Dol Ekadashi Vrat Katha in Hindi | पद्मा/परिवर्तिनी व जलझूलनी ग्‍यारस व्रत की कथा व पूजा विधि यहा से पढ़े

Parivartini Ekadashi Vrat kab Hai:- दोस्‍तो आपको बता दे की बहुत जल्‍दी ही डोल ग्‍यारस का व्रत आने वाला है। वैसे तो वर्ष की कुल 24 एकादशी (ग्‍यारस) में से सबसे महत्‍वपूर्ण भाद्रपद महीने की शुक्‍लपक्ष की एकादशी को डोल ग्‍यारस आती है। पुराणों व ग्रथो में कहा गया है। की आषढ़ महीने में अपने शेष शैया पर निद्रा करते हुए भगवान विष्‍णु जी भाद्रपद माह शुक्‍लपक्ष की एकादशी को करवट बदलते है। जिस कारण इसे पद्मा एकादशी और परिवरर्तनी एकादशी कहते है। Ekadashi Vrat Katha in Hindi

यह एकादशी श्री कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी के 18 दिन बाद आती है। इस बार पद्मा एकादशी 25 सितंबर 2023 के दिन है। इसी दिन की माता यशोदा नें भगवान कृष्‍ण जी का कुऑं पूजन किया था तथा पहली बार पालने में झूला झुलाया था। जिस कारण इस एकादशी को जल झूलनी ग्‍यारस भी कहा जाता है। इस दिन स्‍त्री व पुरूषो अपने बच्‍चो की लम्‍बी उम्र की कामना व अपनी सभी मनोकामनाए पूर्ण करने के लिए डोल एकादशी का व्रत (Parivartini Ekadashi Vrat) रखते है। ऐसे में अगर आप भी जलझूलनी ग्‍यारस का व्रत रखते है इस आर्टिकल के माध्‍यम से बताई हुई व्रत कथा व पूजा विधि को पढ़कर आप अपना यह व्रत पूर्ण कर सकते है।

Ekadashi Vrat Katha in Hindi

डोल एकादशी का महत्‍व (Jal julni Gyaras ka Mahatva)

आपको बता दे की इस बार डोल एकादशी 25 सितंबर 2023 के दिन है। यह एकादशी सभी 24 एकादशीयो में से सबसे बडी़ है। जिसे करने से मनुष्‍य के सभी पाप मिट जाते है तथा उसके सभी मनोरथ पूरे होते है। पद्मा एकादशी इसके दूसरे दिन वामन द्वादशी का व्रत आता है। पुराणों व ग्रथो में जलझूलनी ग्‍यारस की तुलना अश्रव मेघ यज्ञ से किया है। इस व्रत वाले दिन भगवान विष्‍णु जी की और बालगोपाल कृष्‍ण जी की पूजा की जाती है। यह व्रत कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी के 18 दिनों के बाद आता है।

जल झूलनी ग्‍यारस का शुभ मुहूर्त (Parivartini Ekadashi ka Shub Muhurt)

भाद्रपद माह की शुक्‍लपक्ष की परिवर्तनी एकादशी का शुभ मुहूर्त की शुरूआत 25 सितंबर को प्रात: 07:55 मिनट पर होकर 26 सितंबर 2023 को सुबह 05 बजे समाप्‍त हो जाएगी। व्रत रखने वाले सभी स्‍त्री व पुरूष इस शुभ मुहूर्त के बीच में व्रत पूजा कर सकते है।

जल झूलनी ग्‍यारस का व्रत रखने वाले सभी स्‍त्री व पुरूष व्रत का पारण (व्रत तोड़ने) खोलने का समय 26 सितंबर 2023 को दोपहर 01:25 मिनट से 03:49 मिनट के मध्‍य में कर कते है। इस मुहूर्म के बीच में आप अपना व्रत का पारण कर सकते है।

  • विष्‍णु पूजा का समय:- प्रात: 09:12 मिनट से 10:42 तक
  • एकादशी व्रत पारण का समय:- दोपहर 01:25 से दोपहर 03:49 तक (26 सितंबर 2023 को)
  • राहुकाल :- सुबह 07:41 से सुबह 09:12 मिनट पर

पद्मा एकादशी व्रत की पूजा विधि (Dol Ekadashi Vrat Puja Vidhi in Hindi)

