Santoshi Mata Vrat Katha in Hindi | संतोषी माता व्रत कथा, पूजा विधि जानिए Shukrawar Vrat Katha

Shukrawar Vrat Katha In Hindi | शुक्रवार व्रत कथा हिन्‍दी में पढ़े | Santoshi Mata Vrat Katha | संतोषी माता व्रत कथा यहा से पढ़े Santoshi Mata Vrat Katha in Hindi

Santoshi Mata Vrat Katha in Hindi:- दोस्‍तो आज के इस लेख में हम आपको शुक्रवार व्रत कथा (Santoshi Mata Vrat Katha) के बारे में विंस्‍तार से पूरे विधि पूर्वक बताएगे। जैसा की आप सभी जानते होगे की हिन्‍दु धर्म में लोग अनेक देवी-देवताओ को मानते है और उनकी पूजा-अर्चना करते है। साथ में प्रत्‍येक वार को व्रत रखते है। जिनमें से एक संतोषी माता है जो भगवान गणेश जी की बेटी है।

ऐसा माना जाता है जो भी व्‍यक्ति मॉ संतोषी का व्रत लगातार 16 दिनो तक पूरे विधि-विधान से करता है तो Santoshi Mata उनकी सभी मनोकामनाए पूरी करती है। दोस्‍तो आज की इस पोस्‍ट में हम आपको Shukrawar Vrat Katha के बारे में बताऐगे जिसे पढ़कर या किसी अन्‍य से सुनकर आप अपना यह व्रत पूरा कर सकते है।

Santoshi Mata Vrat Katha in Hindi

संतोषी माता का जन्‍म

एक समय की बात है भगवान गणेश जी अपनी बहन के साथ रक्षाबंधन का त्‍यौाहार मना रहे थे। उसी समय गणेश जी के दोनाे पुत्र आऐ और उन्‍होने भी इस त्‍यौहार को मनाने के लिए कहा। शुभ और लाभ दोनो ने अपने पिता से उनके साथ खेलने के लिए एक बहन मांगी। इस बात के लिए उनके पिता ने मना कर दिया। किन्‍तु अपनी पत्‍नींया व बहन और दोनो पुत्रों के बार-बार आग्रह करने पर वो इस बात के लिए मान गऐ। फिर भगवान गणेश जी ने एक सुन्‍दर व सभी शक्‍तियों वाली एक कन्‍या को प्रकट किया और उसका नाम संतोषी रखा। और कहा जो कोई मनुष्‍य इस संसार में Santoshi Mata Vrat Katha पूरे विधि विधान से करेगो। उसकी सभी इच्‍छाऐ पूरी होगी।

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संतोषी माता की पूजा के लिए सामग्री

Santoshi Mata Vrat Katha का व्रत खोलने के लिए निम्‍नलिखित सामग्रीया होनी चाहिऐ। जो इस प्रकार है।

  • संतोषी माता की फोटो,
  • एक कलश,
  • फूल व पान के पत्ते,
  • कपूर व अगरबत्ती,
  • घी का दीपक,
  • हल्‍दी व कुमकुम,
  • गुड़ और चनें का प्रसाद,
  • नारियल व पीले चावल

संतोषी माता व्रत पूजा की विधि

संसार का कोई भी स्‍त्री या पुरूष संतोषी माता का व्रत रखता है। तो उसे प्रातकाल जल्‍दी उठकर सबसे पहले स्‍नान करना चाहिऐ। स्‍नान करने के बाद उसे सूर्य भगवान को पानी चढ़ना चाहिऐ। उसके बाद उसे संतोषी माता की पूजा करने बैठ जाऐ। और पूजा स्‍थल पर जल से भरा हुआ कलश उसे उपर एक कटोरी में गुड़ और चनें रखें। और संतोषी मात की एक फोटो और उसके सामने घी का दीपक जलाऐ।

अपने दोना हाथो में गुड़ व चनें लेकर Santoshi Mata Vrat Katha पढ़े या फिर किसी अन्‍य से सुने। कथा सुनने के बाद माता को पूजन करे व फूल चढ़ाऐ और गुड़ चने का भोग लगाऐ। और मात की जयकार बोलनी चाहिऐ। इस दिन घर का कोई भी सदस्‍य खटाई नहीं खाऐ। पूजा करने के बाद अपने परिवार के 8 लड़को को भोजन कराये और सभी को दक्षिणा दे।

