रत रखती है। कहा जाता है की जो कोई स्त्री व पुरूष देव दिवाली का व्रत पूरे विधि विधान व श्रद्धा भाव से करता है उसकी सभी मनोकामनाऐ जल्दी ही पूर्ण होती है। तथा व्रत रखने वाले स्त्री व पुरूष व्रत वाले दिन रात्रि के समय छ: कृत्तिकाओ की पूजा करती है। उसे संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है। ऐ छह कृत्तिकाऐ है- शिवा, सम्भूति, संतति, प्रीति, क्षमा तथा अनुसूया इन सभी की पूजा करने के बाद व्रत रखने वाले को गाय, भेड़, घोड़ा, घी आदि का दान देना चाहिए। जो की अति शुभ माना गया है। तथा रात्रि के समय जागरण् करना चाहिए।
देव दिवाली पूजा विधि (Dev Diwali Puja Vidhi)
- देव दिवाली का व्रत रखने तथा कार्तिक माह में स्नान करने वाले सभी स्त्री व पूरूष को प्रात:काल ब्रह्मा मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करना अति आवश्यक है।
- जिसके बाद सूर्य भगवान को जल चढ़ाकर पीपल व तुलसी के पेड़ में भी पानी चढ़ाऐ।
- इसके बाद भगवान विष्णु जी व माता लक्ष्मी तथा भगवन शिवजी की पूजा पूरे विधि विधान से करनी चाहिए।
- संध्या के समय किसी नदी व सरोवर में जाकर दीप दान करना चाहिए और अपने व्रत का पूर्ण संकल्प करना चाहिए।
- पूजा में फल, फूल, रौली, मौली, चावल, कपूर, घी, नैवेद्य, तुलसी आदि चढाने का विधान है।
देव दिवाली व्रत कथा (Dev Diwali Vrat Katha in Hindi)
एक समय की बात है राक्षस ताड़कासुर के तीन पुत्र थे। तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली जो बड़ हे पराक्रमी थे। एक दिन भगवान शिवजी के बड़ पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुन का वध कर दिया और अपने पिता के कातिल से बदला लेने के लिए उसके पुत्रों ने ब्रह्माजी की घोर तपस्या की। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी बोले मांगो दैत्यराज पुत्रों क्या मांगते हो। ताड़़कासुन के पुत्रों ने अमर होने का वरदान मांगा और कहा की हमे इस संसार में कोई नही हरा सके। किन्तु ब्रह्मा जी ने कहा की तुम तीने इस वरदान के अलावा कोई दूसरा वरदान मांगो। मैं ये वरदान तुम्हे नही दे सकता।
जिसके बाद राक्षक के तीनो पुत्रो ने कहा ही हे ब्रह्मदेव यदी आप हमे अमर होने का वरदान नही दे सकते तो ठीक है। आप हम तीन के लिए तीन नगर बनवाएं और जो हमारा वध करना चाहता है उसके हम हजार वर्ष बाद मिले। उससे पहले नही। और जब हम मिले तो हमे एक ही तीर से मार गिराऐ ऐसा वरदान दिजिऐ। ब्रह्मा जी ने तीनो राक्षक पुत्रो को तथास्तु कहते हुए अंतर्रध्यान हो गऐ। इसके बाद उन तीनो राक्षसो ने मिलकर तीनो लोको पर अपना आधिपत्य जमा लिया क्योकि ब्रह्मा जी के वरदान अनुसर उन्हे मारने वाले हजार वर्ष बाद आऐगा। जिसके बाद सभी देवगण मिलकर भगवन शिवजी के पास गऐ और इस समस्या का सामाधान ढूढने को कहा।
देवताओ की बात सुनकर भगवान शंकर जी ने विश्वकर्मा से कहकर एक भव्य रथ का निर्माण करवाया। और उस रथ में बैठकर तीनो दैत्यो का संहार करने को चल दिऐ। यह देख सभी राक्षस घबरा गऐ। और हाकार मचाने लगे। दानवों व देवों में भीषण युद्ध छिड़ गया युद्ध के समय जब ताड़कासुन के तीनो पुत्र एक साथ आऐ तो भगवान शंकर ने उन्हे एक ही तीर में मार गिराया। और तीनो लोकाे को राक्षसो से मुक्त कराया।
जिसके बाद सभी देवो ने भगवान शंकर को त्रिपुरारी नाम दिया। इसी विजय की खुशी में सभी देवता मिलकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन धरती पर आऐ। आरे काशी में देव दिवाली मनाई। और तभी से लेकर आज तक प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली बड़ी धूम धाम से मनाई जाती है।
डिस्कलेमर:- दोस्तो आज के इस लेख में हमने आपको देव दिवाली के बारे में विस्तार से बताया है। यह जानकारी आपको पौराणिक मान्यतााअें, कथाओं, पंचांग के अनुसार बताई है आपको यह बताना अति जरूरी है Onlineseekhe.com किसी प्रकार की पुष्टि नहीं करता है। अधिक जानकारी के लिए किसी संबंधित विशेषज्ञ, पंडित, विद्धान के पास जाना चाहिए। यदि हमारे द्वारा बताई हुई जानकारी अच्छी लगी हो तो लाईक करे व अपने मिलने वालो के पास शेयर करे। और आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्न है तो कमंट करके जरूर पूछे।धन्यवाद
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