Rohini Vrat Katha in Hindi | रोहिणी व्रत कथा व पूजा विधि यहा से जाने

Rohini Vrat Katha in Hindi | रोहिणी व्रत कथा व पूजा विधि यहा से जाने | Rohini Vrat in Hindi | रोहिणी व्रत | Rohini Vrat Dates | रोहिणी व्रत कथा | Rohini Vrat Ki Katha | रोहिणी व्रत क्‍या है | Rohini Vrat Kya hota Hai | रोहिणी व्रत क्‍यों किया जाता है | Rohini Vrat Dates | अप्रैल रोहिणी व्रत

Rohini Vrat Katha in Hindi आप सभी जानते है रोहिणी व्रत प्रतिमाह में आता है। कभी कभी तो यह एक महीने में दो बार आ जाता है। और आज हम बात करेगें आशिवन मास में पड़ने वाला रोहिणी व्रत के बारें में जो 04 अक्‍टूबर 2023 के दिन रखा जाएगा। खासतौर पर इस व्रत का महत्‍व जैन समुदाय में होता है। इस व्रत को रोहिणी नक्षत्र में करने के कारण रोहिणी व्रत कहते है। यह 27 दिनों के अंतराल में पुन: आता है। यानी पूरे वर्ष में 12 रोहिणी व्रत होते है।

जिन्‍हे जैने समुदाय के स्‍त्री व पुरूष पूरे विधिवत रूप से करते है। इस व्रत को रखने वाले स्‍त्री व पुरूष पूरे दिन अन्‍न व जल बिल्‍कुल ग्रहण नही करते जिस कारण इसे चौविहार कहा जाता है। इस व्रत वाले दिन जैन धर्म कें 12 वें अन्‍तिम तीर्थकर श्री वासुपुज्‍य जी पूजा करके व्रत को पूरा करते है। ऐसे में यदि आपने भी रोहिणी का व्रत रखा है तो पोस्‍ट में दी गई व्रत कथा व पूजा विधि को पढ़कर आप अपना व्रत पूर्ण कर सकते है। तो पोस्‍ट के अन्‍त तक बने रहे।

Rohini Vrat Katha in Hindi (रोहिणी व्रत का महत्‍व)

Rohini Vrat Katha in Hindi
Rohini Vrat Katha in Hindi

जैन समप्रदाय में इस व्रत को बहुत खास महत्‍व है। इस दिन जैन धर्म के सभी स्‍त्री व पुरूष रोहिण का व्रत रखते है। तथा व्रत नही करने वाले व्‍यक्ति तामसिक भोजन को त्‍यागकर सात्विक भोजन करते है। इस दिन पूरे दिन भर व्रत के नियमों का पालन करते हुए पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन जो कोई स्‍त्री पुरूष पूरे श्रद्धा भाव से इस व्रत को रखता है। उसकी सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है।

रोहिणी व्रत कब रखा जाता है जानिए/Rohini Vrat Kab Aata Hai

मान्‍यताओं के अनुसार कुल नक्षत्र 27 होते है जिनमें से एक नक्षत्र रोहिणी नाम का होता है और इस व्रत का संबंध इसी नक्षत्र से जुड़ा हुआ है। जब प्र‍त्‍येक महीने में सूर्य उदय होने के बाद रोहिणी नक्षत्र का प्रबल बढ़ता है तो इस व्रत को रखा जाता है ताकी इसका प्रभाव ज्‍यादा नहीं बढ़। जो की महीने में एक बार आता है कभी कभार तो यह महीने में दो बार पड़ता है।

Rohini Vrat ka Shub Muhurat(रोहिणी व्रत शुभ मुहूर्त)

आपकी जानकारी के लिए बता दे वैदिक ज्‍योतिषो के तहत इस दिन चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र का शासक ग्रह होता है। जिसके समाप्‍त होने के बाद मार्गशीर्ष नक्षत्र प्रारंभ हो जाता है। जिसके कारण सूर्यास्‍त से पहले ही फलाहार कर लिया जाता है। क्‍योकि यह व्रत फलाहार होता है

पौराणिक मान्‍यताओ के अनुसार ऐसा माना जाता है की एक बारे जिसने रोहिणी व्रत को करना प्रारंभ कर दिया है। तो उसे इस व्रत का पालन लगातार तीन (3), पांच (5) या फिर सात (7) वर्षो तक करना होता है। जिसके बाद आप इस व्रत का पूरे विधिवत रूप से उदापन कर सकते है।

