Margashirsh Purnima Vrat 2021 | मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत कथा व पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त जाने

Margashirsh Purnima Vrat Katha in Hindi

जैसा की आप सभी जानते है वर्ष में 12 पूर्णिमाए आती है। हिन्‍दी पंचाग के अनुसार पूर्णिमा महीने के अंतिम दिन को आती है। जिसके बाद दूसरा महीना शुरू हो जाता है। किन्‍तु आज हम बात करेगे मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के बारे मे। जो की महीने की शुक्‍लपक्ष की अंतिम दिन आती है। इस वर्ष यह पूर्णिमा 18 दिसबंर 2021 की पड़ रही है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के व्रत में भगवान नारायण की पूजा का विधान होता है तथा जो कोई व्‍यक्ति श्रद्धा भाव से इस पूर्णिमा का व्रत रखता है उसके सभी कष्‍ट दूर हो जाते है। ऐसे में आप भी मार्गशीर्ष की पूर्णिमा का व्रत रखते है तो पोस्‍ट में बताई हुई व्रत कथा व पूजा विधि को पढ़कर आप अपना व्रत पूर्ण कर सकते है। तो पोस्‍ट के अतं तक बने रहे।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्‍व (Margashirsh Purnima in Hindi)

पूर्णिमा व्रत कथा
पूर्णिमा व्रत कथा

आपको बता दे सभी महीने की पूर्णिमाओ का महत्‍व अलग-अलग होता है और मार्गशीर्ष मास की पूर्णिका को बहुत पवित्र माना गया है क्‍योकि इस पूर्णिमा के बारे में स्‍वयं भगवान श्री कृष्‍ण जी ने बताया था। और कहा था संसार में यदि कोई स्‍त्री व पुरूष मार्गशीर्ष की पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि-विधान से करेगा। उसके सभी कष्‍ट दूर होकर वह सभी पापों से मुक्‍त हो जाएगा। अर्थात उसे मृत्‍यु के बाद बैंकुठ धाम की प्राप्‍ति होगी।

हमारे हिन्‍दु धर्म की पूर्णिका का वि‍शेष महत्‍व होता है। जिस कारण इसे पवित्र व्रत माना जाता है तथा व्रत वाले दिन भवगान कृष्‍ण जी की अर्थात विष्‍णु जी की पूजा का विधान है तथ रात्रि के समय चंद्रमा का पूजा करके अर्घ्‍य देकर आप अपना व्रत पूर्ण कर सकते है। आपको बता दे मार्गशीर्ष की पूर्णिमा काे अगहन पूर्णिमा भी कहा जाता है।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा 2021 चंद्रमा उगने का समय

इस पूर्णिमा वाले दिन चंद्रमा शाम के 04:46 मिनट पर ऊग जाएगा। जिसके बाद आप चंद्रमा देव की विधिवत रूप से पूजा करके अर्घ्‍य देकर अपना पूर्णिमा का व्रत पूर्ण कर सकते है। इस दिन चंद्रमा पूरा दिखाई देता है जिस कारण इस पूर्णमासी पूर्णिमा भी कहा जाता है।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा 2021 का शुभ मुहूर्त

वैसे तो मार्गशीर्ष की पूर्णिमा प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष माह की शुक्‍लपक्ष की अंतिम दिन आती है। और पंचाग के अनुसार इस वर्ष पूर्णिमा 18 दिसबरं 2021 शनिवार के दिन पड़ रही है। जिसकी शुरूआत प्रात: 07 बजकर 24 मिनट पर हो जाएगी। और 19 दिसबंर 2021 रविवार के दिन सुबह 10 बजकर 05 मिनट पर समाप्‍त हो जाएगी।

चंद्रमा का अर्घ्‍य देने का शुभ समय 04 बजकर 46 मिनट से शुरू होकर रात्रि के 09 बजकर 13 मिनट तक रहेगा। आप इसी शुभ मुहूर्त के बीच में पूर्णिमा व्रत की पूजा तथा चंद्रमा का अर्घ्‍य देकर अपना व्रत पूर्ण कर सकती है।

  • मार्गशीर्ष पूर्णिमा का आंरभ:- 18 दिसबंर 2021 को प्रात: 07:24 पर
  • पूर्णिमा तिथि का समाप्‍न:- 19 दिसबंर 2021 को प्रात: 10:05 पर
  • चंद्रमा उगने का समय:- 18 दिसबंर को संध्‍या के 04:46 पर

मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि

  • इस दिन व्रत रखने वाले व्‍यक्ति को प्रात: ब्रह्मा मुहर्त में स्‍नान आदि करके सफेद रंग के वस्‍त्र धारण करे।
  • जिसके बाद ‘ऊँ नमो नारायण’ मंत्र का जाप करते हुए भगवान सूर्य को जल चढ़ाकर पीपल व तुलसी के पेंड़ में पानी चढ़ाऐ।
  • इसके बाद चाकोर वेदी बनाऐ जिसकी लम्‍बाई व चौड़ाई एक हाथ के बराबर हो। चाकोर के सामने भगवान विष्‍णु जी या कृष्‍ण जी की मूर्ति की स्‍थापना करे।
  • जिसके बाद मिटटी का कलश स्‍थपित करे उस पर नारियल का गोला रखे। और एक रूपया चढ़ाऐ। अब इस चाकोर (यज्ञ) में अग्नि को स्‍थापित करे जिसमें तेल, बूरा, घी आदि की आहूती दे।
  • हवन की समाप्ति होने के बाद भगवान की पूजा करे पूजा में पुष्‍प, फल, रौली व मौली, चावल, नैवेद्य आदि चढाऐ।
  • इसके बाद पूर्णिमा के व्रत को अर्पण करे तथ निम्‍नलिखित श्‍लोक का उच्‍चारण करे।

