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Hal Shashthi Vrat Katha In HIndi | हल षष्‍टी (हर छट) व्रत कथा | Hal Shashthi Vrat Katha | Balaram Jayanti 2021 | बलराम जयंती

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दोस्‍तो जल्‍दी ही हल षष्‍टी (हरछट) Hal Shashthi का पर्व आने वाला है। खासतौर पर यह पर्व उत्तरी भारत में बड़े धूम-धूम से किसानो के द्वारा मनाया जाता है। इस दिन लगभग सभी औरते अपने पुत्र कि लम्‍बी उम्र की कामना के लिए हल षष्‍टी का व्रत (Hal Shashthi Vrat) रखती है। इस व्रत में बहुत ज्‍यादा नियम है और उन सभी को अच्‍छे से निभाया जाता जाता है। यह व्रत अपने आप में एक खात महत्‍व रखता है।

भाद्रपद की कृष्‍ण पक्ष की षष्‍टी को श्रीकृष्‍ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्‍म हुआ था। इस कारण आज के दिन बलराम जयंती भी मनायी जाती है। भारत में बहुत से लोग इसी दिन माता सीता जी का जन्‍म दिवस कि तिथि भी मनाते है। बलरामजी का प्रधान शस्‍त्र हल तथा मूसल है। इसलिए बलरामजी को हलधर के नाम से भी जाना जाता है। उन्‍ही के नाम पर इस पर्व का नाम हल षष्‍टी (Hal Shashthi Vrat Katha) पडा है। इस बार हल षष्‍टी का व्रत 28 अगस्‍त 2021 को शनिवार को है।

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Hal Shashthi

देश में पूर्वी जिलो में इस पर्व को ललई छट (Hal Shashthi ) के नाम से भी मनाते है। इस दिन व्रत रखनी वाले औरते और इस त्‍यौहार को मनाने वाले को सुबह महुए की दातुन करने का विधान है। Hal Shashthi (हल षष्‍ट) व्रत वाले दिन हल द्वारा जुता हुआ फल व अन्‍न का प्रयोग किया जाता है। और गाय का दूध व दही का प्रयोग भी वर्जित है। तथा भैंस का दूध व दहीं का प्रयोग किया जाता है। तो चलिए दोस्‍तो हर षष्‍ट पर्व के बारे में सम्‍पूर्ण जानकारी पाने के लिए पोस्‍ट के अन्‍त तक बने रहे।

पूजा का विधान

हर षष्‍ट पर्व वाले दिन प्रात:काल जल्‍दी स्‍नान करने से पहले महुए की दातुन की जाती है। इसके बाद पृथ्‍वी को लीपकर एक छोटा सा तालाब बनाया जाता है। जिसमें झरबेरी, पलाश, गूलर की एक-एक शाक्षा बॉधकर बनाई गई एक हर छट को गाड़ देते है। हरछट़ काे गाड़ने के बाद इसकी पूजा कि‍ जाती है। पूजा के लिए सतनजा (गेहूँ, चना, बाजरा, धान, मक्‍का, ज्‍वार, जौ) आदि का भुना हुआ लावा चढ़ाया जाता है।

हल्‍दी में रंगा हुआ वस्‍त्र तथा सुहाग की सभी सामग्रीया भी चढ़ाई जाती है। पूजा के बाद निम्‍न मंत्र से जाप या प्रार्थना करते है।

गंगा के द्वारे पर कुशावते विल्‍व के नीले पर्वते। स्‍नात्‍या कनखले देवि हरं सन्‍धवती पतिम्।।

ललिते सुभगे देवि सुख सौभाग्‍य दायिनी। अनन्‍त देहि सौभाग्‍यं मह्मं तुभ्‍यं नमो नम:।।

और कहे कि हे! आपने गंगाद्वार, कुशावर्त, विल्‍वक, नील, पर्वत और कनखल तीर्थ में स्‍नान करके भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्‍त किया है। सुख और सौभाग्‍य देने वाली ललिता देवी आपको बारम्‍बार नमस्‍कार है, आप मुझे अचल सुहाग दीजिये।

