Kurma Dwadashi Vrat Katha in Hindi | कूर्म द्वादशी व्रत कथा व पूजा विधि जानिए विस्तार से | Kurma Dwadashi Vrat | कूर्म द्वादशी व्रत की कथा | Kurma Dwadashi Vrat Katha | कूर्म अवतार | Kurma Dwadashi Katha in Hindi | कूर्म द्वादशी कथा
आपको बता दे पुत्रदा एकादशी व्रत (Putrada Ekadashi) के दूसरे दिन कूर्म द्वादशी का व्रत होता है। जो की प्रतिवर्ष पौष मास की शुक्लपक्ष की द्वादशी (बारस) को किया जाता है। विष्णु पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु जी ने कूर्म अर्थात कछुए का अवतार लिया था। जिस कारण यह द्वादशी भगवान विष्णु के कूर्म रूप को समर्पित है। श्रीम विष्णु रूप कूर्म स्वरूप की पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार जो कोई व्यक्ति कूर्म द्वादशी का व्रत विधि- नियमों से करता है उसकी सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है। आप भी इस द्वादशी का व्रत रखते है तो पोस्ट में दी गई व्रत कथा व पूजा विधि को पढ़कर अपना व्रत पूर्ण कर सकते है।
कूर्म द्वादशी का महत्व (Kurma Dwadashi Vrat Ka Mahavat )
भगवान विष्णु जी ने विश्व कल्याण व धर्म की रक्षा करने के उदेश्य से कूर्म अवतार धारण किया था जो इनका दूसरा अवतार था। इस अवतार में भगवान श्री हरि (Lord Vishnu) जी कछुआ के रूप में प्रकट हुए थे जिस कारण इसे कच्छप अवतार व कूर्म अवतार के नाम से भी जाना जाता है। इस रूप का अवतार लेने का कारण देवता व दानवों के हाथों से हो रहा समुंद्र मंथम में सहायता करना था। तब उन्होने कहा था की इस संसार में जो कोई स्त्री व पुरूष मेरे इस अवतार की पूजा श्रद्धा भाव से करेगा उसकी सभी मनोकामनाए पूर्ण होगी।

कूर्म द्वादशी शुभ मुहूर्त (Kurma Dwadashi Date 2023)
हिन्दी माह के अनुसार कूर्म द्वादशी का व्रत प्रतिवर्ष पौष मास की शुक्लपक्ष की द्वादशी अर्थात पुत्रदा एकादशी व्रत के दूसरे दिन आता है। जो इस वर्ष 03 जनवरी 2023 मंगलवार के दिन पड़ रही है। जिसकी शुरूआत 02 जनवरी 2023 को रात्रि लगभग 08:23 मिनट पर हो रही है। और द्वादशी तिथि समाप्त 03 जनवरी 2023 को लगभग रात्रि के 10:02 मिनट पर हो रही है। आप सभी इसी शुभ मुहूर्त के बीच में कूर्म द्वादशी व्रत (Kurma Dwadashi Vrat 2023) का पालन कर सकते है।
कूर्म द्वादशी पूजा विधि जानिए (Kurma Dwadashi Vrat Puja Vidhi)
- इस व्रत वाले दिन प्रात: जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करे। जिसके बाद भगवान सत्यनारायण को जल का अर्घ्य देकर पीपल व तुलसी के वृक्ष में पानी चढ़ाऐ।
- जिसके बाद भगवान विष्णु की वंदना करे और इस व्रत का संकल्प करे।
- अब आपको एक चौकी लेनी होगी जिस पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर भगवान कूर्म की तस्वीर रख देनी है। यदि आपके पास विष्णु के आवतार कूर्म भगवान की मूर्ति नहीं है तो आप भगवान विष्णु की भी रख सकते है।
- इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा जल, फल, पुष्प, नैवेद्य, अक्षत, धूप, दीप, चंदन आदि चढ़ाकर विधिवत रूप से पूजा करे।
