दुबड़ी सातें व्रत की कथा | Dubadi Saate Vrat Katha Read in Hindi | सातें व्रत कथा ललिता सप्तमी व्रत कथा | Saate Vrat Katha | Dubadi Saate , दुबड़ी सातें की कहानी, Dubdi Saate ki Kahani, Dubdi Saptami Vrat katha in Hindi, Santan Saptami Vrat katha in Hindi,
Dubadi Saptami Vrat katha:- भाद्रपद महिने में शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि को दुबड़ी/ललिता/संतान सप्तमी मनाई जाती है। इस दिन औरते अपनी संतान कि सुरक्षा व उसकी मंगलकामना हेतु व्रत रखती है। और कुंवारी लड़किया अपने भाई कि कामना हेतु दुबड़ी सप्तमी व्रत रखती है इस सातें का ज्यादा महत्व उत्तरी भारत की तरफ है। Dubadi Saate Vrat Katha in Hindi
भविष्य पुराण के अनुसार भाद्रपद महिने में शुक्लपक्ष कि सप्तमी तिथि भगवान सूर्य नारायण को समर्पित है। इस दिन भवगान सूर्य के अलावा भगवान शिवजी और माता पार्वती कि पूजा-अर्चना करी जाती है। आइए जानते है दुबड़ी/ललिता/संतान सप्तमी व्रत के बारें में पूरी जानकारी………
दुबड़ी सप्तमी का महत्व/Santan Saptami ka Mahatva
संतान सप्तमी का महत्व:- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद महिने कि शुक्ल पक्ष सातें को संतान सप्तमी/ दुबड़ी सातें/ललिता सप्तमी का व्रत संतान सुखा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। जिन महिलाओं कि गोद सूनी यानी निसंतान है उनको यह व्रत अवश्य करना चाहिए, कहा जाता है कि इसके प्रभाव से उसे संतान प्राप्ति अवश्य होती है। जिन महिलाओं के बच्चे है वो अपने बच्चों कि सुरक्षा हेतु दुबड़ी सातें का व्रत हर साल करती है।

दुबड़ी सातें पूजा सामग्री (Dubadi Saate Puja Shamgri)
- एक मट्का
- मिट्टी
- जल
- दूध
- चावल
- रौली व मौली
- आटा,
- घी व चीनी
दुबड़ी सातें का शुभ मुहूर्त (Dubadi Saate ka Shubh Muhurt)
तारीख | वार | शुभ मुहूर्त |
21 सितंबर 2023 | गुरूवार | दोपहर 02:14 मिनट पर |
22 सितंबर 2023 | शुक्रवार सोमवार | दोपहर 01:35 मिनट पर |
दुबड़ी सातें पूजा विधि (Dubadi Saate Puja Vidhi)
- इस दिन व्रत रखने वाली सभी स्त्रीया प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर भगवान सूर्य को पानी चढ़ाऐ तथा इसके बाद पीपल व तुलसी के पेड़ में पानी चढ़ाऐ।
- इसके बाद घर के मंदिर के पास एक पटरे पर दुबड़ी (कुछ बच्चों की मूर्ति, सर्पो की मूर्ति, एक मटका, और एक औरत की मूर्ति) मिट्टी से बना लें।
- इसके बाद इनका जल, दूध, चावल, रोली, आटा, घी, चीनी आदि मिलाकर एक लोई बनाऐ और इससे पूजा करे।
- पूजा में भीगा हुआ थोड़ा स बाजरा भी चढाऐ।
- और पूरे विधि-विधान से पूजा करे पूजा करने के बाद दुबड़ी व्रत की कथा (Dubadi Saate Vrat Kath) सुने। कथा सुनने के बाद प्रसाद लगाऐ।
- इसके बाद मोठ व बाजरा का बायना निकालकर अपनी-अपनी सांस के पाँव छूकर ये बायना उनको दे दे।
- यदि आपकी किसी पुत्री का विवाह उसी वर्ष हुआ हो तो उसका भी उजमन कराना चाहिए।
