Ravivar Vrat Katha in Hindi आप सभी जानते है कि हमारे हिन्दु धर्म में लगभग हर रोज किसी न किसी भगवान अथवा देवी-देवता का व्रत रखा जाता है ठीक उसी तरह से रविवार के दिन भगवान सूर्य की पूजा अर्चना की जाती है एवं सूर्य भगवान के लिए रविवार का व्रत (Ravivar Vrat Katha) रखा जाता है।
सूर्य भगवान को अनेक नामो जैसे कि सूर्य भगवान, सूरज भगवान एवं सत्यनारायण भगवान आदि नामों से भी पुकारा जाता है। वैसे तो हमारे देश मे लगभग हर दिन लोग प्रात: काल भगवान सूर्य को जल चढ़ाते है एवं उन्हे नमस्कार करते है किन्तु रविवार के दिन भगवान सूर्य की पूजा करने का अलग महत्व होता है। क्योकि रविवार का दिन विशेष रूप से सूर्य देवता को समर्पित होता है। सूर्य पूरे ससांर को प्रकाश देता है तथा हमारा मार्गदर्शन भी करता है
रविवार व्रत कथा हिन्दी में | Ravivar Vrat Katha
ससांर को प्रकाश देने वाले सूर्य की सदियों से पूजा होती आई है। जो भी भक्त अथवा मनुष्य सच्च मन से सूर्य भगवान की पूजा करता है या फिर रविवार को सूर्य देवता का व्रत रखकर उनकी पूजा अर्चना करता है तो सूर्य देवता उसकी मनोकामनाओ को पूरा करते है। रविवार अथवा ईतवार के दिन सूर्य देवता का व्रत रखने से मनुष्य को सुख एवं धन सपंदा की प्राप्ति होती है। ऐसे में यदि आप भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए उनका व्रत रखना चाहते है तो आज के इस लेख में हम आपको रविवार व्रत कथा (Ravivar Vrat Katha) के बारे में बताने जा रहे है।
इस लेख में हम आपको बताएगे कि रविवार का व्रत कैसे रखे, रविवार व्रत कथा एवं पूजन की विधि क्या है इत्यादि। आपसे निवेदन है कि Ravivar Vrat Katha के बारे में पढ़ने के लिए आप लेख को पूरा पढ़े।
रविवार व्रत पूजा विधि | Ravivar Vrat Pooja Vidhi

रविवार के दिन सूर्य देवता का व्रत (उपवास) रखने वाले व्यक्ति को सुबह प्रात: काल उठकर स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके पश्चात् भगवान सूर्य को जल चढ़ाये। सूर्य देवता को जल अर्पित करने के बाद पीपल एवं तुलसी माता के पेड़ को भी जल अर्पित करे। फिर एकान्त में बैठकर शान्तचित् मन से भगवान का स्मरण कर विधि-विधान के अनुसार सूर्य देवता की पूजा एवं आरती करे। इतना करने के बाद आपको रविवार व्रत कथा (Ravivar Vrat Katha) का पाठ करना चाहिए।
इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति को दिन में एक समय भोजन अथवा फलाहार सूर्य का प्रकाश रहते करना चाहिए। वही अगर किसी कारणवश कोई भक्त सूर्य के प्रकाश रहते भोजन नही कर पाता है तो दूसरे दिन सूर्योदय होने पर सूर्य को अर्ध्य देकर भोजन करना चाहिए। रविवार का व्रत रखने वाले व्यक्ति को व्रत वाले दिन तेलयुक्त या नमकीन भोजन नही करना चाहिए।
Ravivar Vrat Katha in Hindi | रविवार के व्रत की कथा
एक समय एक गाँव में एक बुढि़या रहती थी। वह नियम से प्रत्येक रविवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर अपने घर को गाय के गोबर से लीपती थी। फिर भोजन बनाकर भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन करती थी। यह व्रत करने से बुढि़या के घर में किसी भी चीज की कमी नही थी एवं घर में पूरा आनन्द-मगंल था, ऐसे ही कुछ दिन बीत गये। बुढि़या की पडौसन जिसकी गाय का वह गोबर लाती थी। वह सोचने लगी कि यह बुढि़या प्रत्येक रविवार को मेरी गाय का गोबर ले जाती है इसका क्या कारण है।
रविवार वाले दिन उसने अपनी गाय को घर के अन्दर बाँध दिया। जब वह बुढि़या गाय का गोबर लेने गई तो उसे कुछ नही मिलने के कारण वह न तो भोजन बना पाई और ना ही भगवान को भोग लगा पाई। इस प्रकार बुढि़या का उस दिन निराहर का व्रत हो गया और वह भूखी-प्यासी ही सो गई। रात्रि के समय भगवान बुढिया के सपनो में आकर भूखी सोने का कारण पूछा तो उसने गाय का गोबर नही मिलने का कारण बताया।