संतोषी माता शुक्रवार व्रत कथा

एक गाँव था उसमें एक बुढ़ीया रहती थी। उसके सात पुत्र थे जिसमे से छ तो कमाते और सबसे छोटा बेटा निकम्‍मा था। इस कारण बुड़ीया उसे कम पसंद करती थी। वह अपने छ: पुत्रों को खाना बनाती और बड़े प्‍यार से खिलाती। और जो कुछ झुठन बचता वह अपने छोटे बेटे को खिलाती थी। क्‍योकी वह बड़ा भोला-भाला था तो वह अपने मन में कोई भी विचार नही करता। ऐसे ही बहुत दिन बीत गऐ। और एक दिन वह अपनी पत्तनी से बोलो की मेंरी मॉं मुझे बहुत प्‍यार करती है।

यह सुनकर उसकी पत्तनी बोली तेरी मॉ तुमसे से बिलकुल प्‍यार नहीं करती और तुमहें सभी भाइयो का झूठन खिलाती है। उसके पत्त‍ि को विश्‍वास नहीं हुआ। तो वह किसी त्‍यौहार के दिन अपना सिर दर्द का बहाना बनाकर और अपने मुह पर पतला कपडा ओढ़कर रसोई घर में ही सो गया। और वह पतले कपड़े में से देखता रहा। वहा पर सभी छ: भाई भोजन करने आये। उसने देखा की उसकी मॉ उनके लिए आसन बिछा कर सात तरह के भोजन परोसी और उन सभी को बड़े ही प्‍यार से भोजना करवाया।

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बुड़ीया के लडकें का प्रदेश जाना

जब छहो भाई भोजन करके उठ गये तब उसकी माता ने उन सभी की जूठी थालियों में से जूठन उठाकर एक लडडू बनाया। और सातवें बेटे के पास गई और बोली उठो बेटा सब ने खाना खा लिया तुम भी खालो। वह उठा और बोला मॉं मुझे भोजन नही करना। मैं तो परदेश जा रहा हूॅ, यह सुनकर माता ने कहा कल जाऐ तो आज ही जा । यह सुनकर वह गुस्‍से में घर से निकल गया। चलते समय उसको पत्तनी की याद आई और वह उसके पास गया और कहा।

हम जावें परदेश को आवेगें कुछ काल।

तुम रहियों संतोष से धरम आपनो पाल।

तह बोली जाओ पिया आनंद से हमरूं सोच हटाय।

राम भरोसे हम रहें ईश्‍वर तुम्‍हें सहाय।

देख निशानी आपकी देख धरूँ मैं धीर।

सुधि हमरी मती बिसारियों रखियों मन गंभीर।

वह अपनी पत्तनी से बोला की मेरे पास कोई निशानी नही है बस यह अगूँठी है। इसे अपने पास निशानी के तौर पर रख ले, और तेरी निशानी मुझे दे। यह सुनकर उसकी बीवी बोली की मेरे पास तो ये गोबर से भरा हाथ है। इतना कहकर वह उसकी पीठ में गोबर के हाथ थाप दी। और वह परदेश के लिए चल दिया। चलते-चलते वह दुसरे देश में पहुच गया। वहॉ पर उसने एक दुकान देखी, और वह उस सेठ के पास जाकर बोला की मुझे नौकरी पर रख लो। उस सेठ को जरूरत थी और वह उसे नौकरी पर लगा लिया।

वह सुबह सात बजे से लेकर रात सात बजे तक नौकरी करने लगा। ऐसे में कुछ दिनो के बाद वह सेठ सारा काम उसको सौफ दिया। दुकान का सारा लेन देन हिसाब-किताब व माल बेचना सभी काम करने लगा। सेठजी को उस पर विश्‍वास हो गया और उसने आधे मुनाफे में अपना साझीदार बना लिया। और वह 12 सालो में बहुत बड़ा सेठ बन गया। और उसका मालिक सारा काम भार सौफकर बाहर चलें गया।