- जिसके बाद भगवान की आरती उतारे और प्रसाद चढ़ाऐ।
कूर्म द्वादशी व्रत कथा (Kurma Dwadashi Vrat Katha in Hindi)
विष्णु पुराण के अनुसार एक बार देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति और ऐश्वर्य के घमण्डं /अहंकार में आकर महर्षि मुनि ऋषि दुर्वासा का अपमान कर दिया। अर्थात ऋषि दुर्वासा ने देवराज को एक पुष्पों की माला भेट स्वरूप की थी परन्तु देवराज इंद्र ने उस पुष्प माला को स्व्यं पहने के बजाय अपने ऐरावत हाथी को दे दिया। और हाथी ऐरावत ने उस माला को नीचे फेक दिया जिस कारण ऋषि दुर्वासा अति क्रोधित हो उठे।
उसके बाद ऋषिवर ने देवराज इन्द्र को श्राप दिया की तुम सभी देवताओं में अपना बल ऐश्वर्य व सब कुछ खो दोगे। ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण देवतागण बहुत निर्बल व तेजव्हीन हो गऐ जिसका फायदा असुरों ने उठाया। उनको इस स्थिति में देखकर राक्षसों ने आक्रमण कर दिया और देवताओं को हराकर दैत्यराज बलि ने स्वर्ग पर अपना आदिप्तय जमा लिया। और सभी देवताओं को स्वर्ग लोक से निकाल दिया जिससे परेशान होकर सभी देवगण भगवान विष्णु के पास गए।
और अपनी सारी कथा सुनाई तब भगवान विष्णु जी ने कहा यदि तुम सभी देवता व राक्षस गण मिलकर समुद्र मंथन करेगे तो उससे अमृत प्राप्त होगा। जिसे पीकर तुम्हारी खोई हुई शक्ति वापस आ जाएगी। किन्तु ध्यान रहे यह कार्य इतना भी आसन नहीं है तब विष्णु जी ने कहा की तुम असुरों को अमृत का लोभ देकर समुद्र मंथन में सहायता के लिए साथ कर लो। जब राक्षसों ने अमृत वाली बात को सुनी तो वो सभी इसके लिए तैयार हो गए।
और कहा की जो भी मंथन के समय किमती वस्तु निकलेगी उसे आधी-आधी बांट लेगे और इस प्रकार दोनो पक्ष समुद्र मंथन के लिए मान गए। मंथन के लिए सभी देवता व राक्षस क्षीर सागर के पास आ पहुचे और मंद्राचल पर्वत को मंथनी व वासुकि नाग को रस्सी (मंथने के लिए) के के रूप में लिया। और एक ओर से देवता तथा दूसरी ओर से राक्षसगण मंथन के लिए लग गए।
समुद्र मंथन के प्रारंभ होने के कुछ ही समय के बाद मंद्राचल पर्वत धीरे-धीरे समुद्र में जाने लगा जिस कारण देवता व दानवो ने मंथन को रोक दिया। सभी देवता व राक्षस ने इस समस्या का समाधान भगवान विष्णु से पूछा और कहा की हे प्रभु अब तो आप ही कुछ करिए। उसके बाद भगवान विष्णु जी ने कूर्म (कछुआ) का रूप लेकर मंद्राचल पर्वत के नीचे आसीन हो गए। तब जाकर उनकी पीठ पर समुद्र मंथन पुन: प्रारंभ हुआ और इसी प्रकार धीरे-धीरे किमती वस्तुओंव बहुमूल्य रत्नों निकले।
और अनेक प्रकार के जीव-जंतु आदि की उत्पत्ति हुई। उसके बाद ही देवताओं को अमृत की प्राप्ति हुई जिसे पीकर देवताओं को पुन: अपनी शक्ति मिली।
दोस्तो आज के इस लेख में हमने आपको कूर्म द्वादशी व्रत Kurma Dwadashi Vrat Katha in Hindi के बारें में विस्तार से बताया है। यदि आपको हमारे द्वारा प्रदान की गई जानकारी पसंद आई हो तो लाईक करे व अपने मिलने वालो के पास शेयर करे। और यदि आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्न है तो आप कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर पूछ सकते है। धन्यवाद