Mahalaxmi Vrat Katha in Hindi:- सनातन धर्म के पुराणों, व धार्मिक ग्रंथो के अनुसार धन कि देवी माता लक्ष्मी जी जो भगवान विष्णु जी कि पत्नी है। उनको बताया है कहा गया है कि जो मनुष्य माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करता है उसके घर में धन संपदा के साथ सुख शांति बनी रहती है। धन कि देवी को प्रसन्न करने के लिए अधिकतर भक्त गण हर साल भाद्रपद महिने में लगातार 16 दिनों तक महालक्ष्मी व्रत (Mahalaxmi Vrat) रखते है।
महालक्ष्मी व्रत का आरंभ भाद्रपद महिने कि शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि यानी राधाअष्टमी वाले दिन से होता है। जो लगातार अश्रिवन महिने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक किया जाता है। आप भी माता को प्रसन्न करने के लिए महालक्ष्मी का व्रत करते है तो आर्टिकल में आपको व्रत से जुड़ी पूरी जानकारी मिल जाएगी……………………
महालक्ष्मी व्रत का महत्व/Mahalaxmi Vrat ka Mahatva
पुराणों के अनुसार जो भी याचक/साधक माता लक्ष्मी का व्रत, पूजा, पाठ, मंत्र आदि करता है तो माता की कृपा उसके ऊपर बनी रहती है। कहा जाता है महालक्ष्मी का व्रत करने से मनुष्य कि दरिद्रता जल्दी ही दूर होती है और उसके जीवन में सदैव सुख-शांति बनी रहती है। एक मान्यता यह भी है की जब पांडु पुत्रों ने दाव में अपना सर्वश्र खो दिया थो तो उन्होने भगवान श्री कृष्ण जी के कहने पर महालक्ष्मी का व्रत किया था।

और महालक्ष्मी व्रत के प्रताप से खोया हुआ राजपाठ, संपत्ति वापस मिल गया था उसी समय से भाद्रपद महिने में महालक्ष्मी का व्रत और भी ज्यादा विशेष हो गया है।
महालक्ष्मी व्रत कब हैMahalaxmi Vrat kab Hai
हिंदू मान्यताओं के अनुसार तो महालक्ष्मी जी का व्रत सदैव भाद्रपद महिने कि शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि को किया जाता है। जो इस साल 22 सितंबर 2023 से आरंभ हो रहे है जो लगातार आश्रिवन महिने में कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि वाले दिन पूरा होता है।
महालक्ष्मी व्रत का शुभ मुहूर्त (Mahalaxmi Vrat ka Shubh Muhurat) )
पंचांग के तहत भाद्रपद महिने में शुक्लपक्ष अष्टमी तिथि इस साल 22 सितंबर 2023 शुक्रवार के दिन पउ़ रहा है। इस व्रत का आरंभ दोपहर 01:35 मिनट पर होकर 23 सितंबर को दोपहर 12:17 मिनट पर पूरा हो रहा है।
- सुबह का मुहूर्त:- 07:40 मिनट से लेकर 09:11 मिनट तक
- दोपहर का मुहूर्त:- दोपहर 12:14 से दोपहर 01:45 तक
- रात का मुहूर्त:- 09:16 से रात्रि 10:45 तक
मासिक शिवरात्रि व्रत कथा व पूजा विधि जानिए शुभ मुहूर्त
महालक्षमी व्रत पूजा विधि (Mahalaxmi Vrat Puja Vidhi)
- महालक्ष्मी का व्रत रखने वाली सभी स्त्रियों को प्रात:काल जल्दी उठकर अपने घर की साफ-सफाई करे। उसके बाद स्नान आदि से मुक्त होकर नऐ वस्त्र पहने और 16 श्रृंगार करे।
- इसके बाद सूर्य भगवान को पानी चढाकर पीपल व तुलसी के पेड़ में भी पानी चढ़ाऐ और माता तुलती को लाल रंग की चुनडी उठाए।
