जीवित पुत्रिका व्रत (Jeevit Putrika Vrat katha) प्रतिवर्ष आश्विन महीने की कृष्णपक्ष की अष्टमी का किया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 28 सितम्बर 2021 शनिवार के दिन रहेगा। जो कोई स्त्री इस व्रत को पूरे विधि-विधान व श्रद्धा से करती है उसे पुत्र शोक (उसका पुत्र दीर्घ आयु जीता है) नही मिलता। जिस कारण इस व्रत कि सभी औरते बहुत ज्यादा महत्व देती है। इस व्रत वाले दिन सूर्य भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है।
इस व्रत वाले दिन व्रत रखने वाली सभी औरते निर्जला व्रत (बिना पानी के) रखती है। वैसे तो यह जीवित पुत्रिका व्रत Jeevit Putrika Vrat katha in Hindi लगातार तीन दिनो तक किया जाता है। खासतौर पर यह व्रत उत्तरी भारत व नेपाल देश में किया जाता है। ऐसे में आप भी जीवित पुत्रिका का व्रत रखते है तो आर्टिकल में बताई हुई व्रत कथा व पूजा विधि को पढ़कर आप अपना व्र्रत पूर्ण कर सकती है तो पोस्ट के अंत तक बने रहै।

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व (Jeevit Putrika Vrat katha)
हिन्दु पंचाग के अनुसार यह व्रत आश्विन माह की कृष्णपक्ष की सप्तमी से लेकर नवमी तक किया जाता है। ऐसा कहा जाता है की एक बार एक जंगल में चील और लोमड़ी भ्रमण कर रहे थे। उसी समय दोनो नें औरतो के द्वारा जीतित्पुत्रिका का व्रत () करते हुऐ देखा और दोनो व्रत की कथा भी सुनी। उस समय चील ने तो इस व्रत की विधि व कथा को पूरा श्रद्धा के अनुाार ध्यानपूर्वक देखा। किन्तु उस लोमड़ी ध्यान व्रत कथा में नही था। जिसके कारण लोमड़ी की कोई संतान जीवित नही रही एक-एक करके सारी मर गई। परन्तु चील की सभी संतान दीर्घ आयु जीवित रहकर अन्तं में स्वर्ग लोक को गई।
जीवित पुत्रिका व्रत (Jeevit Putrika Vrat katha in Hindi)
इस बार जीवित्पुत्रिका व्रत की शुरूआत 28 सितम्बर 2021 शनिवार के दिन प्रात: 07 बजकर 51 मिनट पर शुरू हो जाएगा। तथा अष्टमी तिथि का समापन 92 सितम्बर 2021 रविवार के दिन प्रात: 07 बजकर 20 मिनट पर हो जाए्रगा। आपका व्रत इस शुभ मुहूर्त के बीच में रहेगा। इसके बाद आप स्नान आदि करके भोजन ग्रहण कर सकते है।
यह व्रत तीन दिन तक अलग-अलग तरह से किया जाता है जो की इस प्रकार है:-

- नवाई खाई:- इस दिन जीवित पुत्रिका व्रत का प्रथम दिन होता है जिस कारण इसे नवाई खाई व्रत कहते है। आज के दिन से शुरू होता जिसमें और दिन में एक बार भोजन कर सकती है किन्तु उसके बाद कुछ नही खा सकती।
- खुर जितिया:- इस दिन जीवित पुत्रिका व्रत का द्वितीय दिन होने के कारण इसे खुर जितिया व्रत कहते है। इस दिन औरते बिल्कुल निर्जला व्रत रखती है। क्योकिं यह दिन उनके लिए बहुत महत्व होता है।
- पारण:- इस दिन जीतित्पुत्रिका व्रत का आखिरी दिन होता है इस दिन व्रत रखने वाली सभी औरते व्रत का पारण करती है किन्तु पारण में केवल झोर भात, नोनी का साग एव मडुआ की रोटी तािा मरूवा की रोटी खाई जाती है। तब जाकर औरतो को यह व्रत फलीफूत होता है।
जीवित पुत्रिका व्रत की विधि (Jeevit Putrika Vrat Puja Vidhi)
- इस व्रत को रखने वाली सभी औरतो को प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर नऐ वस्त्र पहना चाहिए।