रोहिणी व्रत पूजा विधि (Rohini Vrat Puja Vidhi)

  • इस व्रत को रखने वाले स्‍त्री व पुरूष प्रात:काल जल्‍दी उठकर स्‍नान आदि से मुक्‍त होकर साफ वस्‍त्र धारण करे।
  • जिसके बाद सूर्य भगवान को पानी चढाकर पूजा के लिए बैठ जाऐ।
  • जिसके बाद वासुपूज्‍य जिनेन्‍द्र जी की पूरे विधि-विधान से पूजा करे। तथा पूजा करते ऊँ हीं श्री वासुपूज्‍यजिनेन्‍द्राय नम: महामंत्र का तीन बारे जाप करे।
  • वासुपूज्‍य जी को धूप, दीप, पुष्‍प, फल आदि चढ़ाकर पूरे विधिवत रूप से पूजा करे। और यह संक्‍लप ले की मै किसी के साथ्‍ बुरा व्‍यवहार नही करूगा।
  • इस व्रत वाले दिन पूरे दिन उपवास रखना होता है और सूर्यास्‍त से पहले फलाहार करके रोहिणी व्रत Rohini Vrat Katha in Hindi का पारण करे।
  • तथा दूसरे दिन प्रात: किसी गरीब को दान-दक्षिणा में ध्‍वजा, कलश, घण्‍टा, दर्पण आदि करे। तथा यथा शक्ति रूपया देकर उसे विदा करे।

रोहिणी व्रत कथा (Rohini Vrat Katha)

Rohini Vrat Katha in Hindi प्राचीन समय की बात है। जम्‍बूद्वीप के इसी भरत क्षेत्र (भारत देश) में कुरूजांगल नाम का देश था। जिसने हस्तिनापुर नाम एक बहुत ही सुन्‍दर राज्‍य था। किसी समय पर वहा वीतशोक नाम का राजा राज्‍य करता था। राजा वीतशोक की रानी विद्युत्‍प्रभा जिसने एक पुत्र अशोक को जन्‍म दिया। तथा दूसरी और उसी समय अंग देश की चम्‍पा नामक राज्‍य में मघवा नाम का राजा राज्‍य करता था।

Rohini Vrat Katha in Hindi | Rohini Vrat 2022
Rohini Vrat Katha in Hindi

राजा मघवा की रानी का नाम श्रीमती जिसने आठ पुत्रों और एक रोहिणी नामक कन्‍या को जन्‍म दिया था। एक बार राजा की पुत्री रोहिणी ने आष्‍टान्हिक उत्‍वसव पर व्रत (उपवास) रखकर मंदिर में पूजा रखी। तभी सभा भवन में बैठे रोहिणी के माता-पिता (राजा-रानी) और मंत्रीगण ने उसके स्‍वयंवर की बात की। जिसके बाद कुछ मंत्रियो ने कहा क्‍यो न महाराज हम हमारी राजकुमारी का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार के साथ करवा दे।

जिसके बाद रोहिणी का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक के साथ करवा दिया। विवाह के पश्‍चात् हस्तिनापुरा का राजा अशोक काे बना दिया गया। जिसके बाद रोहिणी ने आठ पुत्रों औश्र चार पुत्रियों को जन्‍म दिया। एक दिन राजा अशोक अपनी पत्‍नी रानी रोहिणी के साथ महल की छत पर बैठे हुए थे। और एक तरफ वसंततिलका धाय बैठी हुई थी। जिसकी गोद में राजा का सबसे छोटा बेटा लोकपाल खेल रहा था।

तभी रोहिणी ने अपने महल की छत से देखा की कुछ औरते एक बालक को गोद में लिए अपने बालों को बिखेरकर व अपनी छाती को पीट-पीट कर रो रही थी। यह देखकर रानी रोहिणी ने अपनी दाई वसंततिलका धात्री से ऐ सब औरते कौनसा नाटक कर रही है। कृपा करके आप मुझे इस नाटक का नाम बताइऐ। रानी की बात सुनकर वसंततिलका धात्री क्रोध में भरकर बोली क्‍या तुम्‍हें उन्‍माद हो गया।