- उजमन में मोंठ व बाजरा की छोटी-छोटी 13 कुड़ी करके उस पर एक साड़ी, ब्लाऊज रखकर और यथा शक्ति रूपया रखकर अपनी सासूजी के पैरा छूकर दे देना है।
- ये सब करने के बाद व्रत रखने वाली स्त्रीयो काे ठंड़ा भोजन करना चाहिए।
दुबड़ी सातें व्रत कथा (Dubadi Saate Vrat Katha in Hindi)
Santan Saptami Vrat Katha in Hindi:- प्राचीन समय की बात है एक गॉव में साहूकार रहता था। उसके सात पुत्र थे जब वो पुत्र शादी के लाइक हुए तब सेठ ने सबसे बड़े बेटे का विवाह तय किया। किन्तु विवाह करने के बाद उसक बड़ा बेटा मर गया। जिससे सेठ को बहुत दुख हुआ। इसी तरह सेठ जिस बेटे की शादी करता वह मर जाता। इस प्रकार सेठ के सात पुत्रो में से छ: बेटे मृत्यु को प्राप्त हो गए।
एक दिन सेठ के सबसे छोटे बेटे के विवाह की बात चली और शादी पक्की हो गई। शादी में लड़के की बुआ यानी साहूकार की बहन अपने ससुराल से शादी में आ रही थी। बुआ को रास्ते में एक बुढि़या मिली, बुढिया ने उससे पूछॉं की तु कहॉं जा रही हो। बुढिया के पूछने पर बुआ ने जवाब दिया मैं अपने भतीजे की शादी में जा रही हॅू।
किन्तु इससे पहले मेरे छ: भतीजे विवाह होते ही मर गए, और यह सातवॉं भतीजा है। यह सुनकर वह बुढिया बोली की तुम्हरा यह भतीजा भी घर से बाहर निकलते ही मर जाएगा। अगर बच गया तो रास्ते में एक पेड़ के नीचे दबकर मर जाएगा। अगर वहा भी बच गया तो ससुराल में दरवाजे के गिरने से दबकर मर जाएगा। यदि वहा से बच गया तो सावतें भॉवर पर सर्प के काटने से मर जाएगा।
यह सुनकर बुआ को सदमा लग गया और वह बुढिया से अपने भतीजे को बचाने का उपाय पूछा। की ”मॉं आपको पता की वह किस कारण मरेगा तो आपको यह भी पता होगा की उसे मैं कैसे बचाए। बुआ की बात सुनकर बुढिया ने कहा ”है तो सही परन्तु बहुत कठिन है। बुढिया ने बुआ को बताया की जब तुम्हारा भतीजा बरात लेकर घर से बाहर निकले तो पीछे के दरवाजे से निकालना।
इसके बाद रास्ते में किसी भी पेड़ के नीचे मत बैठने देना, तथा ससुराल में पीछे के दरवाजे से प्रवेश करवाना। उसके बाद भॉवरों के समय कच्चे करवे में कच्चा दूध और गरम लकड़ी लेकर बैठ जाना। जब भॉवर पड़े तो उसे इसने के लिए सॉप आएगा तो सर्प के गले को गर्म लकड़ी से दाग देना। इसके बाद सॉपिन आएगी और सॉप को मॉगेगी। तो तुम पहले अपने छ: भतीजों को मांग लेना। यह कहकर बुढिया वहा से चली गई।
इसके बाद बुआ घर आई और सभी से मिली किन्तु किसी से भी बुढिया वाली बात नही कही। जब बारात जाने लगी तो बुआ ने अपने भतीजे को घर के पीछे के दरवाजे से बाहर निकाला तो सभी बुआ को डाटने लगे। किन्तु बुआ नही मानी।और थोड़ी देर बाद घर का मुख्य दरवाजा गिर गया। यह सब देख हैरान हो गए, जब दुल्हा जाने लगा तो बुआ ने कहा की मैं भी बारात में जाऊगी। सभी ने बहुत समझाया किन्तु वह नहीं मानी और दुल्हे के साथ बारात में चल दी।
