Hal Shashti Vrat Katha in Hindi, हलठछ व्रत कथा, हलषष्ठी व्रत कथा
हलठछ व्रत कथा हमारे सनातन धर्म में हर दिन कोई पवित्र त्यौहार व व्रत रहता है जिस प्रकार सावन का महिने पवित्र महिना कहा गया है उसी अनुसार भाद्रपद महिने को भी बहुत महत्व दिया गया है। खास महिने में भगवान वासुदेव श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ है और कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल षष्ठी मनाई जाती है। पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण जी के बड़े भैया बलराम (जो शेषनाग जी के अवतार) जी को समर्पित है।
महाभारत पुराण के अनुसार भाद्रपद महिने की षष्ठी तिथि को बलराम जी का जन्म हुआ है जिस कारण यह षष्ठी हर साल मनाई जाती है। इसे ललन षष्ठी व चन्द्र षष्ठी (Chandra Chhat) के नाम से भी जाना जाता है। महिलाए संतान की दीर्घायु कामना हेतु हलषष्ठी का व्रत रखती है आइए जानते है हलषष्ठी व्रत/चन्द्र षष्ठी व्रत के बारें में पूरी जानकारी………
हलछठ का महत्व/Hal Shashti Vrat ka Mahatva
चन्द्रषष्ठी व्रत का महत्व:- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण जी के बड़े भाई के रूप में अवतार हुए बलराम जी शेषनाग जी के अवतार है। इनका शस्त्र हल है इसलिए इनको हलधर नाम से भी जाना गया है। यह हल किसान के खेती करने के कार्य आता है जब भी किसान हल को काम लेता है तो पहले उसकी पूजा करता है। हर साल भाद्रपद महिने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी/हलछठ/चन्द्रछठ का व्रत किया जाता है।

हलछठ कब है/Hal Shashti Kab Hai 2023
हलषष्ठी कब है:- हमारे धर्म में जितने भी पर्व आते है आपको उनका बेसबरी से इंतजार रहता है आप बहुत दिनों से यह सोच रहे होगें की हलछठ कब है। वैसे तो भाद्रपद (भादवा) कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को हलठछ या चन्द्रषष्ठी के नाम से जाना गया है। इस साल 05 सितंबर 2023 मंगलवार के दिन हलषष्ठी का पर्व मनाया जाएगा। हलठछ व्रत कथा
हलछठ का मुहूर्त/Hal Shashti Vrat
भाद्रपद महिने की कृष्ण पक्ष की तिथि हल षष्ठी होती है जिसकी शुरूआत 04 सितंबर 2023 को शाम 04:41 मिनट पर होगी। और समापन 05 सितंबर 2023 दोपहर 03:46 मिनट पर हो रही है। अत: हलषष्ठी व्रत/हलछठ व्रत 05 सितंबर 2023 मंगलवार के दिन किया जाएगा।
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हलषष्ठी व्रत पूजा सामग्री
चन्द्र छट (हलषष्टी) का व्रत Chandra Chhat Vrat खोलने के लिए इन सभी सामग्रीयो कि जरूरत होती है जो कि इस प्रकार है:-
- रौली-मोली,
- चावल,
- उसी मौसम के पुष्प,
- मिट्टी का कलश,
- गेहूँ,
- रूपये,
- शुद्ध पानी,
- उसी मौसम के फल,
- घी का दीपक या अगरबत्ती
Hal Shashti Puja Vidhi/हलछठ व्रत पूजा विधि
- Chandra Chhat Vrat काे रखने वाली स्त्रीया व कुँवारी लड़कीया प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर पीले या लाल वस्त्र धारण करे।
- इसके बाद सूर्य भगवान व पीपल तुलसी के वृक्ष में पानी चढ़ाऐ।
- इसके बाद घर में मंदिर के पास चन्द्रमा और भगवन कृष्ण जी कि तस्वीर रखे।
- तस्वाीर के पास शुद्ध जल से भरा कलश रखे कलख के ऊपर नारियल के रौली का धागा बाधकर व तिलक करके रख दे।
- अब कलश पर रोली छिड़क कर सात टिके लगाऐ। यथा शक्ति रूपये रखे दे।
- एक गिलास या कटोरी में गेहँ रख ले और घी का दीपक जला ले।
- दीपक जलाने के बाद भगवान कृष्ण जी और चन्द्रमा काे फूल चढ़ाऐ। और उनका पूरी विधि से पूजन करे। हलठछ व्रत कथा
- पूजा करने के बाद प्रसाद चढाऐ।
- प्रसाद चढ़ाने के बाद अपने हाथो में गेहूँ के सात दाने लेकर कहानी पढ़े या फिर किसी अन्य से सुने।
- इसके बाद जब चन्द्रमा उग जाऐ तब सात दानो के साथ अर्घ्य दे। और पूजा के गेहूँ व रूपये ब्राह्मण को देना चाहिए।