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बुड़ीया की बहू का व्रत करना

गॉव में उसकी पत्तनी को घर में सभी दुख देने लगे। उससे घर का सारा काम करवाते और लकडीया काटने के लिए जगंल में भेजते। जगंल से आने के बाद उसे भासी रोटी और फूटे नारियल के खोपरे में पानी देते थे। इसी तरह बहुत दिन बीत गये। एक दिन वह लकडी़ लेने के लिए जा रही थी। तो रास्‍ते में उसने देखा की गॉव की बहुत सारी औरते संतोषी माता का व्रत करती दिखी। और वह वही पर खडी़ होकर Santoshi Mata Vrat Katha सुनकर बोली की बहिनों तुम सभी यह व्रत किस देवता का कर रही है।

तब उनमें से एक महिला बोली यह व्रतSantoshi Mata Vrat Katha है। इसके करने से लोगो की सभी इच्‍छाऐ व घर में सुख शान्ति हो जाती है। यह सब सुनकर वह उन औरतो से इस व्रत के बारें विस्‍तार से पूछने लगी। उन महिलाओ ने बताया की सवा रूपये का गुड़ व चना लेना और हर शुक्रवार को संतोषी माता की पूजा व कथा सुनना। घी का दीपक जलाकर माता के सामने जलाकर भोग लगाना और यह व्रत लगातार 16 दिनो तक करना। एक समय ही भोजन करना व इस दिन खटाई मत खाना।

जब तक तुम्‍हारा कार्य पूरा नही हो तब तक नियम मत तोडना, और जब तेरा कार्य पूरा हो जाऐ तो Santoshi Mata Vrat Katha का उद्यापन कर देना। उद्यापन वाले दिन अढ़ाई सेर आटे का खाजा करके व अच्‍छे पकवान बनाकर, पहले तो माता को प्रसाद चढ़ाना और फिर परिवार के 8 लड़को को भोजन कराके उनको दक्षिणा देना। और संतोषी माता के व्रत वाले दिन घर में कोेई भी खटाई ना खावे।

यह सुनकर उस लड़के की पत्तनी वहा से चली गई और रास्‍ते में अपनी लकड़ीया बेचकर उन पैसो से गुड़ व चने खरीदी। सभी सामग्रीयो के साथ संतोषी माता के मंदिर में जाकर माता के चरणों में लेटी और कहा मॉं मैं निपट मूर्ख हूँ मैं तो इस व्रत के बारे में कुछ भी नही जानती। मैने पूरी श्रद्धा व लग्‍न के साथ यह व्रत किया है माता मेरा दुख दूर करो। उसकी औरत की यह दशा देखकर संतोषी माता को दया आ गयी और दूसरे शुक्रवार को उसके पति का पत्र व कुछ पैसे आये। ऐसे में तीसरे शुक्रवार को भी पैसा आया यह सब देखकर उसकी जेठानीया व उनके लडके ताने से देने लगे। की अब तो काकी बोलेगी नही और वह पैसे वाली बन जाऐगी।

यह सुनकर उस बूडीया की बहू ने कहा की पैसे आये या पत्र ये तो हम सब के लिए ही अच्‍छा है। ऐसा कहकर वह संतोषी माता के मंन्दि गई और बाेली की माता मुझे इन सब से क्‍या मतलब है। मुझे तो अपने पति से मतलब है। मुझे तो अपने सुहाग के दर्शन करवा दो माता तब मात ने प्रसन्‍न होकर कहा की बेटी तुझे अपने पति के दर्शन जरूर होगे। माता की यह बात सुनकर वह खुशी से बावली होकर घर गयी और काम करने लग गई। अब माता सोचने लगी की इसका पति तो इसको भूल चुका है तो वह इसके पास कैसे आृएगा।

बुड़ीया के लड़कें के सपनों में संतोषी माता का आना

एक दिन संतोषी माता उस औरत के पति के सपनों में आकर उसको अपने घर व बीवी की याद दिलाती है। और कहती है की तेरी पत्तनी तेरह राह देख रही है। तेरे घर के सभी लोग उसे बहुत दुख देते है। तु अपने गॉंंव चला जा। यह सुरकर उस बुड़ीया के लड़के ने कहा माता मैं कैसे जाउ मैं तो लेने देन के हिसाब में बहुत उलझा हुआ हॅू। यह सुनकर संताषी माता ने कहा तुम सवेरे जल्‍दी उठकर स्‍नान करके Santoshi Mata Vrat Katha का नाम लेकर घी का दीपक जलाकर दुकान पर बैठ जाना, तेरा सब काम हो जायेगा।