रास्ते में एक पेड़ के नीचे बारात रूक गई किन्तु बुआ दुल्हे को लेकर पेड़ से दूर बैठ गई। इस पर भी बुआ को सबने डाटा। किन्तु देखा की जैसी ही बारात उस पेड़ के नीचे से गई तो पेड़ अपने आप गिर गया। इस पर सभी ने बुआ की प्रशंसा की। इसके बाद बारात लड़की के यहा पहुची तो बुआ ने बारात को पीछे के दरवाजे से अन्दर जाने के लिए कहा और सभी बराती और दूल्हा जैसे ही अन्दर घुसे तो घर का मुख्य दरवाजा अपने आप गिर गया। और सभी ने बुआ को साबाशी दी।
इसके बाद भॉंवरें(फेरे) पड़ने की रस्म हुयी तो बुआ ने एक कच्चे करवे में कच्चा दूध मगंवाया और रसोई की भट्टी में से एक गर्म लकड़ी मगवाकर अपने पास रख ली। जब सातवीं भॉवर (फेरे) पड़ने लगे तो वहा पर अचानक एक सॉप आ गया। बुआ ने वह कच्चे दूध का करवा उस सांप के आगे रख दिया, जैसे ही वह सांप दूध पीने के लिए कच्चे करवा के अन्दर मुह डाला तो बुआ ने सांप की गर्दन पर गर्म लकड़ी का दाग लगा दिया। सापं को छुपा दिया
इसके बाद सॉपिन वहा पर आयी और बुआ से सांप को मांगने लगी तो बुआ ने कहा- ”पहले तुम मेरे छ: भतीजो को लेकर आओ। तब मै तुम्हे तुम्हारा सांप दूगी। इसके बाद उस सांपिन ने उसके पूरे छ: भतीजों को जीवित कर दिया, तब बुआ ने सांप सांपिन को लोटा दिया, और वो दोनो वहा से चले गए। यह दृश्य देखकर वहा मौजूद सभी लोग हैरान हो गए। साहूकार अपने मरे हुए छ: बेटो को पुन: पाकर बहुत खुश हुआ।
इसके बाद विवाह सम्मपंन हुआ तो बारात घर वापस आई तो बारात के वापिस आने की खुशी में सप्तमी के दिन दुबड़ी सातें (Dubadi Saate Vrat Katha)रखी और उसका व्रत किया। उसी दिन से भाद्रपद माह शुक्लपक्ष की सप्तमी को दुबड़ी सातें कहते है। दुबड़ी मैया जैसे तूने बुआ के सातो भतीजे दिए वैसे ही सबकी रक्षा करना।
NOTE:- दोस्तो आपको बता दे की दुबड़ी सातें वाले दिन भारत में कई जगह पर ललिता सप्तमी का व्रत रखते है जिसकी पूरी जानकारी नीचे प्रदान कि गई है।
Lalita Saptami Vrat Katha in Hindi | ललिता सप्तमी/संतान सप्तमी व्रत कथा व पूजा विधि यहा से पढ़े
Santan Saptami Vrat Katha in Hindi:- दोस्तो भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को ललिता/संतान सप्तमी के रूप में मनाई जाती है। इस बार यह सप्तमी 13 सितम्बर 2021 सोमवार को है। यह व्रत औरते अपने बच्चो की लम्बी उम्र व सुरक्षा बनाऐ रखने के लिए रखती है। तथा महाभारत व ग्रंथो में ऐसी मान्यत है की इस दिन राधारानी की सहेली ललिता का जन्म हुआ था। इसी उपलक्ष्य पर ललित सप्तमी का पर्व मनाया जाता है।
खासतौर पर यह त्यौहार वैष्णव समुदाय के लोग बड़े ही धूम धाम से मनाते है तथा औरते इस दिन पूरी श्रद्धा के अनुसार ललिता सप्तमी का व्रत रखती है। ललिता सप्तमी को संतान सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसे में अगर आप भी ललिता/संतान सप्तमी को व्रत रखते है तो आर्टिकल के माध्यम से बताई गई सभी जानकारी व व्रत कथा पूजा विधि को पढ़कर या किसी से सुनकर आप अना यह व्रत पूर्ण कर सकते है। पोस्ट के अन्त तक बने रहे।
ललिता सप्तमी का महत्व (Lalita Saptami Vrat Mahatav)