- महालक्ष्मी व्रत की पूजा के लिए सबसे पहले एक चौकी लेकर उसके ऊपर लाल रंग का रेशमी कपड़ा बिछा दे और एक तरफ मिट्ट का कलश जल से भरा हुआ रख देना है। ध्यान रहे कलश की स्थापन राहुकाल में न करे।
- इसके बाद एक कच्चे नारियल को लाल कपड़े में लपेटर कलश के ऊपर रख देना है।
- इसके बाद माता लक्ष्मी का मूर्ति को चौकी पर स्थापन करे किन्तु मूर्ति की स्थापना केवल दक्षिण-पूर्व कोने में ही करे।
- लक्ष्मी की मूर्ति के साइड में भगवान गणेश जी की स्थापन करे। और साथ में मिट्टी के हाथी की स्थापन करे।
- तपश्चात घी का दीपकर जलाऐ किन्तु यह घी का दीपकर आपको लगातार 16 दिनो तक जलाऐ रखना है। उसके लिए आपको बड़े दीपक को जलाना होगा।
- इसके बाद माता लक्ष्मी व गणेश जी की पूरे विधि-विधान से पूजा करे। तथा पूजा करने के बाद भोग लगाऐ।
- अत: पूजा के बाद लाल रेशमी धागा या फिर कलावे का टुकडा लेकर उसमें पूरी 16 गांठ लगाकर माता लक्ष्मी के चरणो में रख दे।
- माता लक्ष्मी की पूजा करते समय आपको इस मंत्र का जाप करना है।
- ‘ऊँ श्री हीं श्री कमले कमलालय प्रसीदा प्रसीदा श्री हरे हरे, श्री मालक्ष्म्यै नम: । इस महामंत्र का जाप आपको सुबह शाम पूजा के समय तीन बार करे।
- यह व्रत आपको लगातार 16 दिनो तक करना होगा और लास्ट वाले दिन आपको उसी तरह पूरे विधि-विधान से श्रद्धा भाव से मातालक्ष्मी की पूजा-अर्चना करे। इसके बाद जो भी पकवान आपने बनाए है उसका भोग लगाकर कम से कम 5 ब्रह्मणो को भोजन कराऐ।
- भोजन कराने के बाद यथा शक्ति दान-दक्षिणा दे। उसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करे।

महालक्ष्मी व्रत का मंत्र/Mahalaxmi Vrat Mantra in Hindi
करिष्येडहं महालक्ष्मी व्रत से स्वत्परायणा। तविध्रेन में मातु समाप्ति स्वत्प्रसादत।।
महालक्ष्मी व्रत की कथा (Mahalaxmi Vrat Katha in Hindi)
प्राचीन काल की बात है। एक गाँव में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। वह प्रतिदिन पालन अनुसार भगवान विष्णु जी की पूजा-अर्चना करता था। एक दिन उसकी इस भक्ति को देखकर भगवान विष्णु उस पर प्रसन्न हुऐ और उसे दर्शन दिए। और कहा हे भक्त अपनी इच्दा अनुसार तुम मांगो, तुम जो भी मांगोगे मै तुम्हे वरदान रूप में दूगां। इच्छा अनुसार उस ब्राह्मण भक्त ने माता लक्ष्मी मो अपने घर में आने के लिए कहा।
ब्राह्मण की बात सुनकर भगवान ने कहा की जो स्त्रीं रोज मंदिर के पास आकर गोबर के उबले थापति है वही कोई और नही बल्कि स्वयं माता लक्ष्मी जी है। तुम उन्हे इस बार अपने घर के लिए आमंत्रित करना वो आ जाएगी। ब्राह्मण से यह कहकर भगवान विष्णु जी तो अर्तध्यान हो गए। इसके बाद अगले दिन सुबह वह ब्राह्मण भक्त माता लक्ष्मी जी के इंतजार में उसी मंदिर के पास आकर बैठ गया, जहा पर वह गोबर के उपले थापने आती है।
