Putrada Ekadashi Vrat Katha पुत्रदा एकादशी प्रतिवर्ष पौष माह की शुक्लपक्ष की ग्यारस को आती है। इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा का विधान है तथा जो कोई स्त्री व पुरूष पुत्रदा एकादशी का व्रत करता है उसे संतान प्राप्ति का सुख मिलता है।
यह व्रत श्रावन मास के शुक्ल पक्ष कि एकादशी पुत्र देने वाली होने के कारण पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन व्रत रखने वाले स्त्री व पुरूष को भगवान विष्णु जी का ध्यान रखकर यह व्रत रखना होता है। तथा रात्रि में भगवान विष्णु जी या कृष्ण जी की मूर्ति के पास ही सोने का विधान है। और अगले दिन वेद पाठी ब्राह्मणों का भोजन कराकर व दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। (पुत्रदा एकादशी व्रत) Putrada Ekadashi काे रखने वाले नि:संतान स्त्री या पुरूष को पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होती है। दोस्ताे आज की पोस्ट में पुत्रदा एकादशी व्रत कथा के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देगे। पोस्ट के अन्त तक बने रखे।
Putrada Ekadashi Vrat Date & Time

पुत्रदा एकादशी व्रत को रखने वाले स्त्री एवं पुरूष को संतान की प्राप्ति होती है आपको बताना चाहेगे कि इस बार श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत (Shravan Putrada Ekadashi Vrat) 18 अगस्त 2021 को बुधवार के दिन है।
वही आपको बताते चले कि इस व्रत का जो शुभ मुहूर्त है वो 18 अगस्त को प्रात: 3 बजकर 20 मिनट से लेकर 19 अगस्त को प्रात: 1 बजकर 5 मिनट तक का होगा।
प्रबोधिनी/अजा एकादशी व्रत कथा |
योगिनी एकादशी व्रत कथा व पूजा विधि |
अचला एकादशी व्रत व पूजा विधि |
निर्जला एकादशी व्रत कथा व पूजा विधि |
कामदा एकादशी व्रत कथा व पूजा विधि |
पूजा के लिए सामग्री
Shravan Putrada Ekadashi Vrat काे खाेलने के लिए निम्नलिखित सामग्रीयों कि जरूरत होती है। जो कि इस प्रकार है:-
- चावल,
- रौली-मौली,
- उसी मौसम के पुष्प व फल,
- घी का दीपक व अगरबत्ती धूप,
- शुद्ध जल एक लौटा या कलश,
- गंगा जल,
- कपूर व चन्दन,
- एक नारियल व प्रसाद,
- पंचामृत,
पूजा विधि | Puja-Vidhi
- Putrada Ekadashi Vrat रखने वाले स्त्री या पुरूष को प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण करे।
- इसके बाद सूर्य भगवान व पीपल और तुलसी के वृक्ष के पानी चढाऐ।
- इसके बाद भगवान विष्णु जी के मंदिर जाकर (यदी आपके यहा भगवान विष्णु जी का मंदिर नही है तो आप अपने घर में ही विष्णु जी कि तस्वीर लेखकर उसकी पूजा करे) मूर्ति पर पुष्प चढाऐ।
- अब एक लौटे के ऊपर नारियल पर मौली का धागा बाधंकर उसका तिलकर करे, और पानी से भरे हुऐ लोटे या कलश के ऊपर रखे दे।
- अब भगवान के मूर्ति के आगे दीपक जलाकर मूर्ति को गंगा जल या साधा पानी से स्नान कराकर , पंचामृत से अभिषेक करे।
- इसके बाद मूर्ति के सामने बैठकर Putrada Ekadashi Vrat katha (पुत्रदा एकादशी व्रत कि कथा) सुने या फिर किसी अन्य से सुने।
- कथा सुननें के बाद भगवान विष्णु जी कि आरती करे, और प्रसाद फलो का प्रसाद चढाऐ।
- अगले दिन सुबह स्नान आदि से मुक्त होकर गरीब ब्रह्मणें को दान दे और गाय को एका रोटी देकर स्वयं भोजन पाये।
Putrada Ekadashi Vrat katha | श्रावन पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा
