Gopashtami in Hindi | गोपाष्‍टमी व्रत कथा व पूजा विधि के बारे में यहा से जाने

Gopashtami in Hindi दोस्‍तो कार्तिक मास की शुक्‍लपक्ष की अष्‍टमी को ही गोपाष्‍टमी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है इस दिन भगवान श्री कृष्‍ण जी अपने बाल्‍काल में पहली बार गौ (गाय) चराने के लिए वन में गऐ थे। इस दिन कार्तिक माह की अष्‍टमी होने के कारण इसे गोपाष्‍टमी कहा जाता है। जो की इस वर्ष 12 नवबंर 2021 शुक्रवान के दिन पड़ रही है। बहुत सी औरते इस दिन गोपाष्‍टमी का व्रत रखती है जिसमें गाय की पूजा का विधान है। ऐसे में यदि आप भी गोपाष्‍टमी का व्रत रखते है तो आर्टिकल में बताई गई गोपाष्‍टमी व्रत कथा व पूजा विधि को पढ़करन आप अपना व्रत पूर्ण कर सकती है। तो चलिऐ पोस्‍ट के अंत तक बने रहे।

Gopashtami (गोपाष्‍टमी का महत्‍व)

हमारे हिन्‍दु धर्म में गाय को हमारी माता के रूप में माना गया है तथा इसे एक उच्‍च स्‍थान दिया गया है। शास्‍त्रों व पुराणों में कहा गया है की गाय में सभी देवी व देवताओ का वास होता है। इसी लिए इसे गाय माता कहा जाता है। इसी कारणवश आज भी हिन्‍दु धर्म में लोग गाय की पूजा पूरे विधि-विधान से करते है। पौराणिक मान्‍यताओ के अनुसार गाय की उत्‍पति समुद्र मंथन के समय हुई थी। कहा जाता है की गाय की पूजा करने वाले लोग सभी प्रकार के सुख भोगते है और उनका जीवन सृमद्ध होता है।

गाय माता की पूजा का विशेष योगदान द्वापर युग में भगवान कृष्‍ण जी के द्वारा की गई है। जिसके बाद यह पंरम्‍परा चली आ रही है। वैसे तो प्राचीन काल में भी सभी ऋषि मुनि अपने-अपने आश्रमों में गाय का निवास रखते थे। और यदि काेई यज्ञ या फिर कोई शुभ कार्य होता था तो सबसे पहले गाय माता की पूजा की जाती थी। जिसके बाद आदि कार्य पूर्ण करवाऐ जाते थे। और आज के दौर में भी लोग गाय की पूजा करते है।

गोपाष्‍टमी

गोपाष्‍टमी कब है Gopashtami Kab Hai

गोपाष्‍टमी क्‍यो मनाई जाती है:- कार्तिक मास की शुक्‍लपक्ष की अष्‍टमी पर गापोष्‍टमी का पर्व द्वापर युग से मनाने की पंरपरा चली हुई है। कहा जाता है की भगवान श्री कृष्‍ण जी ने द्वापर युग के दौरान अपनी कनिष्‍ठ ऊंगली पर धारण करके पूरे गोकुल वासियों को वर्षा से बचाया था। जब भगवान इंद्र जी का अहंकार आठवें दिन समाप्‍त हुआ उसके बाद अपने अंगुली से पर्वत को नीचे ऊतारा था। उसी पल से पूरे ब्रज वासी हर साल कार्तिक मास की शुक्‍ल पक्ष की अष्‍टमी तिथि‍ को गोपाष्‍टमी पर्व मनात ेळै।

गोपाष्टमी पर्व मनाए जाने की परंपरा द्वापर युग से ही चली आ रही है. कहा जाता है कि, भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर कार्तिक शुक्ल सप्तमी तक गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ ऊंगली पर धारण किया था. इसके बाद आठवें दिन इंद्र देव का अहंकार खत्म हुआ और वे श्रीकृष्ण से माफी मांगने पहुंचे. इसके बाद से ही इस दिन यानी अष्टमी तिथि पर गोपाष्टमी उत्सव मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई.

Gopashtami Shubh Muhurat (गोपाष्‍टमी शुभ मुहूर्त)

सनातन धर्म में गोपाष्‍टमी पर्व हर साल कार्तिक मास (Kartik Month) शुक्‍ल पक्ष की अष्‍टमी तिथि को मनाया जाता है इस साल यह पर्व 20 नवंबर 2023 सोमवार के दिन है। कार्तिक मास की अष्‍टमी तिथि की शुरूआत सोमवार 20 नवंबर को प्रात:काल 05 बजकर 21 मिनट पर लगभग होगी। उसके बाद मंगलवार यानी 21 नवंबर 2023 को प्रात:काल जल्‍दी 03 बजकर 18 मिनट पर समाप्‍त होगी। इस तरह से आप इस समय में गोपाष्‍टमी पर्व 20 नवंबर 2023 सोमवार को मनाया जाएगा।

गोपाष्‍टमी पूजा विधि (Gopashtami Puja Vidhi)

