Kartik Purnima Vrta Katha in Hindi | कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा व पूजा विधि विस्‍तार से जाने

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कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा:- कार्तिक माह की पूर्णिमा सभी पूर्णिमाओ से सर्वश्रेष्‍ठ है। क्‍योकि इस दिन स्‍वर्गलोक के सभी देवी-देवता पृथ्‍वीलोक पर आते है। तथा वाराणसी के गंगा नदी घाट पर स्‍नान आदि करते है। जिसक कारणवश इस पूर्णिमा को देव दिवाली भी कहा जाता है। क्‍योकि सभी देवताओ की एकसाथ धरती पर आने की खुशी में गंगा घाट जो दीपको व पुष्‍पो से पूरी तरह सजाया जाता है। और बहुत सभी और इस दिन पूर्णिका का व्रत रखती है। ऐसे में आप भी कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखते है तो पोस्‍ट में दी गई व्रत कथा व पूजा विधि को पढ़कर या सुनकर आप अपना व्रत पूर्ण कर सकती है। तो पोस्‍ट के अंत तक बने रहे।

Kartik Purnima (कार्तिक पूर्णिमा)

हमारे हिन्‍दु धर्म में सभी पूर्णिमाओ में से कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्‍व है। क्‍योकि विष्‍णु पुराण के अनुसार इस पूर्णिमा वाले दिन भगवान विष्‍णु जी अपना मत्‍स्‍यावातार लिया था। और पृथ्‍वी पर पुन: जीव स्‍थापना की थी। इसी लिए आज के दिन कार्तिक माह में स्‍नान करने वाली सभी औरते दीपदान करती है। और अपना कार्तिक माह को पूर्ण करती है।

पौराणिक मान्‍यताओ के अनुसार इसी कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन भगवान शिवजी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षक को मारकर स्‍वर्ग लोक को मुक्‍त किया था। इस‍ि लिए इस पूर्णिका को त्रिपुरी पूर्णिमा कहा जाता है। तो इस दिन गंगा स्‍नान, दीप दान आदि का विशेष महत्‍व है।

कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा

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Kartik Purnima in Hindi (कार्तिक पूर्णिमा का महत्‍व)

इस पूर्णिमा वाले दिन कार्तिक स्‍नान करने वाली औरतो का कार्तिक माह पूरा हो जाता है और वो किसी तीर्थ स्‍थल पर जाकर दीप दान करके अपने व्रत पूर्ण होने का संकल्‍प करती है। इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो महाकार्तिकी होती है। भरणी हाेने से विशेष फल देती है। तथा रोहिणी होने पर इसका महत्‍व बहुत अधिक बढ़ जाता है।

ब्रह्मा, विष्‍णु, महेश त्रिदेवों (तीनो देवताओ ने) ने इस पूर्णिमा को महापुनीत पर्व कहा है। पंचाग के अनुसार इस दिन अगर कृतिका नक्षत्र पर चन्‍द्रमा हो और विशाखा नक्षत्र पर सूर्य हो तो पद्म योग होता है। जिसका बहुत महत्‍व होता है। इसके अलावा इस दिन चन्‍द्रोदय पर शिवा, संभूति,संतति, प्रीति, संभूत, अनुसूइया और क्षमा कृतिकाओं का पूजन वन्‍दना करने से संभूत पुण्‍य फल मिलता है।

इस पूर्णिमा Kartik Purnima in Hindi वाले दिन व्रत रखने वाला कोई भी मानव रात्रि में व्रतोपरान्‍त वृषदान करता है उस मनुष्‍य को शिवलोक प्राप्‍त होता है। तथा कार्तिक स्‍नान करने वाली औरते अपना स्‍नान महा पूर्ण करके अन्‍नकूट बनाती है। जिसमें बाजर, खड़ी, भुजिया बनाई जाती है। और सभी को यह प्रसाद वितरण किया जाता है।