तुम पाण्डितय और ऐश्रवर्य को नही जानती अर्थात तुम ”शोक’ व ”दुख को नही जानती। जो तुम इन्‍हे नाटक बता रही हो। धात्री की इस तरह की बाते सुनकर रोहिणी बोली हे भद्रे आप मेरे ऊपर गुस्‍सा मत होईऐ मैं तो गन्‍धर्वविद्या, गणितविद्या, चित्र, चौंसठ विज्ञानों तथा बहत्तर कलाओं को जानती हॅू। किन्‍तु मैनें इस तरह का कलागुण नही देखा अभी तक, और ना ही मुझे किसी ने बताया है। इसी कारण मैं आप से पूछ रही हू की ये सब कौनसा नाटक कर रही है।

रानी रोहिणी की बात सुनकर वसंततिलका बोली ऐ सभी औरते कोई नाटक नही कर रही। बल्कि ऐ तो किसी की मृत्‍यु पर दुख के समय रो रही है। इसे ही शोक कहते है। अपनी धात्री की बात सुनकर रानी बोली यह सब तो समझ आया किन्‍तु मैं तो रोने का अर्थ भी नही जानती। रोहिणी के इस प्रश्‍न को सुनकर राजा अशोक बोले हे प्रिये शोक में जो रूदन किया जाता है। उसे ही रोना कहते है। यदि तुम अभी भी नही समझी तो मैं तुम्‍हे उदाहरण देकर समझाता हॅू।

Rohini Vrat Katha in Hindi ऐसा कहकर राजा ने अपने पुत्र लोकपाल को जो दाई की गोद में खेल रहा था। उसे लेकर महल की छत से नीचे फेंक दिया। जिसके बाद लोकपाल अशोक के पेड़ की चोटी पर जा गिरा, उसी समय नगर में देवताओं ने आकर उस बालक को दिव्‍य सिंहासन पर बैठाकर क्षीरसागर से भरे हुए सौ कलशों से उसका अभिषेक किया। और उसे आभरणों से भूषित कर दिया। राजा अशोक और रानी ने नीचे देखा तो उन्‍हे अशोक की डाली पर बहुत ही विस्मित हुए। क्‍योकि उनका बेटा जीवित था। यह सब रोहिणी के पूर्वकृत पुण्‍य कर्मो का फल था।

हस्तिनापुर राज्‍य के बाहर अशोकवन में अतिभूतितिलक, महाभूतितिलक, विभूतितिलक तथा अंबरतिलक नामक चार जिनमंदिर थे। जो चारो दिशाओ में स्थित थे। एक दिन वहा पर रूपकुंभ और स्‍वर्णकुंभ नामक दो चारण मुनि धूमते हुए वहा पहुच गऐ। और उनको वही रात होने के कारण दोनो पूर्व दिशा में स्थित जिनमंदिर में रूक गऐ।

मंदिर के द्वारपाल द्वारा दोनो मुनि के आने का समाचार पाकर परिजन और पुरजन सहित अशोक महाराज दोनो मुनियो की वंदना (स्‍वागत) के लिए जिनमंदिर में आ गऐ। और दोनो जैन मुनियो का भव्‍य स्‍वागत किया और उनकी सेवा करने लग गऐ। सेवा करते समय राजा अशोक महाराज ने दोनो मुनियो से पूछा- हे भगवन् कृपा करके मुझे बताइऐ की मैनें और मेरी पत्‍नी रोहिणी ने ऐसा कौनसा पुण्‍य कर्म किया जिससे आपकी सेवा का सौभाग्‍य मिल रहा है।

राजा की बात सुनकर मुनिश्रेष्‍ठ बोले हे राजन इस धरती पर इसी जम्‍बूद्वीप के अलावा भरत क्षेत्र में सौराष्‍ट्र देश है। जिसमें ऊर्जयंतगिर‍ि के पश्चिम में एक गिरी नाम बहुत बड़ा नगर है। इस नगर के राजा भूपाल व रानी स्‍वरूपा है। राजा भूपाल के एक गंगदत्त राजश्रेष्‍ठी है जिसकी पत्‍नी का नाम सिंधुमती है। जो अपने आप में बहुत ज्‍यादा घमण्‍ड रखती है।