- जिसके बाद भगवान सूर्य (नारायण) को पानी चढाऐ, पानी चढ़ाते समय इस महामंत्र का जाप करे- ऊँ ह्रीं ह्री सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
- इस महामंत्र का जाप तीन बार करे तथा उसके बाद पीपल व तुलसी माता के पेड़ में भी पानी चढ़ाऐ।
- इसके बाद सूर्य देव की प्रतिमा को स्नान कराकर उसकी पूरे विधि-विधान से धूप, धीप, फूल आदि चढाकर पूजा करे।
- इसके बाद अपने दोनो हाथ जोडकर व्रत कथा (Jivite Putrika Vrat katha) सुने, कथा सुनने के बाद भगवान सूर्य की आरती करे।
- जिसके बाद बाजरा से मिश्रित पदार्थ का भोग लागाए।
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा (Jeevit Putrika Vrat katha)

द्वापर युग की बात है जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया तब पांचो पाण्डवो की अनुपस्थिति में कृतवर्मा और कृपाचार्य को साथ लेकर अश्वथामा पा्ण्डवो को मारने के लिए उनके शिविर में घुस गया। अश्वथामा ने द्रौपदी और पा्ण्डवों के पांचो पुत्रो को पांडु पुत्र समझकर उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। जब अश्वथामा शिविर से बाहर आऐ तो पता चला की जिन्हे मारा है वो पा्ण्डव नही बल्कि उनके पांचो पुत्र थे।
जिसके बाद अश्वथामा पा्ण्डवो के डर से वहा से भाग निकला। दूसरे दिन प्रात: होते ही पांचो पांण्ड़ पुत्र युधिष्ठिर, अजुर्न, भीम, नकुल, सदैव भगवान कृष्ण जी के साथ अश्वथमा को ढुढने निकल गए। और संध्या होने से पहले सभी ने अश्वथामा को ढूढ निकाला और बन्दी बना लिया। भीम और अर्जुन ने उसे तुरन्त मारने को कहा किन्तु धर्मराज युधिष्ठिर और मधूसूदन (कृष्णजी) ने उसे मारने के लिए मना कर दिया। और यह परामर्श दिया की इसके सिर मणि लेकर इसे मुक्त कर दो।
जिसके बाद भीम और अर्जुन ने अश्वथामा के सिर से मणि को निकालकर तथा केश मूंडकर उसे बन्धन से मुक्त कर दिया। अब अश्वथामा इस अपमान का बदला लेने के लिए अर्जुन पुत्र अभिम्नयु की पत्नी देवी उत्तरा के गर्भ में पल रहा पाण्ड़वों का अंतिम वंशधर के ऊपर अमोघ अस्त्र का वार कर दिया। जिसके कारण उत्तरा के गर्भ में दर्द होने लगा और वह जोर-जोर से चिकने लगी। किन्तु पांडुपुत्र इस अस्त्र का प्रतिकार नही जानते थे जिसके कारण वो कुछ नही कर पा रहे थे।
तब पांचो पांड़व और द्रौपदी तथा सुभ्रदा सभी मिलकर भगवान कृष्ण जी से उत्तरा के गर्भ की रक्षा करने की प्रार्थना की। उनकी इस प्रार्थना काे स्वीकार करते हुए कृष्ण जी अपना सूक्ष्य रूप धारण कर देवी उत्तरा के गर्भ में प्रवेश करके उसकी रक्षा करी। किन्तु जब देवी उत्तरा के गर्भ से बच्चा उत्पन्न हुआ तो वह मृत हुआ। यह देखक सभी दुखी हुऐ और भगवान कृष्ण जी से पुन: प्रार्थना करने लगे की इस बालक को जीवन दान दो प्रभु।
जिसके बाद भगवान कृष्ण जी उस बालक को प्राण दान दिया। और वही बालक पाडव वंश का भावी कर्णधार राजा परीक्षित हुआ। राजा परीक्षित को इस प्रकार जीवनदान मिलने के कारण इस व्रत का नाम ”जीवित पुत्रिका” व्रत पड़ा। तब से लेकर आज तक औरते अपने पुत्र की दीर्घ आयु की कामना के लिए जीवित्पुत्रिका का व्रत पूरे विधि-विधान से करती है।

जीवित पुत्रिका/जितिया पुत्रिका व्रत की दूसरी कथा