  • जल झूलनी ग्‍यारस का व्रत (Padma Ekadashi Vrat) रखने वाले स्‍त्री व पुरूष को प्रात:काल काल जल्‍दी उठकर स्‍नान आदि से मुक्‍त होना चाहिए।
  • इसके बाद भगवान सूर्य को पानी चढ़ाकर पीपल व तुलसी के पेड़ में पानी चढ़ाए।
  • जब भगवान कृष्‍ण जी को झूले में बैठाकर नगर के चारो ओर भ्रमण के लिए ले जाते है ताब उस झूले में बैठ गोपाल जी के भोग लगाए।
  • इसके बाद झूले के नीचे से तीन बार निकले और भगवान विष्‍णु जी (कष्‍णजी) का ध्‍यान करे।
  • जब झूला वापस मंदिर में आ जाऐ तो भगवान कृष्‍ण जी के दर्शन करके प्रसाद ग्रहण करे उसके बाद संंध्‍या से पहले व्रत का पारण करे।
  • ध्‍यान रहे की डोल ग्‍यारस के व्रत के अन्‍न नहीें खाना चाहिए। केवल फल, चांदी, साबुत दाने, सैवया आदि को उत्तम माना गया है।
  • इस दिन जो भी मनुष्‍य पूरे श्रद्धा भाव से भगवान विष्‍णु जी के लिए यह व्रत रखता है। तो उसको अपने द्वारा किये गए सभी पापो से मुक्ति मिल जाती है।

जल झूलनी ग्‍यारस कैसे मनाते है (How to Celebrate Jal Jhulani Gyaras)

एकादशी कैसे मनाते है एकादशी नियम

Ekadashi Vrat Katha in Hindi

महालक्ष्‍मी व्रत कथा पूजा विध‍ि एवं शुभ मुहूर्त जानिए

  • खात तौर पर डोल ग्‍यारस/पद्मा/परिवर्तनी/ जल झूलनी ग्‍यारस भारत के उत्तरी राज्‍यों में बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
  • इस दिन देश के सभी मंदिराे को बहुत ही अच्‍छा सजाया जाता है। साथ ही कान्‍हाजी के मूर्ति को पूरा श्रृंगार किया जाता है।
  • साथ ही बहुत ही सुन्‍दर झूला डालकर उसमें लड्डू गोपाल जी काे झूलाते है। तथा डोलो में बाल गोपाल को बिठाकर उसे पूरे शहर, गॉंव, नगरो के चारों तरफ बैड़ बाजौ के साथ सुन्‍दर झांकी निकाली जाती है।
  • सभी व्‍यक्ति इस सुन्‍दर डोला के नीचे से निकलकर अपनी मन्‍नते मागंते है।
  • इसके बाद गोपाल जी की झांकी को किसी पवित्र नदी या तालाब के किनारे ले जाकर बाल गोपाल को स्‍नान कराते है। तथा झांकी में मौजूद सभी लोग भी स्‍नान करते है।
  • स्‍नान कराने के बाद बालगोपाल जी को नाव में बैठाकार नदी के सभी घाटो पर घुमाया जाता है कृष्‍ण जी की इस झांकी को देखने के लिए नदीयो के सभी घाटो पर बहुत ज्‍यादा भीड़ लगी रहती है।
  • कम से कम 3 या 4 घंटे की झांकी निकालने के बाद वापर बाल गोपल जी को मंदिर में लाकर उसकी जगह पर स्‍थापित कर देते है।
  • इसके बाद सभी भक्‍तो को प्रसाद वितरण किया जाता है। प्रसाद के रूप में धनिया की पजूरी, तुलसी, खीरा आदि दिऐ जाते है।
  • आपको बता दे डोल ग्‍यारस को उत्तर प्रदेश व मध्‍यप्रदेश राज्‍यो में बड़ी धूम-धाम से मनाया जात है।

डोल ग्‍यारस की कथा (Padma Ekadashi Vrat ki Katha)

द्वापर युग में जब भगवान कृष्‍ण जी ने धरती पर धर्म की स्‍थापन के लिए जन्‍म लिया था। तब उनका जन्‍म एक कारागार में हुआ किन्‍तु अपनी माया के तहत वासुदेव जी के द्वारा गोकुल में जा पहुचे। गोकुल में बाबा नन्‍द के यहा पर आऐ और उसी समय माता यशोदा के जन्‍मी पुत्री के जगह स्‍वयं सो गए। माता यशोदा ने सोचा की मेरे को पुत्र रत्‍न की प्राप्‍ति हुई है।

जब कृष्‍ण जी 18 दिन के हो गऐ तब माता यशोदा ने पूरे घर को पवित्र कर भगवान के बालरूप अवतार का जलवा पूजन किया। तथा इसी दिन माता यशोदा ने पहली बार अपने बाल गोपाल कृष्‍ण जी को घर से बाहर निकाला था। इस दिन पूूरे गोकुल वासियो ने बड़ा ही जश्‍न मनाया और झांकी का आयोजन किया। इसी उपल्‍क्ष में तब से लेकर आज तक भगवान कृष्‍ण जी की जल झूलनी ग्‍यारस वाले दिन सुन्‍दर झांकीया निकाली जाती है।