आपकी जानकारी के लिए बता दे ललिता सप्तमी व्रृंदावन की एक गोपी जिसका नाम ललिता था। जो राधाजी की सबसे विश्वसनीय सहेली थी। यह व्रत पहली बार भगवान कृष्ण जी के बताए जाने पर किया गया था। इस व्रत को नव विवाहित जोडो को स्वस्थ और अच्छे बच्चे का आशीर्वाद तथा जिनके बच्चे है उनकी लम्बी उम्र व स्वास्थ्य के लिए रखा जाता है। जिसे भगवान ने राधाजी की सखी ललिता का नाम दे दिया। यह गोपी सभी अष्टगोपिया (आठ सखिया) जो ये है श्री विशाखा, श्री चित्रलेखा, श्री तुंगविद्या, श्री चंपकलता, श्री इंदुलेखा, श्री रंगदेवी एवं श्री सुदेवी इन सभी में से ललिता सबसे प्रिय थी। आज के समय में उत्तरप्रदेश राज्य के मथुरा जिले में ललिता देवी का विशाल मंदिर है।
ललिता सप्तमी व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त (Lalita Saptami Puja ka Shubh Muhurat)
तारीख | शुभ मुहूर्त |
21 सितंबर 2023 | दोपहर 02:14 मिनट |
22 सितंबर 2023 | दोपहर 01:35 मिनट |
ललिता/संतान सप्तमी व्रत की पूजा विधि (Lalita Saptami Puja Vidhi)
- ललिता/संतान सप्तमी का व्रत रखने वाली स्त्री को प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होना चाहिए।
- उसके बाद भवगान सूर्य को पानी चढाकर पीपल व तुलसी के पेड़ में पानी चढ़ाऐ।
- इसके बाद दोपहर के सयम चौक बनाकर उसके ऊपर भगवान विष्णु (कृष्ण) तथा भगवान शिव व पार्वती की मूर्ति रखी जाती है।
- पूजा मे सबसे पहले इन सभी मूर्तियो को जल से स्नान करऐ तथा चन्दन का लेप लगाकर पंचामृत से अभिषेक करे।
- अब घी का दीपरक जलाकर पूरे विधि-विधान से पूजा करे। पूजा करने के बाद भगवान कृष्ण के हाथो में एक डोरा बांधे।
- अब उस डोरे को खोलकर अपने बच्चे की कलाई पर बांध देना है। इसके बाद भगवान की मूर्तियो का प्रसाद चढ़ाऐ।
- इसके बाद ललिता/संतान सप्तमी व्रत कथा () सुने या फिर किसी ओर से सुने।
- कथा सुनने के बाद भगवार विष्णु, कृष्णजी, भगवान शिव, माता पार्वती की आरती करे। आरती करने के बाद प्रसाद को वहा मौजूद सभी को बांट दे।
संतान सप्तमी व्रत कथा (Santan/Lalita Saptami Vrat Katha in Hindi)
द्वापर युग की बात है एक बार भगवान कृष्ण जी से पांण्डु पुत्र युधिष्ठर ने पूछा संतान सप्तमी क्या है। तब भगवान ने उसे बताया की यह व्रत लोमेश ऋषि ने मेरे माता-पिता (देवकी, वासुदेव जी) को सुनाई थी। मता देवकी ने अपने छ: पुत्रो को राजा कंस के द्वारा मार देने पर संतान शोक का भार था। यही भार उताने के कारण उन्होने संतान सप्तमी का व्रत बताया। तब माता देवकी व वासुदेव जी संतान सप्तमी का व्रत पूरे श्रद्ध से रखा और व्रत की पूजा करने के बाद लोमेश ऋषि से कथा सुनाने के लिए कहा।
एक समय अयोध्या के राजा नहुष था उसकी पत्नी का नाम चन्द्र मुखी था। चन्द्र मुखी की रूपमती नाम की एक सखी थी, जो नगर के ब्राह्मण की पत्नी थी। दोनो सखी में बहुत प्रेम था, ज्यादातर दाेनो एक साथ समय व्यतीत करती थी। एक दिन दोनो एक साथ सरयू नदी पर स्नान के लिए गई तो वहा पहले से ही बहुत सी स्त्रियॉं संतान सप्तमी का व्रत की पूजा कर रही थी। वो दोनो सखी भी वही रूक गई और संतान सप्तमी की कथा सुनने लगी।