वह सुबह उठकर नहा‍कर माता की पूजा करके दुकान पर जाकर बैठ गया। उसने थोड़़ी देर में देखा की देने वाले रूपया लाऐ और लेने वाले हिसाब कर दिये, और दुकान का सारा सामान खरीदकर ले गये। ऐसे में शाम तक उसके पास धन का ढ़ेर लग गया। और व‍ह यह चमत्‍कार देखकर माता की जयकार करने लगा। अगले दिन सुबह अपने घर के लिए चल दिया।

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बुढ़‍िया के लड़के का घर वापिस आना

वहॉं गाँव में उसकी पत्तनी रोज की तरह जगंल में लकड़ीया काटकर संतोषी माता के मंदिर में विश्राम कर रही थी। वह मंदिर से बहुत दूर धूल उड़ती देख मॉं से पूछने लगी ये कैसी धूल उठ रही है। उसकी यह बात सुनकर माता ने कहा की हे पुत्री वह तेरा पति आ रहा है। अब तू ऐसा काम कर तेरी इन लकड़ीयों में से तीन गटठे बना लें और एक को नदी किनारे, दूसरा मेरे मंदिर में और तीसरा अपने सिर पर रख ले। इसे देखकर तेरा पति मोह पैदा करेगा। और वह सीधा अपनी मॉं से मिलने जाएगा।

इसके बाद तू लकड़ी का गटठा लेकर घर जाना और रोज की तरह ही करना। इसके बाद उस औरत ने ऐसा ही किया, जैसा संतोषी माता ने करने को कहा था। और वह अपने घर चली गई। चौक में जाकर उसनें लकड़ी का गटठा पटका और तीन आवज लगाई लो, सासूजी लकडि़यों का गटठा लो और भूसी रोटी और नारियल के खोपरे में पानी दे दो।

Shukrawar Vrat Katha

यह सुनकर उसकी सासू बाहर आयी और कहने लगी की बहू ऐसा क्‍यों कहती है तेरा की पति आया है। तु अन्‍दर चल और अच्‍छे कपडे व गहनें पहन। इतने में आवाज सुनकर उसका पति बाहर आया और पूछा मॉं इस दशा में यह कौन है। फिर मॉं कहती है बेटा यह तेरी बीवी है। जो तेरे परदेश जाने के बाद 12 वर्षो से इसी तरह गॉंव में इधर-उधर भटकती रहती है। और कुछ भी काम नहीं करती व चार समय आकर खाना खा जाती है। आज तुझे देखकर हमसे भूसी रोटी और नारियल के खोपरे में पानी मांगी है।

यह सुनकर वह बोला मॉ तुम झूठ बोल रही हो मुझे सबकुछ पता है। अब मैं तुम्‍हारे साथ नहीं रहूगा। मुझे तो दूसरे मकान की चाबी दे दो। तब मॉं बोली ठीक है बेटा और चाबी दे दी। अब वह लडका और उसकी बीवी दोना सुखपूर्वक रहनें लगे। इतने में अगला शुक्रवार का व्रत आ गया। और उसने अपने पति से बोला की मुझे Santoshi Mata Vrat Kathaका उद्यापन करना है।

बुढि़या की बहू का व्रत उद्यापन करना

पति बोला ठीक है और उसने व्रत के उद्यापन की सारी तैयारी कर दी। और जेठ के लड़को को भोजन के लिए न्‍योंता दे आई। परन्‍तु पीछे से जेठानीयों ने अपने-अपने बच्‍चों को भोजन करते समय खटाई मागंने के लिए कहा जिससें उसका उद्यापन पूरा नही हो। लड़के जीमने आये, और पेट भरकर खाना खाया। किन्‍तु याद आते ही कहने लगे की हमें कुछ खटाई चाहिऐ। उस बुड़ीया की बहू ने कहा की खटाई किसी को भी नहीं मिलेगी। परन्‍तु लड़कें उठकर गये और दुकान से इमली लाकर खाने लगे।

