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कृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishan Janmashtami) केवल भारत में नहीं बल्कि भारत देश के बाहर भी कई देशो में अपनी रिती-रिवाजो के अनुसार मनाते है। और भगवान कृष्ण जी से प्रार्थना करते है अपने जीवन को सुखी पूर्वक बनाना। इस दिन श्री कृष्ण जी के जन्म दिन के रूप में यह उत्सव बहुत हि हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन देश में सभी मन्दिरों का बहुत ही अच्छे से श्रृंगार किया जाता है। भगवान कृष्ण जी के उपलक्ष में बहुत ही सुन्दर-सुन्दर झॉंकिया सजायी जाती है, और कृष्ण जी का पूरा श्रृंगार करके झूला झूलाते है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी | Shri Krishna Janmashtami
द्वावपर युग में जब पृथ्वी पर बहुत ज्यादा अत्याचार बढ़ रहे थे, तब सभी ने भगवान विष्णु जी प्रार्थना की हे प्रभु अब आप अवतार लो और धरती माता को पापीयों से मुक्त करो। तब जाकर भगवान विष्णु जी ने आठवे अवतार के रूप में भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात के 12 बजे मथुरा के राजा कंस की जेल में वासुदेव जी की पत्नी देवी देवकी के गर्भ से सोलह कलाओं से युक्त भगवान श्री कृष्ण (Shri Krishan) जी का जन्म हुआ।
इस तिथि को रोहिणी नक्षत्र का विशेष माहात्म्य है। कृष्ण जी का जन्म अधर्म के ऊपर धर्म की जीत का प्रतीक माना जाता है। हिन्दु धर्म में वेदों व पुराणों और शास्त्रों के अनुसार भगवान कृष्ण जी (Shri Krishan) को इस पृथ्वी को दाता व पमेश्वर माना गया है और ऐसे कहा गया है कि भगवान इस पृथ्वी के कण-कण में है। भगवान कृष्ण जी को अनेक नामो से जैसे- यशोदा नंदन, देवकी नंदन, द्वावारीका धीस, मधुसूदन, कान्हा, गिरधर गोपाल आदि से पुकारा जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी को कई जगह गोकुलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। Gregorian Almanac के अनुसार यह त्यौहार अगस्त या सितंबर के माह में आता है। हिंदू कलैंडकर के अनुसर कृष्ण जन्माष्टमी 2 दिन तक रहती है। इन तिथियों का स्तार्त संप्रदाय व वैष्णव संप्रदाय के नाम से जाना जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन जो कोई व्यक्ति पूरी श्रद्धा के अनुसार यह व्रत रखता है और भगवान कृष्ण जी कि पूजा-पाठ करता है उसकी सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी तिथि Shri Krishna Janmashtami Date | 18/19 अगस्त 2022 |
अष्टमी प्रारंभ Ashtami Start | 18 अगस्त 2022 रात्रि 09:21 |
अष्टमी समाप्त Ashtmi Ends | 19 अगस्त 2022 रात्रि 10:59 |
अभिजीत मुहूर्त Abhijit Muhurta | 18 अगस्त दोपहर 12:05 से लेकर 12:56 तक |
वृद्धि योग | 17 अगस्त 08:56 मिनट से 18 अगस्त रात 08:41 तक |
जन्माष्टमी पारण मुहूर्त | 05:52:03 के बाद 20 अगस्त को |
कृष्ण जन्माष्टमी शुभ मुहूर्त 2022
इस वर्ष जन्माष्टमी पर भगवान श्री कृष्ण जी की पूजा के लिए कई शुभ मुहूर्त बन रहे है। जिसमें सबसे पहले दोपहर 12:05 से लेकर 12:56 तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा। और 18 अगस्त को रात्रि 08:41 मिनट से लेकर 19 अगस्त 2022 काे रात्रि 08:59 तक धुव्र योग रहेगा। और 17 अगस्त 2022 को 08:56 से लेकर 18 अगस्त 2022 08:41 मिनट तक वृद्धि योग बन रहा है।
जन्माष्टमी व्रत के नियम | Shri Krishan Janmashtami
- कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखने वाले को एक दिन पहले रात को हल्का भोजन करना चाहिए। अगले दिन ब्रह्मचार्य नियमों का पालन करे।
- व्रत वाले दिन स्त्री या पुरूष को प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान सूर्य को पानी चढाऐ, तथा उसके बाद भगवान कृष्ण जी (विष्णु जी) का ध्यान करे।
- इसके बाद लड्डू गोपाल जी को स्नान कराकर उन्हे पीले वस्त्र पहनाऐ, उसके बाद पूजा करके माखन मिश्री या फिर मिठाई का भोग लगाए।
- इसके बाद अपने हाथों में जल, फूल लेकर इस मंत्र (ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये) का जाप करे
- अत: रात को 12 बजे जब कृष्ण भगवान के जन्म का समय हो तब लड्डू गोपाल जी को दूध-दही से निलाकर पीले रंग के वस्त्र पहनाये।
- इसके बाद गोपाल जी का पंचामृत से अभिषेक करे, तथा उसके बाद चंदन का तिलक करे।