  • गोपाष्‍टमी वाले दिन प्रात जल्‍दी उठकर स्‍नान आदि से मुक्‍त होकर भगवान सूर्य को पानी चढ़ाऐ।
  • जिसके बाद गाया माता को पत्रित्र जल से स्‍नान कराऐ। और माता को अच्‍छे से सजाऐ।
  • इसके बाद गाय माता की जल, अक्षत, रौली, गुड़, जलेबी, वस्‍त्र, धूप, दीप, पुष्‍प, फल आदि से पूजा करे।
  • पूजा करने के बाद गाय व बछड़े की आरती करे और गाय की यथा शक्ति परिक्रमा करे।
  • कहा गया है की इस दिन गायों के साथ थूडी दूरे तक चलने का विधान है। और जंगल में चरने के लिए हाक देना है।
  • जब शाम को गाय वापस आऐ तो उनका पंचोपचार से पूजा करे और उनके पैरो में से मिट्टी लेकर अपने माथे पर लगाऐ।
  • इसके बाद अपने दोनो हाथ जोड़कर गाय माता को प्रणाम करे , और मन ही मन अपनी मनोकामनाए पूर्ण करने के लिए प्रार्थना करे।

गोपाष्‍टमी व्रत कथा (Gopashtami Vrat Katha in Hindi)

द्वापर युग में जब अत्‍याचार बहुत ज्‍यादा बढ गऐ और पृथ्‍वी पर सभी भगवान को पुकाने लगे तो भगवान विष्‍णु जी ने अपना अवतार श्री कृष्‍णरूप में लिया। कृष्‍ण जी ने जन्‍म तो मथुरा के राजा कंस के कारागार में लिया किन्‍तु उनका लालन पालन गोकुल में हुआ था। जब कृष्‍ण जी 6 वर्ष के हो गऐ तो एक दिन माता यशोदा जी से कहा की मैया अब मैं बढ़ा हो गया हॅू। अपने लल्‍ला की बात सुनकर मैया बोली तो क्‍या करे लल्‍ला।

मैया की बात सुनकर कन्‍यैया बोला की अब मैं बछड़े चराना छोडकर गाय चराने के लिए जंगल में जाऊगा। माता ने बोला ठीक है लल्‍ला तुम्‍हारे बाबा से पूछ लेना यदि वो हा कर दे तो तुम गौ चराने हेतु जंगल को चले जाना। जब शाम को नंद बाबा घर आऐ तो कृष्‍ण जी ने पूछा की बाबा मैं कल से गाऐ चराने हेतु जंगल में जाऊगा। नंद जी ने कहा ठीक है लल्‍ला तुम जाकर पंडित जी को बुला लाओ शुभ मुहूर्त देखकर ही तुम गौ चराने को जाना।

अपने नंद बाबा की बात सुनकर कन्‍यैया तुरन्‍त पंडित जी के पास पहुच गया और कहा की आपको बाबा ने बुलाया है। गौ चारण का मुहूर्त देखना है। कृष्‍ण जी बात सुनकर पंडित जी नन्‍द जी के घर पहुच गऐ। पंडित जी ने पंचाग देखा और बार-बार गणना करने लगे। यह देखकर नंद बाबा बोले की पंडित आप बार-बार क्‍या गिन रहे हो। नंद जी के पूछने पर पंडित जी ने कहा की गौ चारण का शुभ मुहूर्त तो आज ही का है उसके बाद एक वर्ष तक कोई भी शुभ मुहूर्त नही है।

यह सुनकर नंद जी को कान्‍हा को गौ चारण की अनुमति देनी पड़ी। और उसी दिन से भगवान कृष्‍ण जी ने गौ चारण को प्रारंभ किया था। भगवान जो भी कार्य करते है वही शुभ मुहूर्त बन जाता है। और यह शुभ तिथ‍ि कार्तिक माह की शुक्‍लपक्ष की अष्‍टमी थी। इसी लिए इसका नाम गोपाष्‍टमी पड़ गया। इसके बाद यशोदा मैया ने लल्‍ला को श्रृंगार किया और पैरो में जूतिया पहनाने लगी तो कृष्‍ण जी मना कर दिया। और कहा मेरी पूरी गाय तो बिना जूतियो के हि जगंल में जाऐगी।

तो मै कैसे जूती पहनकर जा सकता हॅॅू। उसके बाद नंद बाबा की पूरी गाय आगे-आगे और भगवान कृष्‍ण जी पीछे-पीछे जंगल में गऐ। ऐसा कहा गया है की भगवान जब तक वृदावन में रहे थे तब तक उन्‍हाेने अपने पैरो में जूतिया नही डाली। और अपने युवा काल तक अपनी बाल लीलाए रची।

डिस्‍कलेमर:- दोस्‍तो आज के इस लेख में हमने आपको गोपाष्‍टमी Gopashtami in Hindi के बारे में महत्‍वपूर्ण जानकारी प्रदान की है। यह जानकारी आपको पौराणिक मान्‍यताओं, कथाओं व न्‍यूज, पंचांग के तहत बताई है। आपको यह बताना आवश्‍य है की Onlineseekhe.com किसी प्रकार की पुष्टि नहीं करता है। अधिक जानकारी के लिए किसी विशेषज्ञ, पंडित, विद्धान के पास जाना है। यदि पोस्‍ट में दी गई जानकारी पसंद आई हो तो लाईक करे व अपने मिलने वालो के पास शेयर करे दे। और यदि आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्‍न है तो कमंट करके जरूर पूछे। धन्‍यवाद

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