रोज की तरह माता लक्ष्मी मंदिर के पास आकर उपले थापने लगी तो वह ब्राह्मण जाकर बोला की ‘हे देवी, कृप्या करके आप मेरे घर में पधारे। यह बारत सुनकर माता लक्ष्मी जी तुरन्त समझ गई की इस ब्राह्मण को भगवान विष्णु जी ने बताया होगा की मैं ही लक्ष्मी हूँ। उस ब्राह्मण के बार-बार आग्रह करने पर माता लक्ष्मी जी ने कहा की हे ब्राह्मण देवता तुम जाओ और अब से भाद्रपद माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी को महालक्ष्मी का व्रत पूरे नियमानुसार रखना।
इस व्रत को तुम आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक यानी 16 दिनो तक पूरी श्रद्धा के अनुसार करना। व्रत के अंतिम दिन चंद्रमा की पूजा करके अर्ध्य देकर अपना महालक्ष्मी का व्रत पूर्ण करना। उस ब्राह्मण ने ऐसा ही किया जैसा की माता लक्ष्मी ने बोला। ब्राह्मण का इस तरह से पूजा पाठ करना व लगातार 16 दिनो तक श्रद्धा भाव से व्रत देखकर मॉं लक्ष्मी उस पर प्रसन्न हुई और उसकी सभी मनोकामनाए पूरी कर दी। अगर आप भी इसी तरह महालक्ष्मी का व्रत पूरी श्रद्धा के अनुसार करोगे तो माता लक्ष्मी आपकी सभी मनोकामनाए पूर्ण् करेगी।
लक्ष्मी व्रत कथा (Laxmi Vrat ki katha Hindi me)
द्वापर युग की बात है एक हस्तिनापुर नाम विशाल राज्य था। उस राज्य की रानी गांधारी ने भाद्रपद माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी वाले दिन महालक्ष्मी का व्रत किया। और पूजा के लिए नगर की सभी स्त्रीयो को आमंत्रित किया। तथा उस राज्य की दूसरी रानी कुंती ने भी महालक्ष्मी का व्रत रखा किन्तु उसने नगर में किसी को भी आमंत्रित नही किया।
रानी गांधानी के सभी 100 पुत्र मिलकर मिट्टी का एक विशाल हाथी पूजा के लिए बनाया। और उसकी स्थापन महलो के बीचो-बीच में कर दी। उसके बाद नगर की सभी स्त्रियॉं पूजा के लिए महल में आयी। यह देखकर रानी कुंती बहुत उदास हुई, रानी कुंती को इस तरह से उदास देखकर उसे पांचो पुत्राे ने उसका कारण पूछा तो कुंती ने बताया की आज मेंरा महालक्ष्मी का व्रत है। और मेरे पास पूजा के लिए हाथी भी नही है।
कुंती की यह बात सुनकर पुत्र अर्जुन बोला की हे मॉं तुम उदास मत हो आप पूजा की तैयरी करो। मैं इतने आपकी पूजा के लिए हाथी लेकर आता हॅू। यह कहकर अर्जुन सीधा इन्द्र लोक गया और अपने धर्म के पिता इन्द्र से जाकर कहा की आज मेरी मा ने महालक्ष्मी का व्रत किया है। पूजा के लिए मुझे आपका ऐरावत हाथी चाहिए। इन्द्र ने अपना ऐरावत हाथी अर्जुन के साथ पृस्वी लोक पर पूजा के लिए भेज दिया।
हाथी लेकर अर्जुन माता कुंती के पास आया, जब नगर की अन्य स्त्रियों को इस बात का पता चला की अर्जुन अपनी माता के लिए ऐरावत हाथी लाया है। तो सभी औरते रानी गांधारी के महलो में से रानी कुंती के महलो में पूजा के लिए आ गई। इसके बाद माता कुंती ने पूरे विधि-विधान से महालक्ष्मी व्रत की पूजा की।
राधाष्टमी व्रत कथा व पूजा विधि यहा से पढ़े
Mahalaxmi Vrat udyapan Vidhi in Hindi | महालक्ष्मी व्रत कथा पूजा विधि व उद्यापन हिंदी में