पौराणिक मान्यताओ के अनुसार एक पेड़ पर एक चील निवास करती थी। उसी पेड़ के नीचे ए सियारिनी रहती थी जिस कारण दोनो में बहुत गहरी दोस्ती थी। एक दिन दोनो घूमने के लिए निकली तो रास्ते में देखा कुछ औरते जितिया पुत्रिका का व्रत कर रही है। यह देखकर दोनो वही पर बैठ गई और व्रत पूजा की विधि को देखने लगी और कथा सुनी। और प्रण किया की यह व्रत हम दोनो भी करेगे।
अगले वर्ष जितिया पुत्रिका व्रत आया किन्तु शहर में एक बड़ा व्यापारी मर गया जिसके दाह संस्कार में सियारिन को बहुत तेज भुख लगने लगी। और वह खाना खा ली किन्तु चील ने संयम रखा और पूरी श्रद्धा के अनुसार व्रत किया और पूरे विधि-विधानो से दूसरे दिन जीवित पुत्रिका व्रत का पारण किया।
ऐसे में कुछ दिनो के बाद दोनों सहेलियों की मृत्यु हो गई और दोनो ने अगले जन्म में एक ब्राह्मण परिवार की पुत्री के रूप में लिया। उनके पिता का नाम भास्कर था इस जन्म में चील बड़ी बहन और सियारन छोटी बहन रूप में जन्मी थी। ची का नाम शीलवती और सियारिन का नाम कपुरावती रखा गया।
ब्राह्मण ने अपनी बड़ी पुत्री शीलवती (चील) का विवाह बुद्धिसेन के साथ कर दिया तथा कपुरावती (सियारिन) का विवाह नगर के राजा मलायकेतु के साथ कर दिया। शीलवती के शादि के बाद भगवान जीऊतवाहन की कृपा से 7 पुत्र हुऐ और दूसरी ओर कपुरावती के जो भी बच्चे जन्म लेते वा उसी समय मर जाते। जिस कारण वह बहुत दुखी रहती थी।
इधर शीलवती के सभी पुत्र बड़े हो गए, बढ़े होने पर उसी राजा के दरबार में काम करने लगे जिसके साथ उनकी मौसी कपुरावती का विवाह हुआ था। कपुरावती जब भी शीलवती के सभी पुत्रो को देखती तो ईर्ष्या से जल उठती और एक दिन राजा से कहकर उसने शीलवती के सभी पुत्रो के सिर धड़ अगल करवा दिया। और उनको मिट्टी की मटकी में रखवाकर लाल कपड़े से ढ़ककर शीलवती के घर भिजवाया।
भगवान जीऊतवाहन यह सब देखकर उसे शीलवती का व्रत याद आया और उसने उसके सभी पुत्रों के सिरो को धंड़ से जोडकर उन्हे पुन: जीवन दान दिया। जिसक कारण सातो पुत्र जीवित हो उठे और कटे हुए सिर की जगल फल बन गए। दूसरी तरफ रानी कपुरावती (सियारिन) सूचना पाने के लिए अति व्याकुल हो रही थी। जब कोई सूचना नही आई तो वह स्वमं अपनी बड़ी बहन शीलवती के यहा आ गई।
जब वह घर आई तो देखा की शीलवती के सातो के साते पुत्र तो जीवित है। जिसक कारण उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और वह सीधे अपने बड़ी बहन के चरणों में गिरकर माफी मांगने लगी। तब उसी समय भगवान जीउतवाहन की दैविक कृपा से शीलवती को दोनो को पिछ़ला जन्म याद अया। वह कपुरावती को उठाई और उसे पाकड़ के पेड़ के नीचे लेकर गई और सभी बाते सुनाई।
अपने पिछले जन्म की सभी बाते सुनकर कपुरावती के होश उड़ गए। और थोड़ी देर बाद दिल का दौरा पढ़ने से उसकी मृत्यु हो गई। जब यह बात राजा को जता चली की उसकी पत्नी कपुरावती (सियारिन) अब नही रही वह उसे उसी पाकड़ के पेड़ के नीचे कपुरावती का दाह-संस्कार करवाया और भगवान जीऊतवाहन से मांफी मांगने लगा।
दोस्तो आज के इस लेख में हमने आपको जीवित पुत्रिका व्रत कथा (Jeevit Putrika Vrat katha) के बारे में विस्तार से बताया है यदि आर्टिकल में दी गई जानकारी पंसद आई हो तो लाईक करे व अपने मिलने वालो के पास शेयर करे। यदि आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्न है तो कंमट करके जरूर पूछे। धन्यवाद
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