यह सब देखकर संतोषी माता उस औरत पर क्रोध हुयी और थोडी़ ही देर में राजा के सिपायी आकर उसके पति को पकडकर ले गये। अब उसको जेठ-जेठानी व सास-ससुर सभी ताने देने लगे। बहू से यह सब सुना नहीं गया और वह रोती रोती संतोषी माता के मंदिर गई। और बोली हे माता तुमने यह क्‍या किया। मात ने कहा तूने उद्यापन करके Santoshi Mata Vrat Katha को भंग किया है। औरत बोली माता मुझ अभागन से बहुत बड़ी भूल हो गई मुझे क्षमा कर दो मात, मैं दुबारा इस व्रत का उद्यापन करूगी। और ऐसी गलती नही दोहराउगी।

यह सुनकर संतोषी माता ने उसे माफ कर दिया और कहा की तेरा पति तुझे रास्‍ते में आता मिलेगा। और वह घर जाने लगी तो उसे रास्‍ते में उसका पति मिला, तब उसने कहा की तुम कहा चले गऐ थे। पति ने कहा की इतना धन कमाया है उसका टैक्‍स राजा ने मागां तो वह ही भरने गया था। वह प्रसन्‍न होकर बोली अब घर चलो। और कुछ दिनों बाद फिर शुक्रवार आया और उसने उद्यापन के लिए कहा।

पिछली बार की तरह उसके पति ने सारी तैयारी कर दी और वह औरत भोजन के लिए कहने गई। तो लड़को ने कहा की चाची हमें खीर नहीं भाती हमें ता खटाई चाहिऐ। औरत ने कहा की खटाई खानें काे नही मिलेगी, आना हो तो आओ नही तो मत आओ। और जेठ-जेठानीयों के लड़के खाने के लिए नहीं आये तो वह ब्राह्मणों के लड़को को भोजन कराने लगी। भाेजन करने के बाद खुद की यथा शक्ति सभी को दक्षिणा दी और एक एक फल देकर विदा कर दिया।

बुढ़ीया के घर संतोषी माता का आना

इससें संतोषी माता उस पर प्रसन्‍न हुयी और माता की कृपा से ही नवें मास उसको चन्‍द्रमा के समान एक सुन्‍दर पुत्र को जन्‍म दिया। वह औरत अपने पुत्र को रोज मात जी के मंदिर ले जाती थी। एक दिन संतोषी माता ने सोचा की क्‍यू न मैं आज इसके घर जाकर इसकी परीक्षा लू। यह विचार कर माता नें भयानक रूप बनाया और गुड़ व चने से सना मुख, उपर सूड़ं के समान होंठ, उस पर मक्खियां भिन भिना रही थी। उस औरत के घर की देहलीज में पावँ रखते ही उसकी सास चिल्‍लाई और कहा की देखोें कोई चुडैल डाकिन आ गई।

सभी डकरकअपने अपने कमरे के गेट बंद कर दिये। उसी समय बूड़ीया की छोटी बहू ने रोशन दान में से देखा और वह खुशी होकर पागलो की तरह दौडकर आयी और माता का स्‍वागत किया। यह सब देखकर उसकी सास नें कहा की यह क्‍या कर रही है और यह कौन है। तब बहू ने कहा ये तो मेरी संतोषी माता है। जिसका मैं व्रत व पूजा करती हॅू। यक सुनकर सभी ने झट से गेट खोल दिये और माता के चरणों में आकर क्षमा मांगने लगे। और कहने लगे हे माता हम सब पापी, अज्ञानी,व मूर्ख है। और हम सब तोSantoshi Mata Vrat Katha की विधि भी नही जानते हमने बहुत बड़ा अपराध किया है। हमारे इस अपराध का क्षमा करें

यह सब देखकर माता ने प्रसन्‍न होकर सभी को माफ कर दिया। और सभी को बहू जैसा फल दिया सभी ने मिलकर संतोषी माता की जय जय कार बोली। और कहा इस संसार में जो कोई औरतपूरे विधि विधान से Santoshi Mata Vrat Katha करेगा उसकी सभी मनोरथ पूर्ण होगें।

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संतोषी माता की आरती लिखी हुई/Santoshi Mata ki Aarti Aunaiye

शुक्रवार व्रत आरती:-

जय सन्‍तोषी माता, मैया जय संतोषी माता।।

सुन्‍दर चीर सुनहरी, मां धारण कीन्‍हो। हीरा पन्‍ना दमके, तन श्रृंगार लीन्‍हो।। जय संतोषी माता , मैया जय संतोषी माता………………….