Mahalaxmi Vrat Udyapan Vidhi:- आपकी जानकारी के लिए बता दे की राधाष्टमी वाले दिन देश में कई जगह पर महालक्ष्मी का व्रत रखा जाता है। यह महा व्रत भाद्रपक्ष महीने की शुक्लपक्ष की अष्टमी से लेकर आश्रिवन महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक किया जाता है। यानी महालक्ष्मी का व्रत लगातार 16 दिनो तक किया जाता है। इस दिन माता गजलक्ष्मी की पूजा का विधान है। इस व्रत को औरते अपनी परिवार की सुख शांति और वैभव धनधान की कामना बानाए रखने के लिए रखती है। ताकी उनके परिवार व उस पर माता लक्ष्मी की कृपा दृष्टि बनी रहे।
इस महा व्रत पर भगवान विष्णु जी व माता लक्ष्मी जी की भी पूजा की जाती है। यदी कोई स्त्री इस संसार में भाद्रपद शुल्क पक्ष की अष्टमी (महालक्ष्मी) का व्रत पूरे विधि-विधान श्रद्धा भाव से रखता है तो भगवान विष्णु जी उस पर सदैव अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते है। ऐसे में अगर आप भी राधाष्टमी का व्रत रखते है तो इस लेख के माध्यम से बताई गई सभी जानकारी या व्रत कथा व पूजा विधि को पढ़करन या किसी अन्य से सुनकर आ अपना महालक्ष्मी का व्रत पूर्ण कर सकते है।

महालक्ष्मी व्रत उद्यापन विधि (Mahalaxmi Vrat Udyapan Vidhi in Hindi)
- महालक्ष्मी व्रत के उद्यापन के लिए एक सुपड़ा या फिर एक बांस की टोकरी लेकर उसमे पूरे 16 श्रृंगार (बिन्दी, काजल, मेंहदी, बिछिया, मांग आदि) रखकर दूसरे सुपडे से ढक देना है।
- इसके बाद 16 घी के दीपरक जलाकर एक तरफ रख दे और पूरे विधि-विधानो से माता लक्ष्मी की पूजा करे।
- पूजा के बाद जो 16 श्रृंगार की टोकरी है उसे माता के हाथो से स्पर्श करवारक किसी ब्रह्मण को दान करे।
- इसके बाद जब रात्रि को चॉंद निकले तो अर्ध्य दे और पति व पत्नी दोनो उत्तर दिशा की ओर मुह करके माता लक्ष्मी को अपने घर में आने का आमंत्रण करो।
- इसके बाद बिना प्याज व लहसुन के पकवानो का माता को चॉदी की थाली भोग लगाऐ। इसके बाद घर के उन सभी सदस्यो को भोजन कराए जो महालक्ष्मी का व्रत किया है। उसके बाद स्वयं भोजन पाऐ।
- जो माता की प्रसाद की थाली है उसे प्रात:काल नहाकर किसी गाय को खिला दे।
महालक्ष्मी व्रत में क्या खाना चाहिए
महालक्ष्मी व्रत में क्या खाते है:- महालक्ष्मी व्रत में में केाई भी अन्न नहीं खाता है व्रत वाले दिन सिर्फ दूध, फल, मिठाई आदि का ही भोजन किया जाता है।
जिसमें पहले, आठवें और सोलहवें दिन यह व्रत किया जाता है। विशेष : इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। सिर्फ केवल दूध, फल, मिठाई आदि का सेवन किया जा सकता है।
डिस्कलेमर:- आज आपको महालक्ष्मी व्रत के बारें में बताया है जो पौराणिक मान्यताओं व कथाओं के बेस पर लिखकर बताया है। आपको बताना जरूरी है Onlineseekhe.com किसी प्रकार कि पुष्टि नहीं देगा अत: अधिक जानकारी हेतु किसी संबंधित विशेषज्ञ, विद्धान व पंडित के पास जाए। और आप इस प्रकार आने वाले सभी व्रत व त्यौहारो के बारें में पढ़ना चाहते है तो वेबसाइट के साथ बने रहिए। Mahalaxmi Vrat Katha in Hindi
Pingback: Dol Ekadashi Vrat Katha in Hindi | पद्मा/परिवर्तिनी व जलझूलनी ग्यारस व्रत की कथा व पूजा विधि यहा से पढ़े