- अब माखन मिश्री, खीर, तुलसी, खाीरे, केले, सेब, आदि को भोग लगाऐ।
- अब भगवान को झूला झूलाकर आरती करे, तथा उसके बाद आप भगवान के चरणों से प्रसाद उठाकर ग्रहण करे।
भगवान कृष्ण जी कि आरती | Shri Krishna Janmashtami Aarti

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की। आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर वाला, श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला,
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली, लतन में ठाढ़े बनमाली,
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की, आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।।
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं, गगन सों सुमन रासि बरसै,
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग, अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।।
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा, स्मरन ते होत मोह भंगा,
बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।।
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू, चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू,
हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद, टेन सुन दीन भिखारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।।
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मरारी की।
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की, आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मरारी की।।
कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा | Shri Krishan Janmashtami Vrat katha
द्वापर युग में पृथ्वी पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ने लगे। एक दिन पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपनी कथा सुनाने के लिए तथा अपने उद्धार के लिए ब्रह्माजी के पास गई। और आपबीती बताई, यह सुनकर ब्रह्माजी सब देवताओं को साथ लेकर पृथ्वी को विष्णु के पास क्षीर सागर ले गये। उस समय भगवान विष्णु जी अनन्त शैया पर शयन कर रहे थे। स्तुति करने पर भगवान की निद्रा उठ गये।
विष्णु भगवान ने ब्रह्माजी और सभी देवताओ को देखकर उनके आने का कारण पूछा तो पृथ्वी बोली भगवान मैं पाप के बोझ से दबी जा रही हॅू। मेरा उद्धार कीजिए। पृथ्वी कि यह बात सुनकर भगवान बोले हे पृथ्वी मैं ब्रज मण्डल में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लूँगा। तुम सब देवतागण ब्रज भूमि में जाकर यादव वंश में अपना शरीर धारण करो। इतना कहकर विष्णु भगवान अन्तर्ध्यान हो गए। इसके पश्चात् सभी देवतागण ब्रज मण्डल में आकर यदुकुल में नन्द यशोदा तथा गोपियों व पेड़-पौधो के रूप में पैदा हुए।
द्वापरयुग के अन्त में मथुरा में उग्रसेन नामक राजा राज्य करता था। उसके एक पुत्र था, जिसका नाम कंस था। कंस ने अपने पिता उग्रसेन को बलपूर्वक राजसिंहासन से उतारकर जेल में डालकर खुद मथुरा का राजा बन गया। कंस ने अपनी चचेरी बहन देवकी का विवाह यादव कुल के राजकुमार वासुदेव के साथ किया। जब वह अपनी बहन देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था, तो रास्ते में अचानक आकाशवाणी हुयी। “हे कंस! जिस देवकी को तू बडे प्रेम से विदा कर रहा है।
उसी का आठवॉं पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने को तैयार हो गया। उसने सोचा न देवकी होगी, न उसका आठवॉं पुत्र। तब वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं सन्तान से तुम्हें भय है। इसलिऐ मैं इसकी आठवीं सन्तान को तुम्हें सौप दूँगा। तुम्हारे समझ में जो आये उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना। कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव-देवकी को कारागार में बन्द कर दिया।
इसके बाद नारद जी वहॉं आये और कंस से बाेले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवॉं गर्भ कौन-सा होगा। गिनती प्रथम से या अन्तिम गर्भ से शुरू होगी। कंस ने नारदजी के परमार्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले सभी बालकों को मारने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार एक-एक करके कंस ने देवकी के छ: बालकों को निर्दयता पूर्वक मार डाला। तथा जो छठा बालक था उसे योगमाया के द्वारा देवकी के गर्भ से वासुदेव की पहली पत्नी रोहिणी के गर्भ में डाल दिया। तब रोहिणी के गर्भ से बलराम जी का जन्म हुआ।