- चन्द्रमा काे अर्घ्य देने के बाद कुॅंवारी लड़कीयाँ इस व्रत (Chandra Chhat Vrat) का पारण करती है।
Hal Chhat Vrat ki Katha चन्द्र छट व्रत कथा
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हलठछ व्रत कथा प्राचीन समय कि बात है किसी नगर में एक सेठ व सेठानी जी रहते थे। सेठानी अपने मासिक धर्म में भी रसोई के सभी बर्तनों को हाथ लगाती थी। कुछ समय बाद सेठ व सेठानी की मृत्यु हो गयी। मृत्यु के बाद सेठ को बैल का और सेठानी को कुतिया की यौनी प्राप्त हुयी। दोनो अपने पुत्र के घर में रहने लगे। बैल रोज खेत जोतता और कुतिया घर कि रखवाली करती रहती थी।
एक दिन सेठ का श्राद्धा होने के कारण उसकी बहू ने खीर बनाई थी। सेठ के बेटे कि बहू खीर बनाकर किसी काम से रसोई से बाहर चली गयी। तब ही एक चील उड़ते हुऐ उस खीर के बर्तन में मरा हुआ सॉंप डाल गई। बहू को इस बात को पता नही चला किन्तु वह कुतिया (सेठानी) यह सब देख रही थी। उसे पता था कि खीर में चील ने मरा हुआ सॉंप गिरा दिया।
वह कुतिया (सेठानी) सोचा कि इस खीर को खाने से सभी ब्रह्मण और बच्चे मर जाएगे। अत: कुतिया ने जाकर उस खीर के भगोने में मुँह डाल दिया। गेस्से से भरकर बहू ने कुतिया को जलती हुयी लकड़ी से मारा, जिससे उसकी रीढ़ कि हड्डी टूट गई। बहू ने उस खीर को फेकर दूसरी खीर बनाई। और सभी ब्रह्मणों व बच्चों को कराया। किन्तु उस कुतिया (सेठानी) को जूठन तक नहीं दिया।
रात होने पर कुतिया और बैल बाते करने लगे, तब कुतिया (सेठानी) ने बैल (सेठ) से का कि आज तो तुम्हारा श्रद्धा था। तूम्हें तो खूब खाने को मिला होगा। किन्तु मुझे तो आज कुछ भी खाने को नही मिला और मै भुखी ही रह गयी। उल्टे मेंरी ही पिटाई हो गई। कुतिया ने सॉंप वाली बात बैल को बता दी।
”बैल बोला, ”आज तो मैं भी बहुत भूखा हूँ। कुछ खाने काे नहीं मिला, और दिन कि अपेक्षा काम भी अधिक करना पड़ा। बेटा और बहू कुतिया (सेठानी) और बैल (सेठ) कि बाते सुन रहें थे। सुबह होते ही बेटे ने एक विद्धवान पण्डित को बुलाकर पूछा की मेरे माता-पिता किस योनि में जन्म लिए है। तब पण्डित ने बताया कि तुम्हारे माता व पिता बैल और कुतिया कि योनी में तुम्हारे घर पर ही है।
लड़का सारा रहस्य जान गया। और उसने माता-पिता (बैल और कुतिया) को भर पेट भोजन कराया और पंडितों से उनकी वर्तमान योनि से छूटने का उपाय पूछा। तब पंडितों ने उसे बताया यदि तुम अपने माता व पिता को इस योनि से मुक्त करना चाहते हो। तो तुम भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की षष्टी को जब कुँवारी कन्याऐ चन्द्रमा को अर्घ्य देने लगें तो तुम इन्हे उसके नीचे खड़े कर देना।
यदि तुम ऐसा करोगे तो इनको इनकी योनियों से छुटकारा मिल जायेगा। तुम्हारी मॉं ऋतुकाल में सब रसोई के सभी बर्तन छूती थी। इसी कारण उसे इस दोष से इसे यह योनि मिली। कुछ दिनो बाद भाद्रपद कृष्ण पक्ष कि चन्द्र छट का व्रत (Chandra Chhat) आया। और उस लड़के ने ऐसा ही किया जैसे पंडित ने कहा, ऐसा करने से उसके माता-पिता को कुतिया एवं बैल की योनि से छुटकारा मिल गया।
डिस्केलमर:- दोस्तो आज की इस पोस्ट में हमने आपको Chandra Chhat Vrat Katha के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान कि है। आर्टिेकल में बताई हुई जानकारी पौराणिक मान्यताओं व कालपनिक कथाओं के आधार पर लिखा है। आपको यह बताना अति जरूरी है की Onlineseekhe.comकिसी प्रकार की पुष्टि नहीं देता है अत: विशेष जानकारी हेतु किसी संबंधित विषेषज्ञ, पंडित, व विद्धान के पास जाएगा। यदि आप सभी को हमारा यह लेख पसंद आया है तो अपने दोस्तो व मिलने वालो के पास शेयर करे। और यदि आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्न है तो कमंट करके जरूर पूछे। धन्यवाद
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