नोट:- कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन गंगा स्‍नान भी होता है जिसे गंगा स्‍नान कहा जाता है क्‍योंकि जो महिलाए व पुरूष कार्तिक स्‍नान करते है वो सभी अंतिम दिन यानी पूर्णिमा वाले दिन किसी पवित्र नदी में स्‍नान आदि करके व्रत को पूरा करते है। मान्‍यताओं के अनुसार तो उसे गंगा नदी में स्‍नान करना चाहिए इस कारण इस पूर्णिमा को गंगा स्‍नान भी कहा जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा कब है 2023 (Kartik Purnima Date and Time)

वैसे तो कार्तिक महिना हिंदी पंचाग का आठवा महिना है इस साल कार्तिक मास की पूर्णिमा (Kartik Maas Purnima) 27 नंवबर 2023 सोमवार के दिना मनाई जाएगी। इस पूर्णिमा तिथि का आरंभ 26 नंवबर 2023 को रविवार के दिन दोपहर 03 बजकर 55 मिनट पर लगभग हो जाएगा। जो 27 नंवबर को दोपहर के लगभग 2 बजकर 47 मिनट पर समाप्‍ती होगी पूर्णिमा तिथि।

  • कार्तिक पूर्णिमा तिथि प्रारंभ:- 26 नंवबर 2023 दोपहर 03:55 मिनट
  • कार्तिक पूर्णिमा तिथि समाप्‍त:- 27 नंवबर 2023 को दोपहर 02:47 मिनट

Kartik Maas Kab Hai (कार्तिक महिना 2023)

Kartik Month Dates2023:- हिंदी पंचाग के अनुसार कार्तिक मास आठवा महिना है यह महिना भगवान विष्‍णु जी काे समर्पित है। जिस प्रकार भगवान शिवजी का विशेष महिना सावन का महिना है उसी प्रकार भगवान विष्‍णु जी का महिना भी कार्तिक बताया गया है। इस साल यह महिना 29 अक्‍टूबर 2023 से प्रारंभ हो रहा है और 27 नंवबर 2023 को समाप्‍त हो जाएगा।

Kartik Maas Deep Daan ka Mahatva (कार्तिक मास में दीपदान कैसे करें)

Kartik Month Deep Daan:- पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार कार्तिक महिने में जो कोई पुरूष व स्‍त्री पवित्र नदी, तीर्थ स्‍थान आदि पर दीप दान आदि करता है उसका विशेष महत्‍व होता है। इस मास में आकाश में भी दीप आदि छोड़े जाते है यह कार्य शरद पूर्णिमा की तिथि से आरंभ होकर कार्तिक महिने की पूर्णिमा तक चलता है। इस महिने में कार्तिक नहाने वाले को प्रात: जल्‍दी उठकर स्‍नान आदि से मुक्‍त होकर पूजा-पाठा आदि करनी होती है।

Kartik Purnima in Hindi (कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा)

एक समय की बात है राक्षस ताड़कासुर के तीन पुत्र थे। तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्‍माली जो बड़ हे पराक्रमी थे। एक दिन भगवान शिवजी के बड़ पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुन का वध कर दिया और अपने पिता के कातिल से बदला लेने के लिए उसके पुत्रों ने ब्रह्माजी की घोर तपस्‍या की। उनकी इस तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर ब्रह्मा जी बोले मांगो दैत्‍यराज पुत्रों क्‍या मांगते हो।

ताड़़कासुन के पुत्रों ने अमर होने का वरदान मांगा और कहा की हमे इस संसार में कोई नही हरा सके। किन्‍तु ब्रह्मा जी ने कहा की तुम तीने इस वरदान के अलावा कोई दूसरा वरदान मांगो। मैं ये वरदान तुम्‍हे नही दे सकता। जिसके बाद राक्षक के तीनो पुत्रो ने कहा ही हे ब्रह्मदेव यदी आप हमे अमर होने का वरदान नही दे सकते तो ठीक है।

आप हम तीन के लिए तीन नगर बनवाएं और जो हमारा वध करना चाहता है उसके हम हजार वर्ष बाद मिले। उससे पहले नही। और जब हम मिले तो हमे एक ही तीर से मार गिराऐ ऐसा वरदान दिजिऐ। ब्रह्मा जी ने तीनो राक्षक पुत्रो को तथास्‍तु कहते हुए अंतर्रध्‍यान हो गऐ।