पौर्ण मास्‍यं निराहार: स्थिता देव तवाज्ञया। मोक्ष्‍यादि पुण्‍डरीकाक्ष परेडहिृ शरणं भव।।

अर्थात:- हे देव ! मैं पूर्णिमा को निराहार व्रत रखकर दूसरे दिन आपकी आज्ञा से भोजन करूगॉं यदि‍ आप मुझे अपनी शरण में लेवें। इस प्रकार भगवान को व्रत समर्पित करके सायंकाल चन्‍द्रमा के उदय होने पर दोनों घुटनों के बल बैठकर सफेद फूल, अक्षत, चंदन, जल सहित चन्‍द्रमा को अर्घ्‍य देवें। तथा अर्घ्‍य देते समय चंद्रमा से विनती करे-

हे चंद्र देवता आपका जन्‍म अत्रि कुल में हुआ है और आप क्षीर सागर में प्रकट हुए हैं। मेरे अर्घ्‍य को स्‍वीकार करें। चन्‍द्रमा को अर्घ्‍य देने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करे ‘हे भगवान! आप श्‍वेत किरणों से सुशोभित हैं, आपको मेरा सत्-सत् प्रणाम है। आप द्विजों के राजा है, आपको मेरा नमस्‍कार है। आप रोहिणी देवी के पति है, आकपो मेरा नमस्‍कार है।

  • इस प्रकार रात्रि होने पर भगवान की मूर्ति के पास शयन करें तथा दूसरे दिन सुबह ब्राह्मणों को भोजन करायें और दान देकर विदा करे।
  • जिसके बाद गाय को रोटी देकर स्‍वयं भोजन ग्रहण करे।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत कथा/ पूर्णिमा व्रत कथा

पुराणों के अनुूसार एक बार देवर्षि नारद जी भगवान विष्‍णु जी के पास गऐ उस समय नारद जी बहुत दु:खी थे। क्‍योंकि उनसे मनुष्‍यों को कष्‍ट नहीं देखा जा रहा था जिस कारण वो स्‍वयं भी दु:खी व अति भावुक हो गऐ। नारद जी को इस तरह दु:खी अवस्‍था में देखकर भगवान विष्‍णु जी बोले हे देवर्षि क्‍या हुआ आप बड़े दु:खी है। अपने प्रभु की बात सुनकर देवर्षि बोले हे प्रभु आप कोई ऐसा उपाय बताइऐ जिससे मनुष्‍य जाती का कल्‍याण हो सके।

नारद जी की बात सुनरक भगवान हरि बोले हे नारद जी यदि कोई मनुष्‍य इस सांसारिक मोह माया से मुक्‍त होना चाहते है तो उसे श्री सत्‍यनारायण की पूजा करनी चाहिए। अर्थात संसार जो कोई व्‍यक्ति इस जीवन चरण (जन्‍म- मृत्‍यु) के चक्र से मुक्‍त होना चाहता है तो उसे मार्गशीर्ष की पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए।

भगवान विष्‍णु जी ने बताया की हे देवर्षि श्री सत्‍यनारायण के व्रत का उल्‍लेख तो स्‍कंद पुराण में भी मिलता हैं। और जिन-जिन महापुरूषों ने भगवान सत्‍यनारायण का व्रत किया है या उनकी कथा सुनी है उनका नाम इस स्‍कंद पुराण अर्थात उनकी कथा में जुड़ता गया है। जो की निम्‍नलिखित व्‍यक्ति है

राजा उल्‍कामुख, राजा तुड़ग्‍ध्‍वज, गरीब लकड़हार, निर्धन ब्राह्मण, साधु वैश्‍य, लीलावती, कलावती, धनवान व्‍यवसायी और गोपगणों आदि है। अपने प्रभु विष्‍णु की बात सुनकर नारद जी समझ आया और उसने श्री सत्‍यनारायण व्रत के बारें में बताया। और का की यदि कोई व्‍यक्ति इस व्रत को श्रद्धा भाव से करेगा उसके सभी कष्‍ट दूर होकर अपने पापों से मुक्‍त हो जाएगा।

दोस्‍तो आज के इस लेख में हमने आपको मार्गशीर्ष पूर्णिमा के बारे में विस्‍तार से बताया है। यदि हमारे द्वारा प्रदान की गई जानकारी पसंद आई हो तो लाईक करे व अपने दोस्‍तो के पास शेयर करे। और यदि आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्‍न है तो कमंट करके जरूर पूछे। धन्‍यवाद

यह भी पढ़े-

प्रश्‍न:- मार्गशीर्ष पूर्णिमा कब है

उत्तर:- 18 दिसबंर 2021 शरिवार

प्रश्‍न:- प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा कब आती है।

उत्तर:- हिन्‍दी पंचाग के अनुसार हर महीने के अंतिम दिन पूर्णिमा आती है। और मार्गशीर्ष पूर्णिमा भी इस माह के अंतिम दिन आती है।

प्रश्‍न:- मार्गशीर्ष पूर्णिका का दूसरा नाम क्‍या है।

उत्तर:- अगहन पूर्णिमा

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