बुढि़या को वरदान में गाय प्राप्त होना
यह सुनकर भगवान ने कहा माता मैं तुम्हे ऐसी गाय दे दूगा जिससे तुम सभी इच्छाऐ पूर्ण कर सकती हो। क्योकि तुम हमेशा रविवार वाले दिन गौ के गोबर से लीपकर भोजन बनाकर मुझे भोग लगाती हो, फिर तुम स्वंम खाती हो। मैं तुम्हारी इस भक्ति से प्रसन्न हो गया हू। इसलिए मैं तुम्हे एक गाय और बछड़ा देता हूँ। यह वरदान देकर भगवान वहा से अर्न्तध्यान हो गए। अचानक बुढि़या की आखे खुली तो उसने देखा की उसके आगंन में एक बहुत सुन्दर गाय और बछड़ा है।
बुढि़या गाय और बछड़े को देखकर अति प्रसन्न हुई और उन दोनो को बाहर बॉंध दिया। जब बुढि़या के घर के बाहर पडौसन ने गाय और बछडा बँधा देखा तो उसका ह्दय जल उठा। अचानक उसने देखा की बुढि़या की गाय साेने का गोबर किया तो उसने अपनी गाय का गोबर वहा पर डाला और सोने के गोबर को उठा ले गई। वह रोज ऐसा ही करने लगी, बेचारी बुढि़या को इसकी खबर भी नहीं होने दी। तब ईश्वर ने सोचा कि चालाक पड़ोसन के कर्म से बुढि़या ठगी जा रही है।

एक दिन संध्या के समय भगवान ने अपनी माया से बड़े जोर की ऑंधी चला दी और वर्षा की शुरूआत हो गई। बुढि़या ने ऑंधी और बारीस के भय से अपनी गाय और बछडे को अन्दर बॉंध दिया। जब वह सुबह उठी और गाय का गोबर उठाने गई तो देखा की गौ ने सोने का गोबर कर रखा था। तो उसके आश्चर्य की सीमा नही रही और वह प्रतिदिन गाय को भीतर बॉंधने लगी। उधर पड़ोसन ने देखा की बुढिया रोज गाय को भीतर बॉंधने लगी और उसका सोने का गोबर उठाने को दॉंव नही लगा।
बुढि़या की गाय को सिपायो को ले जाना
वह बुढि़या से और ज्यादा ईष्या करने लगी, कुछ उपाय न देख पड़ोसन राजा के पास गयी। और कहा महाराज मेरे पड़ोस में एक बुढि़या है उसके पास एक ऐसी गाय है जो आपके योग्य है। वह गाय रोज सोने का गोबर करती है। यदि वह उसके पास रही तो बुढि़या तो आप से भी ज्यादा पैसे वाली बन जाएगी। वह बुढि़या उस सोने देने वाली गाय को क्या करेगी।
राजा ने अपने सिपाहीयो को तुंरत बुढि़या के घर भेजा और गाय को लाने का आदेश दिया। बुढि़या रोज की तरह सुबह नहाकर घर को लीपकर भोजन बनाकर , भगवान को प्रसाद लगा रही थी। कि अचानक राजा के सिपाही आए और गाय को ले गये बुढि़या बहुत रोई-चिल्लाई पर उसकी किसी ने नही सुनी। उस दिन बुढि़या ने गाय के वियोग में भोजन भी नही किया और रात भर रो-रोकर भगवान से गौ को वापिस लाने की प्रार्थना करती रही।
राजा ने गाय बुढि़या को वापिस दे दी
उधर राजा गाय काे देखकर बहुत प्रसन्न हुआ, किन्तु सुबह उठकर देखा तो सोने की जगह पूरे महलो में गोबर ही गोबर हो रहा था। राजा यह देखकर घबरा गया। उसी दिन रात्रि को राजा के सपनो में भगवान ने आकर कहा हे राजन तुम यह गाय उसी वृद्धा काे दे दो। उसी में तेरा भला है। उस वृद्धा की पूजा-अर्चना तथा रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर मैने उसे यह गाय वरदान में दी थी। यह कहकर भगवान अतंरर्ध्यान हो गये। प्रात:काल होते ही राजा ने उस बुढि़या को दरबार में बुलाकर बहुत सारा धन देकर सम्मान सहित गाय और बछड़ा लौटा दिया।
बुढि़या की पड़ौसन को बुलाकर उसे दण्ड़ दिया। यह करने के बाद राजा के महलो में से गोबर की गदंगी अपने आप चली गई। उसी दिन से राजा ने अपने राज्य की सभी प्रजा को आदेश दिया कि वो Ravivar Vrat katha का आयोजन करेगा। ताकि नगर के सभी लोग सुखी जीवन व्यतीत कर सके। और इस व्रत को करने से सभी की बीमारी प्रकृति के प्रकोप से समाप्त हो जाऐगी। उसी दिन से राज्य में सभी लोग रविवार व्रत कथा का पूरे नियम से पाठ करने लगे एवं राज्य की प्रजा सुखी जीवन व्यतीत करने लगी।
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