इसके बाद उन तीनो राक्षसो ने मिलकर तीनो लोको पर अपना आधिपत्‍य जमा लिया क्‍योकि ब्रह्मा जी के वरदान अनुसर उन्‍हे मारने वाले हजार वर्ष बाद आऐगा। जिसके बाद सभी देवगण मिलकर भगवन शिवजी के पास गऐ और इस समस्‍या का सामाधान ढूढने को कहा। देवताओ की बात सुनकर भगवान शंकर जी ने विश्‍वकर्मा से कहकर एक भव्‍य रथ का निर्माण करवाया।

और उस रथ में बैठकर तीनो दैत्‍यो का संहार करने को चल दिऐ। य‍ह देख सभी राक्षस घबरा गऐ। और हाकार मचाने लगे। दानवों व देवों में भीषण युद्ध छिड़ गया युद्ध के समय जब ताड़कासुन के तीनो पुत्र एक साथ आऐ तो भगवान शंकर ने उन्‍हे एक ही तीर में मार गिराया। और तीनो लोकाे को राक्षसो से मुक्‍त कराया।

जिसके बाद सभी देवो ने भगवान शंकर को त्रिपुरारी नाम दिया। इसी विजय की खुशी में सभी देवता मिलकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन धरती पर आऐ। आरे काशी में देव दिवाली मनाई। और तभी से लेकर आज तक प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली बड़ी धूम धाम से मनाई जाती है।

कार्तिक पूर्णिमा उद्यापन विधि

कार्तिक पूर्णिमा व्रत उद्यापन विधि:- पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार कार्तिक मास सावन मास की तरह ही पवित्र महिना बताया है इस महिने में भगवान विष्‍णु जी की असीम कृपा बनी होती है। हमारे सनातन धर्म की कथाओं के अनुसार जो कोई पूर्णिमा का व्रत करता है उसे बैकुंठ धार मृत्‍यु के बाद प्राप्‍त होता है। आप कार्तिक मास पूर्णिमा का व्रत कर रहे है और इस व्रत का उद्यापन करना चाहते है तो आपको लगातार 12 साल तक पूर्णिमा का व्रत करना पड़ता है।

जब आप 12 साल से पूर्णिमा का व्रत रखते है तो 13वें साल आपको दान, व्रत इत्‍यादी के साथ पूर्णिमा व्रत का उद्यापन करना पड़ता है। पूर्णिमा व्रत उद्यापन के दिन आपको तुलसी वृक्ष पर सुंदर मंडप रचाया जाता है जिसमें चार दरवाजे बनाया जाता है। यहा पर आपको कलश की स्‍थापना करके उस पर श्रीफल रखा जाता है और भगवान विष्‍णु जी और माता लक्ष्‍मी की प्रतिमा का पूजन किया जाता है।

जिस प्रकार आप पूर्णिमा व्रत की पूजा करते है उसी प्रकार उद्यापन विधि करनी होती है। कार्तिक मास पूर्णिमा व्रत उद्यापन विधि के बारें में अधिक जानने के लिए आपको किसी विशेषज्ञ, पंडित, विद्धान के पास जाना चाहिए।

डिस्‍कलेमर:- दोस्‍तो आज के इस लेख में हमने आपको कार्तिक पूर्णिमा Kartik Purnima Vrat katha in Hindi के बारे में विस्‍तार से बताया है। यह आपको पौराणिक मान्‍यताओं, कथाओं व न्‍यूज के आधार पर बताया है आपको बताना जरूरी है की Onlineseekhe.com किसी तरह की पुष्टि नहीं करता है। विशेष जानकारी के लिए किसी संबंधित पंडित, विद्धान के पास जाना चाहिए। यदि हमारे द्वारा बताई हुई जानकारी पसंद आई हो तो लाईक करे व अपने दोस्‍तो के पास शेयर करे। और यदि आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्‍न है तो कमंट करके जरूर पूछे। धन्‍यवाद

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