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हर षष्‍टी कथा | Hal Shashthi Vrat Katha

एक समय कि बात है, एक गावँ में बहुत ही गरीब ग्‍वालिन रहती थी। वह दही और मक्‍खन बेचकर अपना जीवन यापन करती थी। किन्‍तु जैसे-जैसे उसका प्रसव का समया समीप आया तो उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। उसका दही-मक्‍खन बेचने के लिए रखा हुआ था वह सोचने लगी यदि बालक ने जन्‍म ले लिया तो दही-मक्‍खन बिक नहीं पायेगा।

यह सोचकर वह उठी और सिर पर दहीं-मक्‍खन की मटकी रखकर बेचने काे चल दी। चलते-चलते उसकी प्रसव पीड़ा बढ़ गई। वह झरबेरी की झाड़ी की ओट में बैठ गई, उसने एक पुत्र को जन्‍म दिया। उस गरीब ग्‍वालिन ने अपने बालक को एक कपड़े में लपेटकर वहीं झाडीयों में लिटा दिया। और खुद मटकियॉं उठाकर आगे बढ़ गई। उस दिन हरछट थी।

उसका दूध व मक्‍खन गाय, भैस दोनो का मिला हुआ होने के कारण उसका दूध बिक नहीं रहा था। तो उसे बेचने के लिए यहा कहा कि दूध केवल भैंस का है इसलिए लिए उसका पूरा दूध व दहीं बिक गया। जहॉं पर ग्‍वालिन ने अपना बच्‍चा छिपा रखा था वहॉं पर एक किसान हल चला रहा था। उसके बैल अचानक बिदक गऐ और खेत की मेंढ़ पर जा चढ़े।

किसान ने देखा तो एक बच्‍चा है और उसकी पेट पर हल की नोक उसके पेट से टकराने से बच्‍चे का पेट फट गया। तब किसान ने झरबेरी के कॉंटो से बच्‍चे के पेट पर टॉकें लगाकर उसे व‍ही पर सुला दिया और चला गया। जब ग्‍वालिन अपना दूध बेचकर वाफस बच्‍चे के पास आयी तो उसने अपने बच्‍चे को मृत पाया। यह देखकर वह समझ गयी कि यहा मेंरे पाप का फल है मैनें आज हरछट व्रत (Hal Shashthi ) करने वाली अनेक स्‍त्रीयों को गाय का दूध व दहीं बेचकर उनका व्रत भंग किया है।

Hal Shashthi

उसी का मुझे यह दण्‍ड मिला है कि मेरा बच्‍चा मर गयाफ उसने सोचा मुझे लौटकर अपना पाप स्‍वीकार कर प्रायश्च्ति करना चाहिए। वह तुरंत नगर में आयी जहॉं-जहॉं उसने अपना दूध बेचा उसने गली-मुहल्‍ले में घूम-घूम कर अपने दूध और दहीं का सारा रहस्‍य बता दिया। गवालिन कि यहा बता सुनकर सभी स्‍त्रीया ने अपने धर्म-रक्षा के विचार से उसे आशीष दिया।

वह ग्‍वालिन अब अपने मृत बच्‍चे के पास वाफस आयी तो देखा कि उसका बच्‍चा जीवित अवस्‍था में था। उसने तुरन्‍त अपने बच्‍चे के गोद में उठाया और उसे प्‍यार करने लगी। उसी दिन से ग्‍वालिन ने पाप छिपाने के लिए कभी झूठ न बोलने का प्रण लिया।

आज की पोस्‍ट के माध्‍यम से हमने आपको हरषष्‍टी व्रत की कथा (Shashthi Vrat Katha) के बारे में सभी जानकारी प्रदान की है। अगर आप सभी को पोस्‍ट में बतायी हुयी जानकारी पसंद आयी है तो इसे अपने सभी दोस्‍तो व मिलने वालो के पास शेयर करे। यदि आपके मन में कोई प्रश्‍न है तो कमंट करके जरूर पूछे। धन्‍यवाद

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