द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नामक नगरी थी, जिस पर महीजित नामक राजा राज्य करता था। उसका राज्य बहुत ही विशाल था और उसके किसी भी वस्तु कि कमी नही था। किन्तु वह राजा पुत्रहीन था, पुत्र नही होने के कारण वह सदैव दु:खी रहता था। पुत्र पाने के लिए वह राजा गरीबो को दान देता और ब्रह्मणो का भोजन कराता, किन्तु राजा के कोई पुत्र नही हुआ। ऐसे में कई वर्ष बीत गऐ और राजा को वृद्धावस्था आने लगी, यह देखकर राजा ने अपने प्रजा के प्रतिनिधियों काे बुलाया और कहा हे प्रजाजनो मेंरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन-दौलत नही है।
किन्तु मेरे कोई पुत्र नही इसी कारण मैं बहुत दु:खी हॅू। राजा महीजित की यहा बात सुनकर मंत्रीगण व प्रजा के प्रतिनिधि वन में गऐ। और बड़े-बड़े ऋषियों व मुनियों के दर्शन किए। और अपने राजा के दु:ख के बारे में बताया। और किसी श्रेष्ठ मुनि को भेजकर राजा कि सम्सया का हल करो। तब उन्होने मुनि लोमेश के बारे में बतायाख् और कहा वो ही तुम्हारे राजा कि सम्सया दूर कर सकते है।
यह सुनकर प्रजाजन व मंत्रीगण लोमेश मुनि के आश्रम में जाकर प्रणाम किया और सभी बाते विस्तार से बतायी। और कहा इस समस्या का समाधान करो प्रभु। लोमेश ऋषि महिष्मति नगरी में आया, राजा महीजित ने उसका भव्य स्वागत किया। और उनके चरणों में बैठ गया। और अपनी समस्या बताई।
तब लोमेश मुनि नें अपनी दोनो आंखे बंद करके राजा के पिछले जन्म का वृत्तांत जान लिया। तब राजा से कहा ”हे राजन तुम पिछले जन्म में एक निर्धन वैश्य थे और तुमने बहुत से बुरे पाप किये है। तुम अपना पेट भरने के लिए एक गॉंव से दूसरे गॉंव जाकर व्यापार करते थे। एक दिन ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष कि द्वादशी के दिन तुम एक जलाश्य पर पानी पीने के लिए गए। वही पर पानी पीने के लिए ब्याही हुई प्यासी गाय पानी पी रही थी। तुमने उस गाय को पानी पीने से हटा दिया और स्वयं जल पीने लगे, तब गाय ने तुम्हे श्राप दिया था कि तुम अगले जन्म में पुत्रहीन रहोगे।
यह सुनकर राजा ने कहा कि हे भगवान क्या इस श्राप का कोई भी उपाय नहीं है। जिससे मैं अपने पिछले जन्म के पापों का प्रयश्रिचत कर सकूं। तब लोमेश ऋषि ने कहा कि तुम इस पाप से मुक्ति पा सकते है किन्तु उसके लिए तुम्हे श्रावन माह में शुक्ल पक्ष कि एकादशी को पूरें विधि विधान से व्रत रखना होगा। और रात्रि के समय जागरण करना होगा।
लोमेश मुनि की बात सुनकर राजा-रानी दोनों ही पुत्रदा एकादशी का व्रत करने लगे, और रात्रि के समय जागरण करते। ऐसे में राजा व रानी को कई वर्ष बीत गऐ। राजा रानी के इस व्रत से रखने से भगवान विष्णु प्रसन्न हुये और रानी को गर्भ धारण किया। नौ महिने बाद राजा के एक अति सुन्दर व तेजवान पुत्र हुआ। पूरे राज्य में खुशीयो छा गयी। राजा ने उसी दिन से श्रावन माह की शुक्ल पक्ष कि एकादशी को पुत्रदा एकादशी () का नाम दिया। राजा रानी इस लोक में सभी सुख पाकर अंत में परलोक को सिधार गये।
प्यारे दोस्तो आज की इस पोस्ट में हमने आपको Putrada Ekadashi Vrat Katha के बारें में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान कि है। यदि आप सभी को हमारी यह पोस्ट पसंद आयी है तो अपने दोस्तो व मिलने वालो के पास शेयर करे। और यदि आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्न है तो कमंट करके जरूर पूछे। धन्यवाद
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