एक दिन गंगदत्त राजा भूपाल के साथ वनक्रीडा के लिए जाते समय नगर के आहारार्थ प्रवेश पर मासोपवासी समाधिगुप्‍त मुनिराज को देखा। वह तुरंत अपने घर आया और अपनी पत्‍नी सिंधुमती से बोला हे प्रिये तुम अपने घर की ओर जाते हुऐ मुनिराज को आहार देकर पीछे से आ जाना। सिंधुमती को अपने पति की बात सुनकर बहुत गुस्‍सा आया और वह मुनिराज को कड़वी तूमडी का आहार दे दिया।

Rohini Vrat Katha in Hindi

मुनिराज में हमेशा की तरह उस कड़वी तूमडी के आहार को ग्रहण कर लिया। जिससे उस मुनि की मृत्‍यु हो गई। और उसे विमान में बिठाकर स्‍वर्ग लोक ले जा रहे थे। यह सब राजा ने देखा तो उसका कारण पूदा की मुनिश्रेष्‍ट की मृत्‍यु कैसे हुई। जब राजा को इस घटना के बारे में पता चला तो वह तुरन्‍त सिंधुमती के यहा आया और उसा सिर मुण्‍डवाकर उस पर पांच बेल बंधवाकर तथा गधें के ऊपर बिठाकर पूरे नगर में घूमाया। जिसके बाद उसे राज्‍य से बाहर निकाल दिया।

जिसके बाद सिंधुमती को उदुम्‍बर कुष्‍ठ नामक रोग हो गया जिससे कारण वह सातवें दिन ही मृत्‍यु को प्राप्‍त हो गई। मरने के बाद वह बाईस सागर पर्यन्‍त आयु धारण कर छठै नरक में उत्‍पन्‍न हुई। जिसके बाद वह सातों ही नरकों में भ्रमण करती हुई कदाच्ति तिर्यचगति में आकर दो बारे कुतिया का जन्‍म लिया। जिसके बाद सूकरी, शृगाली, चुहिया, गोंच, हथ‍िनी, गधी और गौणिका का जन्‍म भी लिया।

जिसके बाद वह अनंतर इसी हस्तिनापुर के राजश्रेष्‍टी धनमित्र की पत्‍नी पूतिगंधा कें गर्भ से पुत्री रूप में जन्‍म लिया। जिसके जन्‍म से ही एक ऐसी दुर्गध आने लगी। जिस कारण उसके पास बैठना भी मुश्किल हो जाता था। उसी समय शहर के वसुमित्र सेठ का पुत्र श्रीषेण जो सप्‍त व्‍यसनी था। उसने एक दिन चोरी कर ली जिसके जुर्म में वह कोतवाल के द्वारा पकड गया। और उसे भी शहर से बाहर निकाला जा रहा था। किन्‍तु उसी समय धनमित्र वहा आकर बोले श्रीषेण यदि तुम मेंरी बेटी से शादी कर लोगे तो मै तुम्‍हारा दण्‍ड माफ करवा सकता हॅू।

धनमित्र की बात श्रीषेण मान गया और दोनो की शादी बडे धूमधाम से करवा दी गइ। किन्‍तु विवाह के बाद उसने अपनी पत्‍नी दुर्गधा के साथ बिताई औश्र वह उसकी उस गंध से बहुत ज्‍यादा परेशान होकर प्रात होते ही वह भाग गया। जिसके बाद पूतिगन्‍धा अपने पिता के घर आई और अपनी किसमत को खोसती हुई अपना जीवन व्‍यतीत करने लगी। एक दिन उसने सुव्रता आर्यिका को अपने पिता के घर में भोजन करवाया। जिसके बाद वो अनन्‍तर पिहितास्रव नामक चारणमुनि अमितास्रव मुनिराज के साथ-साथ वन को आऐ।

जिसके बाद सभी ने गुरू वंदन की और उपदेश सुने। जिसके बाद पुतिगन्‍धा ने गुरू से प्रश्‍न क‍िया की हे गुरूदेव आखिर मैंने अपने पूर्व जन्‍म में ऐसा कौनसा कर्म किया है। Rohini Vrat Katha in Hindi जिसके कारण मेंरे शरीर से ऐसी गंध आती है। पूतिगन्‍धा की बात सुनकर मुनिराज बोले हे पुत्री- तुम पिछले जन्‍म में सिंधुमती नाम की सेठानी थी। और तुमने तब एक मुनिराज को कड़वी तूमड़ी का आहार दिया था।