भाद्र पद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी, में प्रकाश फैल गया, और वासुदेव और देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पदमधारी चतुर्भुज भगवान (विष्णु जी) ने अपना रूप प्रकट कर कहा, ”अब मैं बालक का रूप धारण कर चुका हूँ। हे वासुदेव जी तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहॉं पहुँचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लाकर देवकी कि गोद में डाल दो।

यह कहकर भगवान अर्तध्यान हो गये, और तत्काल वासुदेव जी की हथकडि़यॉं खुल गई। दरवाजे अपने आप खुल गऐ। और पहरेदार सो गये। वासुदेवजी कृष्ण जी (Shri Krishan) को सूप में रखकर गोकुल काे चल दिए।रास्ते में यमुना नदी श्री कृष्ण जी के चरणों को स्पर्श करने के लिए बढ़ने लगी। भगवान ने अपने पैर लटका दिए, चरणों को छूने के बाद यमुना अपने आप घट गई।
वासुदेव जी यमुना को पार कर नन्द जी के यहॉं गये, और बालक कृष्ण को यशोदाजी की बगल में सुलाकर कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गये। जेल के दरवाजे पहले कि तहत वापस बन्द हो गये अपने आप वासुदेव जी के हाथो में हथकडि़या लग पड़ गई। पहेदार जाग गये, और कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गई। कंस तुरंत कारागार में आकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा परन्तु वह कंस के हाथों से छूटकर आकाश में उड़ गई।
और देवी को रूप धारण कर बोली ” हे कंस ” मुझे मारने से क्या लाभ है। तेरा शत्रु तो जन्म लेकर गोकुल में पहुच चुका है। यह दृश्य देखकर कंस भयभीत हो गया। इसके बाद कंस ने कृष्ण जी (Shri Krishan) मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे, किन्तु भगवान कृष्ण जी ने अपनी आलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। और बड़ा होकर कंस को मारकर राजा उग्रसेन को पुन: राजगदी पर बैठाया। तब से लेकर आज तक श्रीकृष्ण की पुण्य जन्म तिथि को पूरे भारतवर्ष में हर्ष व उल्लास के साथ मनाया जाता है। Shri Krishan Janmashtami
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कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन दहीं हांडी का त्यौहार (Dahi Handi Festival) आता है या नी इस बार दहीं हांडी का पर्व 19 अगस्त 2022 शुक्रवार को है। यह त्यौहार लगभग देश में सभी जगह बड़े ही हर्ष व उल्लास के साथ भगवान कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस खास अवसर पर पहले दिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व दूसरे दिन दहीं हांडी का त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार भाद्रपद की कृष्ण पक्ष कि अष्टमी (अगस्त या सितबंर) को आता है।
इस त्यौहार में किसी ऊचाई पर दहीं से भरी हुयी हांडी लटका देते है और उसके नीचे युवा एक-दूसरे को पकड़ कर एक घेरा बना लेते है। ऐसे में घेरे के ऊपर घेरे बना लिया जाता है। दहीं से भरी हुयी उस मट्की को कई युवाओ के द्वारा तोडने का प्रयास करते है जो सबसे पहले जाकर दही से भरी हुयी मट्की को फोडकर दहीं काे खाता है वह इस खेल का विजेता होता है। और उसे कृष्ण दल के तहत उसे इनाम भी दिया जाता है।
दहीं हांडी का त्यौहार क्यो मनाते है।
खासतौर पर यह पर्व कृष्ण के जन्म के दिन के शुभ अवसर पर मनाया जाता है। ऐसे कहा जाता है या बचपन से ही सुनते आ रहे है कृष्ण जी बचपन से ही दहीं, दूध, मक्खन आदि खाने का शौकिन थे। माता यशोदा जब भी घी, मक्खन आदि को नीचे रखती थी तो कृष्ण जी सारा खा जाते थे। इसी कारण माता यशोदा कृष्ण जी से माखन बचाने के लिए एक ऊंचे छिके पर टांक देती थी।
किन्तु भगवान कृष्ण जी अपने सभी दोस्तो के साथ उस छिके से भी माखन को उतारक एक-दूसरे को आपस में खिलाते थे। इसी कारण इसे बाल लीला को याद रखने के लिए तब से लेकर आज तक कृष्ण जी के जन्माष्टमी के बाद यह त्यौहार मनाया जाता है। ज्यादातर इस त्यौहार को महाराष्ट्र, उत्तप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश इन राज्यों में मनाया जता है। महाराष्ट्र के कई जगहो पर दहीं से भरी मटकी फोडते समय ‘गोविंदा आला रे’ का स्वर बोलते है। इसका मतलब भगवान श्री कृष्ण जी आ चुके है।
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