प्यारे दोस्तों जल्द ही गंगा दशहरा का त्यौहार आने वाला है ओर आप सब भी इस त्यौहार का इतंजार कर रहे होंगे। इस त्यौहार को आप सभी भी अपने परिवार के साथ गंगा नदी के किनारे जाकर मनाते होगे। परन्तु कभी आपके मन में यह प्रश्न आया कि आखिर Ganga Dussehra Festival मनानें के पीछे वजह क्या है? क्यो हम हर साल अपने घर से जाकर गंगा नदी के किनारे मनाते है। तो चलिए जानते है कि क्यो मनाते है इस त्यौहार को।
वैसे तो आप सभी जानते है हमारे देश में समय-समय पर कई प्रकार के त्यौहार मनाए जाते है। किन्तु सभी त्यौहार अपने आप में एक बड़ा महत्व देते है जैसे- होली, दीपावली, रक्षाबधंन, तीज, गणगौर, दशहरा, गंगा दशहरा, दुर्गा अष्टमी, गणेश चतुर्थी आदि। क्योकि ज्यातर त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का सदेंश और कुछ धर्म स्थापना का सदेंश देते है। Ganga Dussehra Festival भी एक सभी लोगो के पाप का विनाश करता है और इसे सभी हर्ष व उल्लाहस के साथ मनाते है।

दोस्तो आप सभी जानते है कि हमारा देश भारत त्यौहारो का देश कहा जाता है क्योकि यहा हर दिन कुछ न कुछ होता है कभी त्यौहार कभी व्रत व कभी किसी की जयंती होती है। ठीक उसी तरह गंगा दशहरा त्यौहार के पीछे भी एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है जिसके बारे में हम आपको इस लेख के माध्यम से बतायेगे। तो चलिए जानते है कि आखिर Ganga Dussehra Festival क्यो मनाया जाता है।
कब आता है गंगा दशहरा का त्यौहार
Ganga Dussehra Festival हर वर्ष ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। और इस दिन सोमवार तथा हस्त-नक्षत्र होता है इसी कारण लोगो के घोर पापों को नष्ट करने वाली दशमी मानी गई है। क्योकि इसी दिन पर हस्त नक्षत्र में बुधवार के दिन गंगावतरण हुआ था। इसलिए यह तिथि व त्यौहार बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस दिन जो भी व्यक्ति गंगा नदी में स्नान, दान, पुण्य, धर्म या तर्पण से व्यक्ति के दस पापों का नाश होता है। इसी लिए इसे Ganga Dussehra का त्यौहार कहा जाता है।
इस दिन लोगो के लिए गंगा नदी में स्नान का विशेष महत्व होता है गंगा स्नान से व्यक्ति के सभी पाप का विनाश होता है। और यदि आप गंगा नदी का जल एक बोतल में भरकर रख देते है तो वह वर्षभर भी खराब नही होतो है।
क्यो मनाया जाता है गंगा दशहरा
Ganga Dussehra Festival मनानें के पीछे कई पौराणिक कथाए जुड़ी है लेकिन जो सबसे Famous पौराण्कि कथा है। वो है अयोध्या के राजा की। प्राचीन समय की बात है अयोध्या में सगर नाम के राजा राज्य करते थे। उसके दो रानिया केशिनी व सुमति थी। रानी केशिनी के एक पुत्र अशंमान हुआ, परन्तु रानी सुमति के 60 हजार पुत्र हुऐ। एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ करवाया और यज्ञ की पूर्ति के लिए एक घोड़ा छोड़ा, और कहा यह घोडा मेेरे पूरे राज्य में भ्रमण करके लौटेगा।
परन्तु देवताओ के राजा इन्द्र ने राजा सगर का अश्वमेघ यज्ञ भंग करने के लिए उस घोड़े को चराकर कपिल मुनि के आश्रम में बॉंध दिया। जब राजा को पता चला की यज्ञ का घोडा किसी ने चुरा लिया, तो राजा ने यज्ञ के घोड़े को खाेजने के लिए अपने साठ हजार पुत्रों को भेजा। राजा के सभी पुत्र घोडे को खोजत-खोजते कपिल मुनि के आश्रम में पहुच गऐ। और उन्होने वहा पर अश्वमेघ यज्ञ के घोडे को बधे देखा। उस समय मुनि कपिल तपस्या कर रहे थे। राजा के पुत्रों ने कपिल मुनि को चोर-चोर कहकर पुुकारना शुरू कर दिया। इससे कपिल मुनि की समाधि टुट गई, और मुनि ने राजा के सभी पुत्रों को अपनी क्रोधा अग्नि में जलाकर भस्म कर दिया।