गेरू लाल छठा छबि, बदन कमल सोह, मंद हंसत करूणामयी, त्रिभुवन जन मोहे।। जय संतोषी माता ……………..

स्‍वर्ण सिंहासन बैठी चंवर दुरे प्‍यारे, धूप,दीप,मधु मेवा, भोज धरे न्‍यारे।। मैया जय संतोषी माता…………………

गुड अरू चना परम प्रिय, तामें संतोष कियो, संतोषी कहलाई, भक्‍तन वैभव दियो।। मैया जय संतोषी माता……………….

शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सोही, भक्‍त मंडली छाई, कथा सुनत मोही।। जय संतोषी माता……………………..

मंदिर जग मग ज्‍योति, मंगल ध्‍वनि छाई, निय करें हम सेवल चरनन सिर नाई।। जय संतोषी माता………………

भक्ति भावमय पूजा अंगीकृत कीजै, जो मन बसे हमारे इच्छित फल दीजै।। जय संतोषी माता…………………..

दुखी दारिद्री रोगी संकट मुक्‍त किए, बहु धन धान्‍य भरे घर सुख सौभाग्‍य दिए।। जय संतोषी माता…………………

ध्‍यान धरे जो तेरा वांछित फल पायो, पूजा कथा श्रवण कर, घर आनन्‍द आयो।। जय संतोषी माता……………….

चरण गहे की लज्‍जा रखियो जगदम्‍बे, संकट तू ही निवारे, दयामयी अम्‍बे।। जय संतोषी माता…………………..

संतोषी माता की आरती जो कोई जन गावे, रिद्धि सिद्धि सुख सम्‍पति जी भर के पावे।। जय संतोषी माता…………..

जय संतोषी माता मैया जय संतोषी माता, अपने सेवक जन की सुख संपति दाता।। मैया जय संतोषी माता

प्रश्‍न व उत्तर:-

संतोषी माता का व्रत कब शुरू करें?

आप मां संतोषी का व्रत करना चाहिती है तो उसकी शुरूआत किसी भी महिने में शुक्‍ल पक्ष शुक्रवार से आरंभ करना चाहिए। ध्‍यान रहे आपको यह व्रत कभी भी पितृ पक्ष में शुरू नहीं करना है। जब आपके शुक्रवार के व्रत पूरे 16 हो जाते है तो संतोषी माता का व्रत उद्यापन करें, और फिर से इस व्रत की शुरू आत करें।

संतोषी माता का व्रत क्‍यों किया जाता है?

पौराणिक मान्‍यताओं के अनसुार जो कोई स्‍त्री शुक्रवार का व्रत माता संतोषी के लिए करती है तो उसकी मनोकामनाए पूर्ण होती है। उससे उसका बिछडा हुआ पति व बेटा वापस मिल जाएग, और उस महिला के पति की लम्‍बी उम्र बढ़ती है।

संतोषी माता का व्रत उद्यापन कब करना चाहिए?

संतोषी माता का व्रत का उद्यापन आप 16 शुक्रवार के व्रत पूरे होने के बाद अगले शुक्रवार को कर सकती है।

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डिस्‍कलेमर:- आज की पोस्‍ट के माध्‍यम से हमने आपको संतोषी माता की व्रत कथा (Shukrawar Vrat Katha) के बारे में सभी जानकारी प्रदान की है। जो आपको पौराणिक मान्‍यताओं व कथाओं के आधार पर लिखी है। आपको बताना जरूरी है Onlineseekhe.com किसी प्रकार की पुष्टि नहीं करता है विशेष जानकारी के लिए किसी पंडित व विद्धान के पास जाएगा। अगर आप सभी को पोस्‍ट में बतायी गई सभी जानकारी पसंद आयी तो इसे सभी के साथ शेयर करे। व यदि आपके मन में कोई प्रश्‍न है तो आप कमंट करके जरूर पूछे। धन्‍यवाद

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