जलझूलनी एकादशी व्रत कथा/Jal Jhulni Ekadashi Vrat Katha in Hindi

त्रेतायुग के दौरान राक्षस कुल का महान राजा बलि था जो भक्‍त प्रह्लाद का पौत्र था। राजा बलि बड़ा ही दयालु, दान दाता और भगवान का परम भक्‍त होने के कारण उसी प्रसंशा चारो चरफ फैली हुई थी। देवताओं के राजा इंद्र ने राजा बलि के माता व पिता को धोखे से मारा उसी का बदला लेने के लिए बलि नहीं स्‍वर्ग लोक पर आक्रमण बोलकर वहा का राजा बन गया। अब स्‍वर्ग लोक पर भी राक्षसो का राज होने के कारण सभी देवतागण चिंता में डूब गए और मदद के लिए भगवान विष्‍णु जी के पास क्षीरसागर में आ गए।

जिसके बाद राजा बलि को सबक सिखाने के लिए विष्‍णु जी देवताओं की माता आदिति के यहा पर वामन रूप में अवतार लिया और राजा बलि की यज्ञ शाला में आ गया। राजा से अपनी कुटिया बनाने के लिए मात्र तीन पग भूमि मांगा, जब राजा ने यह बात सुनी तो वह जोर से हंसने लगा और कहा की हे ब्राह्मण बालक तीन पग भूमि के लिए तुम्‍हे यहा आने की आवश्‍यकता नहीं थी। उसके बाद राजा ने कहा की ठिक है यह पूरी भूमि मेरी है तुम्‍हे जहा पर अच्‍छी लगे वही पर अपने पैरो से तीन पग भूमि माफ लो..

उसके बाद भगवान विष्‍णु जी (वामन भगवान) ने अपना पहला पैर उठाया और अपना विशाल रूप धार किया। पहला पैर में धरती लोक और पाताल लोक को माफ लिया, जिसके बाद दूसरे पैर में स्‍वर्ग लोक ब्रह्मलोक आदि माफ लिया। उसके बाद वामन भगवान ने कहा हे राजन अब इस पूरी सृष्‍टि पर कुछ भी शेष नहीं रहा, मैं दो पग में पूरी सृष्टि को माफ लिया। अब तुम बताओं वचन के अनुसार तीसरा पग कहा पर रखे जिससे मेरा वचन पूरा हो सके।

उसके बाद राजा बलि ने अपने दोनो हाथ जोड़कर कहा ही हे भगवान अब केवल मेरा मुकुट और मेरा शीश है जो केवल और केवल मेरा है आप तीसरा पैर इस पर रखो और अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करों। उसके बाद राजा के सिर पर भगवान ने तीसरा पैर रखा, और राजा अपनी प्रजा सहित पाताल लोक में चला गया, उसके बाद वामन भगवान ने कहा की हे राजन मैं तुम्‍हारी इस दानवीरता से बहुत ज्‍यादा प्रसन्‍न हुआ।

इसीलिए जब तक यह सृष्टि होगी तुम्‍हारा नाम सदैव आदर के साथ लिया जाएगा, और अब तुम यहीं पर रहकर अपना राज करों। द्वावपर युग में तुमसे दुबारा भेट करूगा उसके बाद भगवान ने अंतरध्‍यान कर लिया। इस दिन वामन भगवान ने कहा था की जो कोई व्‍यक्ति भाद्रपद महिने की शुक्‍लपक्ष एकादशी वाले दिन ग्‍यारस का व्रत करेगा उसके सभी पाप मुक्‍त हो जाएगे। और उसे इस एकादशी का फल हजारो अवश्‍मेद्य यज्ञ के बराबर मिलेगा।

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डिस्‍कलेमर:- दोस्‍तो आजा के इस लेख में हमने आपको डोल/पद्मा/परिवर्तनी एवं जल झूलनी एकादशी के बार में सम्‍पूर्ण जानकारी प्रदान की है। जो आपको पौराणिक मान्‍यताओं व कथाओं के आधार पर बताया है आपको बताना जरूरी है Onlineseekhe.com किसी प्रकार की पुष्टि नहीं करता है। विशेष रूप से जानने के लिए किसी विशेषज्ञ, पंडित व विद्धन के पास जाएगा। यदि आप सभी को हमारा यह लेख पंसद आया है तो लाइक करे व अपने मिलने वाले के पास शुयर करे। अगर आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्‍न है तो कंमट करके जरूर पूछे। धन्‍यवाद

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