संतान सप्तमी की कथा सुनने के बाद दोनो सखीयो के मन में संतान प्राप्ति का ख्याल आया और दोनो संतान का सुख पाने के लिए संतान सप्तमी का व्रत करने के लिए कहा। उसके बाद दोनो स्नान करके घर आई तो वो दोनो भूल गई और कुछ वर्षो के बाद दोनो की मृत्यु हो गई। मरने के बाद दोनो को पुन: जन्म में पशु योनी का रूप मिला। ऐसे ही मृत्यु व जन्म के चक्कर में कई वर्ष बीत गई
एक बार फिर से उन दोनो को मनुष्य की योनी में जन्म लिया इस जन्म में राजा की पत्नी चन्द्रवती का नाम ईश्वरी था। और ब्राह्मण की पत्नी रूपमती का नाम भूषण था। इस जन्म में भी ईश्वरी राजा और भूषण ब्राह्मण की पत्नी थी, और इस जन्म में भी दोनो सखीया थी। किन्तु इस जन्म में भूषणा को पिछले जन्म की पूरी कथा याद थी। इस कारण उसने संतान सुख पाने के लिए भाद्रपर माह की शुक्लपक्ष की सप्तमी को संतान सप्तमी का व्रत पूरे विधि-विधान से किया। व्रत के प्रभाव से भूषणा को आठ पुत्र हुए। परन्तु ईश्वरी को पिछले जन्म की बात याद नही होने के कारण उसने व्रत नही किया।
जिस कारण उसके कोई पुत्र नहीं हुआ। किन्तु भूषणा के आठ पुत्र देखकर उससे वह इर्ष्या करने लगी और उसके पुत्र को मारने के लिए कई प्रकार के षढ़यंत्र रचे। किन्तु भूषणा के पुत्रो का वह कुछ नही बिगाड़ सकी। आखिर में ईश्वरी थक हारकर भूषणा को सभी सच्चाई बता दी और क्षमा मॉगी। तब भूषणा ने उसे पूर्व जन्म की सभी बाते याद दिलाई और कहा की तुम भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष की संतान सप्तमी का व्रत करो।
कुछ दिनो के बाद संतान सप्तमी का व्रत आया और ईश्वरी ने यह व्रत पूरे विधि-विधान से श्रद्धा के अनुसार रखा। और कुछ दिनो के बाद वह गर्भवती हुयी और नौवे महीने ईश्वरी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया, पुत्र सुख पाकर वह बहुत खुश हुई। इसी तरह जो कोई स्त्री भाद्रपद महीने में शुक्लपक्ष की सातें का व्रत रखेगी उसे संतान सुख की प्राप्ति होगी।
डिस्कलेमर:- दोस्तो आज की इस पोस्ट में माध्यम से हमने आपको दुबड़ी, ललिता एवं संतान सप्तमी व्रत कथा व पूजा विधि (Dubadi Saate Vrat Katha in Hindi) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी बताई है। जो केवल पौराणिक मान्यताओं व कथाओं के आधार पर बताया है आपको बताना जरूरी है कि Onlineseekhe.com किसी प्रकार कि पुष्टि नहीं करता है। विशेष जानकारी हेतु किसी संबंधित विद्धान, पंडित, आर्चाय के पास जाए, यदि आप सभी को हमारा यह लेख पंसद आया हो तो लाईक करे व अपने मिलने वालो के पास शेयर करे। यदि आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्न है तो कमंट करके जरूर पूछे। धन्यवाद
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