Vrat Katha

Nirjala Ekadashi Vrat Katha In Hindi | निर्जला एकादशी व्रत कथा व पूजा विधि

दोस्‍तो आज के लेख में बात करेगे निर्जला एकादशी ( Nirjala Ekadashi Vrat Katha ) के बारें में। आप सभी जानतें होगे की हमारे धर्म में बहुत से देवी-देवताओ को मानते है और उनकी पूजा-पाठ व व्रत करते है। किन्‍तु आज हम बात करेगे भगवान विष्‍णु जी के बारे में जो इस पूरे जगत के पिता है। हिन्‍दु धर्म के सभी वेदों पुराणों में लिखा है की जो भी मनुष्‍य भगवान विष्‍णु की भक्ति सेवा करता है उसे भगवान के चरण कमलो में स्‍थान प्राप्‍त होता है। अगर आप विष्‍णु भगवान के भक्‍त है और उनकी पूजा पाठ व सेवा और उनको प्रसन्‍न करने के लिए निर्जला एकादशी का व्रत रखते है। तो आज की पोस्‍ट में हम आपको निर्जला एकादशी व्रत के बारें में विस्‍तार से बताएगें।

निर्जला एकादशी व्रत व पूजा विधि

संसार का कोई भी मानव Nirjala Ekadashi Vrat Katha रखता है तो उसे सबसे पहले प्रात:काल जल्‍दी उठकर स्‍नान आदि से मुक्‍त होकर सूर्य भगवान ओर पीपल के पेढ़ में पानी चढ़ाना चाहिऐ। फिर भगवान विष्‍णु के मंदिर जाक‍र उनकी नियमानुसार पूजा कर कथा सुननी चाहिऐ। कथा सुननें के बाद भगवान की आरती करके संध्‍या के समय सागार/फलाहार करना चाहिऐ। अगले दिन सुबह स्‍नान करके मंदिर में पुजारी को सीधा देकर गाय को एक रोटी के साथ प्रसाद दकेर भोजन करना चाहिऐ।

निर्जला एकादशी व्रत कब आता है और इसका महत्‍व

Nirjala Ekadashi Vrat ज्‍येष्‍ठ माह की शुक्‍लपक्ष की एकादशी को ही निर्जला एकादशी कहते है। इस व्रत को स्‍त्री व पुरूष दोनो कर सकते है व्रत के दिन पानी पीना भी वर्जित है। निर्जला एकादशी व्रत वर्ष में चौबीस एकादशीयों में से ज्‍येष्‍ठ शुक्‍ल एकादशी ही सर्वोत्तम है। इसका व्रत रखने से सभी एकादशीयों का फल मिलता है। इस दिन भगवान विष्‍णु का शेषशायी रूप की पूजा की जाती है। और पूजा करते समय ओउम नमों भगवते वासुदेवाय: का जाप करना चाहिऐ।

निर्जला एकादशी व्रत कथा

महाभात काल की बात है जब पांचों पांडवों व उनकी माता वनवास में जीवन व्‍यतीत कर रहे थे । तब एक दिन महर्षि व्‍यास जी उनकी कुटीया में पधारें। पांंडवों ने उनका भव्‍य स्‍वागत किया। और आसन बिछाकर भोजन कराया। फिर भीम ने व्‍यास जी से कहा हे भगवन ये सभी एकादशी का व्रत करते है। किन्‍तु मुझसे यह व्रत नही होता क्‍योकिं मैं बिना खाए नही रह सकता। इसलिए आप चौबीस एकादशीयों में निराहार रहने का कष्‍ट साधना से बचाकर मुझे कोई ऐसा व्रत बताइये जिसे करनें में कोई असुविधा न हो और उन सब का फल भी मिल जाऐ।

महर्षि व्‍यास जी ने कहा कुन्‍ती पुत्र भीम तुम ज्‍येष्‍ठ माह की शुक्‍लपक्ष की एकादशी का व्रत रखा करो। इस व्रत में प्रात:काल जल्‍दी स्‍नान करके आचमन में पानी पीने से दोष नहीं होता। इस व्रत से जो अन्‍य तेईस एकादशीया है उन सब का फल भी मिल जाएगा। परन्‍तु तुम जीवन के पर्यन्‍त तक इस व्रत का पालन करना।

महर्षि व्‍यास जी जानते थे कि भीम के उदर में बृक नामक अग्नि है इसलिए वह बहुत ज्‍यादा भोजन करने पर भी उसकी भुख शांत नहीं होती। इसी लिए उन्‍होने भीम को Nirjala Ekadashi Vrat करने को कहा। भीम बडे साहस के साथ यह व्रत करने लगा जिसके परिणाम स्‍वरूप प्रात होते-होते ही वह संज्ञाहीन हो गया। तब पांडवों ने उसे तुलसी चरणामृत प्रसाद देकर उनकी मूर्छा दूर करी। इसीलिए इसे भीमसेन एकादशी भी कहते है।

दोस्‍तो आज की पोस्‍ट में हमने आपको निर्जला एकादशी व्रत कथा के बारें में सभी जानकारी प्रदान की है। अगर आप सभी को पोस्‍ट में बतायी गई सभी जानकारी पंसद आयी है तो इसे अपने सभी दोस्‍तो के पास शेयर करे। और कोई प्रश्‍न आपके मन में आता है तो कमंट करे पूछे। धन्‍यवाद

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