सगर के पुत्रों का भस्म होना
राजा के सभी पुत्र वापिस नही आये तो राजा सगर ने अपने बडे़ बटे को अपने भाइयो को खोजने के लिए भेजा। अंशुमान अपने सभी भाइयो को खोजते-खोजते कपिल मुनि के आश्रम पहुच गया। ओर वहा पर महात्मा गरूढ़ ने उसको सारी बात बता दी, और उसने बताया की यदि तुम अपने भाइयो की मुक्ति चाहते हो तो मुम्हे गंगा जी को स्वर्ग से धरती पर लाना होगा। अब तुम इस अश्वमेघ यज्ञ के घोडे को लेजाकर अपने पिता का यज्ञ पुर्ण करवाओ। इसके बाद माता गंगा को पृथ्वी पर लाने का कार्य करना।
अंशुमान घोडे को लेेकर यज्ञमंडप में पहुचा और सारा वृतान्त सुना दिया। यह सुनकर राजा सगर बीमार पड गये और कुछ दिनो के बाद मृत्यु को प्र्राप्त हो गये। महाराज सगर की मृत्यु के पश्चात अंशुमान ने गंगाजी काे पृथ्वी पर लाने के लिए तप किया, किन्तु वह असफल रहा। इसके बाद अंशुमान के पुत्र राजा दिलीप ने भी घोर तपस्या की परन्तु वह भी गंगाजी को धरती पर लाने के लिए असफल रहा। अन्त में दिलीप के पुत्र राजा भागीरथ ने माता गंगाजी को पृथ्वी पर लाने के लिए अपने पूर्वजो को वचन दिया और कहा मैं इस धरती पर मात गंगा को अवश्य लाउगा।
राजा भागिरथ की घोर तपस्या गंगाजी को लाने के लिए
राजा भागिरथ माता गंगा को धरती पर लाने के लिए गोकर्ण तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या की। राजा भागिरथ को तपस्या करते ; करते कई वर्ष बीत गये। तब ब्रह्माजी राजा भागिरथ की ऐसी भक्ति से प्रसन्न होकर बोले मांगो भागिरथ क्या वरदान मांगते हो। तब भागिरथ ने मात गंगाजी को पृथ्वी लोक पर ले जाने के लिए कहा। फिर ब्रह्माजी ने उसे वरदान दे दिया। किन्तु अब समस्या यह थी की ब्रह्माजी के कमण्डल से छूटने के बाद मात गंगा के वेग को कौन सभालेगा।
तब ब्रह्माजी ने बताया कि भूलोक में भगवान शंकर के अतिरिक्त किसी में यह शक्ति नही है केवल वो ही माता गंगा के इस तीव्र वेग को सभाल सकते है। यह सुनकर राजा भागिरथ भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए एक अगूँठे पर खडे होकर घोर तपस्या कि। भागिरथ की इस घाेर तपस्या से प्रसन्न होरक मात को अपनी जटाओ में झेलने के लिए तैयार हो गये। जब गंगाजी अपने तीव्र वेग से पृथ्वी की ओर बडी तो भगवान शिवजी ने उसे अपनी जटाओ में समेट लिया। गंगाजी को कई वर्षो तक जटाओ से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिला।
गंगाजी को शिवजी की जटाओं में सभालना
यह देखकर राजा भागिरथ ने पुन: भोलेनाथ की तपस्या की और माता गंगा जी को अपनी जटाओं में से मुक्त करने के लिए कहा। तब जाकर मात गंगा शिवजी की जटाओं से छुटकर हिमालय की घाटियों में कलकल निनाद की आवज करती हुई मैदान की ओर बढ़ी। जिस रास्ते से माता गंगा जी आगे बढ रही थी उसी रास्ते में ऋषि जन्हु का आश्रम था। अपनी तपस्या में विघ्न समझकर गंगाजी को पी गये। राजा भागिरथ के प्रार्थना करने पुन: गंगाजी को अपनी जॉंघ से निकाल दिया। इसी कारण माता गंगा जन्हु पुत्री या जाह्नवी कहलाई।

गंगा का पृथ्वी पर आना
इस प्रकार माता गंगा अनेक स्थलों व मैदानो को पार करती हुई कपिल मुनि के आश्रम पहुँचकर राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मुक्ति दिलवाई। उसी समय ब्रह्माजी ने प्रकट होकर राजा भागिरथ के कठोर तप तथा सगर के साठ हजार पुत्रों को अमर होने का वर दिया। और कहा की आज से गंगा तुम्हारे मान से भी जानी जाऐगी। और आने वाले समय में भगवान विष्णु जी तुम्हारे वंश में जन्म लेगे। हे राजा भागिरथ अब तुम जाकर अयोध्या नगरी का राज सभालों। ऐसा कहकर ब्रह्माजी अन्तर्ध्यान हो गये।
तब से लेकर आज तक माता गंगाजी को धरती पर आने के उपल्क्ष में Ganga Dussehra Festival हर वर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। क्योकि उसी दिन ब्रह्माजी ने माता गंगा को वरदान दिया था कि जो भी मनुष्य इस दिन तुम्हारे जल से स्नान करेगा उसके सभी पाप मुक्त हो जाएगे।
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