जिसके फलस्‍वरूव तुम बहुत समय तक नरक और तिर्यचों के दुख भोगती रही। और अभी भी तुम्‍हारे पाप बचे हुऐ है, मुनिश्रेष्‍ठ की बात सुनकर पूतिगंधा बोले हे गुरूदेव क्‍या कोई ऐसा उपाय नही है जिसे मैं अपने पापो का पाश्चित कर सकू। तब उस मुनिश्रेष्‍ठ ने बताया हे पुत्री यदि तुम प्रतिमाह लगातार सात वर्षो तक रोहिणी का व्रत रखोगी तो तुम्‍हे इस पाप से मुक्‍त‍ि मिल जाऐगी। जिसके बाद पूमिगंधान ने पूरे सात वर्षो तक पूरे विधि-विधान से व विधिवत रूप से प्रतिमहीने रोहिणी का व्रत किया। जिसके फलस्‍वरूप तुम्‍हे आज यह सब प्रदान है।

रोहिणी व्रत उद्यापन विधि/Rohini Vrat Udyapan Vidhi

  • पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार रोहिणी व्रत एक निश्चित समय तक ही किया जाता है यह उस व्रत करने वाले पर निर्भर होता है। जब आपके व्रत पूर्ण हो जाते है तो उसके बाद आपको रोहिणी व्रत का उद्यापन (Rohini Vrat Udyapan) किया जाता है।
  • मान्‍यताओं के अनुसार रोहिणी व्रत का समय 5 साल या फिर 5 महिने का होता है
  • व्रत का उद्यापन करने के दौरान गरीब लोगो को भोजन करवाया जाता है साथ में यथा शक्ति‍ दान-दक्षिणा दी जाती है।
  • पुराणों के अनुसार रोहिणी एक नक्षत्र है जो जैन धर्म में इसकी बहुत ज्‍यादा महत्‍व है इस व्रत का पाल करने वाला धन, धान्‍य व सभी प्रकार का सुख बना रहता है।
  • जिस प्रकार आप रोहिणी व्रत करते है उसी प्रकार उद्यापन वाले दिन पूजा करना है

डिस्‍कलेमर:- दोस्‍तो आज के इस लेख में हमने आपको रोहिणी व्रत कथा Rohini Vrat Kath in Hindi के बारे में सम्‍पूर्ण जानकारी प्रदान की है। यह जानकारी आपको पौराणिक मान्‍यताओं, काल्‍पनिक कथाओं के आधार पर लिखा है। आपको यह बताना जरूरी है की Onlineseekhe.com किसी प्रकार की पुष्टि नहीं देता है अत: अधिक जानकारी के लिए किसी विशेषज्ञ, विद्धान, पूज्‍य के पास जाएग। यदि ऊपर लेख में दी गई जानकरी पसंद आई हो तो लाईक करे व अपने मिलने वालो के पास शेयर करे। और यदि आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्‍न है तो कमंट करके जरूर पूछे। धन्‍यवाद

यह भी पढ़े- Rohini Vrat Katha in Hindi

प्रश्‍न:- Rohini Vrat क्‍यों किया जाता है

उत्तर:- रोहिणी नक्षत्र का प्रभाव कम करने के लिए रखा जाता है तथा जैन समुदान में लोग अपने मनोकामनाए पूर्ण करने के लिए रोहिणी का व्रत किया जाता है।

प्रश्‍न:- अक्‍टूबर 2023 में रोहिणी का व्रत कब है

उत्तर: 04 अक्‍टूबर 2023 के दिन

प्रश्‍न:- रोहिणी का व्रत कितने दिनों के बाद वापस आता है

उत्तर:- 27 दिनों के अतंराल में

2 thoughts on “Rohini Vrat Katha in Hindi | रोहिणी व्रत कथा व पूजा विधि यहा से जाने”

  1. Pingback: तो इसलिए किया जाता है Jaya Ekadashi Vrat Katha पूजा विधि, शुभ मुहूर्त

  2. Pingback: आखिर क्‍यों मनाया जाता है Sheetala Ashtami Festival जानिए पौराणिक कथा, शुभ मुहूर्त व पूजा विधि

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top